अकेली मगर कामयाब

मदर टरेसा बिना शर्त प्यार की शक्ति की एक राजदूत थी। भारत में ‘‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ऑफ कोलकत्ता’’ के संस्थापक के रूप में उन्होंने एक वैश्विक आंदोलन का नेतृत्व किया जिसने बीमार, अनाथ मरतेऔर गरीबों की सेवा की। यह सच है कि वह एक नन थी और उन्हें तकनीकी रूप से शादी की अनुमति नहीं थी। लेकिन इसने उसे दुनिया को यह दिखाने से नहीं रोका कि किसी भी महिला को जीत हासिल करनेके लिए पुरुष की ज़रूरत नहीं है।

भारत की स्वर कोकिला लता मंगेश्कर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। वह अपनी सुरीली आवाज़ से सबको आकर्षित करती है जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हैं। क्या भारत मेंएकल महिला की शक्ति का इससे बेहतरीन कोई और प्रमाण हो सकता है।  बुकर पुरूस्कार विजेता किरण देसाई ने साहित्यिक दायरे में अपने लिए एक मुकाम बनाया है। भारत में टीवी उद्योग को पुनर्जीवितकरने का श्रेय एकता कपूर के बालाजी टेलीफिल्मस को जाता है।

मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन ने एक बार कहा था, ‘मुझे अपने जीवन में हीरों के लिए किसी पुरुष की ज़रूरत नहीं है। मैं उन्हें खुद पा सकती हूं।’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश की पूर्वमुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की मायावती इस बात के उदाहरण है कि अधिकतर मामलों में हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है लेकिन इन महिलाओं के पीछे उनके स्वंय के अलावा कोई नही है।

यह सूची अंतहीन है और यह बताती है कि भारतीय एकल महिलाएं दुनिया भर में अपने समकक्षों की तुलना में किसी भी तरह से कम नहीं है जो कि अधेड़ अविवाहिता को नए सिरे से परिभाषित करता है।अकादमी पुरूस्कार से सम्मानित अभिनेत्री डायन कीटन ने एक बार कहा था, ‘मुझे नहीं लगता कि मैंने शादी नहीं की है, इसलिए मैंने अपने जीवन को कमतर बना दिया है। यह एक पुराना मिथक कचरा है।’ ओपरा विनफ्रे ने कहा,‘‘ आपके पास जो कुछ भी है उसके लिए आभारी रहें, आप और अधिक की चाहत में सब समाप्त कर देंगे। आपके पास जो नहीं है यदि उस पर आप ध्यान केंद्रित करेंगे तो आप कभी भीसंपूर्ण नहीं होंगे।’ प्रसिद्ध नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सुसान बी एंथनी ने कहा, ‘‘मैं यह घोषणा करती हंू कि महिला को पुरुष की सुरक्षा पर निर्भर नहीं होना चाहिए, लेकिन खुद की रक्षा करना सिखाया जानाचाहिए।’’

भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार यहां 714 लाख एकल महिलाएं है जो कुल महिला आबादी का 12 फीसद है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में एकल  महिलाओं की संख्या में 39 फीसद कीवृद्धि हुई जो 2001 में 512 लाख मिलियन से बढक़र 2011 में 714 लाख हो गई। 25-29 साल की एकल महिलाओं की संख्या में  2001 और 2011 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ी वृद्धि (68 फीसद) देखी गई है।शहरी क्षेत्रों  में स्थिति समान है। 123 लाख एकल  महिलाएं है जिन्होंने कभी शादी नहीं की। कुल मिलाकर ग्रामीण क्षेत्रों में 444 लाख एकल महिलाएं हैं। भारत में लगभग 62 फीसद एकल महिलाएं हैं, यद्यपिग्रामीण एकल महिलाएं अपने शहरी समकक्षों से आगे हैं। लेकिन शहरी एकल महिलाओं की संख्या में 58 फीसद की वृद्धि हुई जो 2001 में 171 लाख से बढक़र 2011 में 270 लाख हो गईं।

उत्तरप्रदेश में सबसे ज़्यादा 120 लाख एकल महिलाएं हैं जिनमें से अधिकतर ने कभी शादी नहीं की, महराष्ट्र में 62 लाख और इसके बाद आंध्रपद्रेश में 47 लाख  हैं। महिलाओं के नेतृत्व वाले घरों की तालिका मेंउत्तरप्रदेश में 25 लाख इसके साथ  ही आंध्रपदेश (25 लाख) और इसके बाद तमिलनाडु (24 लाख) का नंबर है।

एकल महिला अधिकारों की रिपोर्ट से राष्ट्रीय स्तर पर एकल  महिलाओं की समस्याओं का अनुमान लगाया जा सकता है,‘‘ग्रामीण क्षेत्रों में एकल महिलाओं को लगातार सामाजिक पक्षपात से जूझना पड़ता है औरअस्तित्व के लिए लड़ाई लडऩी पड़ती है।’’ एनएफएसडब्ल्सू के निष्कर्ष बताते हैं कि ‘‘उदाहरण के लिए झारखंड में आदिवासी महिलाओं के नाम पर खुद की ज़मीन नहीं हो सकती, और हम लोग कानून कोबदलने के लिए लड़ रहे हैं।’’ यहां तक कि जहां पर महिलाओं को कानूनी अधिकार प्राप्त भी हैं वहां भी सच यह है कि ज़मीन पर वास्तविक कब्जा और नियंत्रण कई लोगों के लिए दूर का सपना है।

यह खुशी की बात है कि कई महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने ऐसे समाज में पुरुषों को  पछाड़ दिया है जो कि दिल से पितृसत्तात्मक है।