अंदेशा और संदेशा के बीच ओमिक्रोन

ओमिक्रोन को लेकर अंदेशा और संदेशा के बरकरार के बीच अगर कोई रास्ता है तो वो है सावधानी बरतनें का। देश में भले ही इने–गिने ही मामलें कोरोना के नये स्वरूप ओमिक्रोन के सामने आ रहे है। फिर हड़कंप का आलम तो ये है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) हर रोज सावधनी बरतनें के साथ–साथ ओमिक्रोन के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता व्यक्त कर रहा है।

ओमिक्रोन को लेकर डाँक्टरों का कहना है कि कई बार तो ऐसा होता है कि मामलें शुरूआती दौर में कम आते है और मरने वाले भी कम होते है। लेकिन जैसे ही मामलें बढ़ने लगते है तो, अचानक से बढ़ते है। जिसके कारण बाद में बढ़ते मामलों को कंट्रोल करना मुश्किल ही होता है।

एम्स के डाँ केशव कुमार का कहना है कि ओमिक्रोन को लेकर अंदेशा और संदेशा इस बात को लेकर व्यक्त किया जा रहा है कि मामलें बढ़ेगे या घटेगें और कितना भयानक रूप लेगा पर, ऐसे में अगर हमें सही मामलें कोरोना के नये स्वरूप को रोकना है तो सावधानी के साथ हमें उन पहलुओं पर नजर रखनी होगी जिसके कारण ओमिक्रोन जैसी संक्रमित बीमारी को रोका जा सकता है।

भारत में अभी ओमिक्रोन वायरस को लेकर विशेषज्ञ सिर्फ चिंता ही व्यक्त कर रहे है और सावधान रहने की सलाह दें रहे है। लेकिन देश के कोई भी सेक्टर और बाजार नहीं देखने को मिल रहा है जहां पर लोग खुलेआम कोरोना विरोधी अभियान की धज्जियां न उड़ाई जा रही हो। देश के अधिकतर राज्यों में लोगों ने तो मास्क पहना ही छोड़ दिया है।

सामाजिक कार्यकर्ता अमरीश गौतम का कहना है कि एक ओर तो केन्द्र सरकार सरकारी और प्राईवेट संस्थानों को खोलने में लगी है।वहीं ओमिक्रोन के नाम पर सतर्क नहीं की बात करती है। ऐसे में कोरोना जैसी बीमारी को काबू पाना मुश्किल होगा।