हदें लाँघता चीन

भारत और चीन के बीच सीमा पर चीनी सेना की कायराना हरकतों को लेकर विकट तनाव बना हुआ है। डेढ़ साल पहले गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच ख़ूनी संघर्ष के बाद नये साल में 1 जनवरी को गलवान घाटी में कथित रूप से चीनी झण्डा फहराये जाने के बाद दोनों देशों के बीच तल्ख़ी बढ़ी है। चीनी सेना पिछले कई साल से अपनी आपत्तिजनक गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं और भारत की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने के प्रयास कर रही है। कई बार चीन उसकी सीमा से लगे भारत की तमाम क्षेत्रों को अपना बताने का प्रयास कर चुका है। सैटेलाइट से उपलब्ध तस्वीरे बयाँ करती हैं कि चीन ने भारत की ज़मीन पर अपने कई बंकर, एक गाँव और बड़े स्तर पर सेना की तैनाती कर रखी है। लेकिन इस बार उसने अरुणाचल प्रदेश में जो हरकतें की हैं, उनसे लगता है कि वह भारत को चुनौती दे रहा है।

अरुणाचल प्रदेश से सटी भारत चीन अन्तरराष्ट्रीय सीमा से 18 जनवरी को 17 साल के युवक मिराम तारोम का लापता होना और ये ख़बरें आना कि उसका अपहरण चीनी सेना ने किया है, भारत के लिए एक नयी चुनौती रही। चीनी सूत्रों का कहना है कि मिराम तारोम को कथित तौर पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएससी) के पार जाने पर चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने गिरफ़्तार किया। वहीं स्थानीय लोगों व ख़ुद अरुणाचल के भाजपा सांसद ने तापिर गाओ ने इस घटना की निंदा करते हुए चीनी सेना पर मिराम तारोम के अपहरण का आरोप लगाया। इसे लेकर दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों में लम्बी बातचीत हुई। काफ़ी कोशिशों पर 10 दिन बाद किशोर मिराम तारोम को चीनी सेना ने भारतीय सेना को सौंपा। क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्वीट कर बताया कि चीनी सीमा के पास से लापता हुए अरुणाचल प्रदेश के एक युवक को चीनी सेना भारतीय सेना को वाचा-दमई सम्पर्क बिन्दु पर सौंप दिया है।

बता दें कि मिराम तारोम अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग ज़िले के जिदो गाँव का रहने वाला है। बताया गया कि मिराम तारोम अपने एक दोस्त के साथ चीन की सीमा से लगे भारतीय क्षेत्र (अरुणाचल) में शिकार के लिए गये थे। मिराम तारोम आदिवासी समुदाय से हैं और सीमावर्ती गाँव में रहते हैं। आमतौर पर यहाँ के लोग शिकार करने भारतीय क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। यहाँ भारत सरकार को भारतीय सीमा क्षेत्रों और भारतीय लोगों की सुरक्षा को लेकर चीन पर दबाव बनाने की ज़रूरत है। क्योंकि चीन ने हमेशा झूठ का सहारा लिया है। इससे पहले भी चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबन सिरी जिले से पाँच युवकों का अपहरण कर लिया था। हालाँकि तब भारत सरकार के दख़ल के बाद इन युवकों को उसने रिहा कर दिया था।

बिगड़ते जा रहे हालात

सर्वविदित है कि लद्दाख़ से अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ 3,400 किलोमीटर लम्बी वास्तविक सीमा रेखा (एसएसी) लगती है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुज़रने वाली एलएसी पश्चिमी क्षेत्र यानी जम्मू-कश्मीर, मध्य क्षेत्र यानी हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड, और पूर्वी क्षेत्र यानी सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं को छूती है। अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाक़ों में टैगिन आदिवासी समुदाय के काफ़ी लोग सीमा के उस पार चीन में रहते हैं और उनके रिश्तेदार अरुणाचल प्रदेश में बसे हैं। कुछ साल पहले तक दोनों तरफ़ के लोगों का आना-जाना होता था। लेकिन जबसे सीमा पर चीन के साथ तनाव बढ़ा है, इन लोगों की आवाजाही का सिलसिला रुक गया है। क्योंकि चीन का रवैया शत्रुता भरा है और वह सीमा पर अराजक गतिविधियाँ चलाता रहता है। उसकी हरकतों का हाल यह है कि अगर भारत भी उसकी तरह सिर उठाता, तो कब का युद्ध छिड़ गया होता।

चीन की हेकड़ी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मिराम तारोम को लेकर भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच 14 दौर से अधिक की बातचीत हुई; तब कहीं जाकर सकारात्मक हल निकल सका है।

चीन द्वारा गलवान घाटी पर झण्डा फहराये जाने और चीनी सैनिकों का भारत की सीमा में अन्दर कथित रूप से घुस जाने के मामले पर केंद्र सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर चीन की आक्रामकता का जवाब मोदी सरकार कड़ाई से क्यों नहीं देती? इस बीच चुनावी माहौल के बीच राजनीतिक हलक़ों में भी चीन की चर्चा हो रही है। कांग्रेस सहित विपक्ष की पार्टियाँ सवाल उठा रही हैं कि चीन वर्ष 2020 के मई महीने से लगातार आक्रामक तेवर अपनाये हुए है; 15-16 जून, 2020 को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया, जिसके बाद संघर्ष में 20 जवान शहीद हो गये।

हालाँकि भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों का डटकर मु$काबला किया और दो दर्ज़न से अधिक को मौत के घाट उतार दिया। फिर 5 मई, 2021 को भी पूर्वी लद्दाख़ के पेंगौंग झील इलाक़े में चीनी सेना ने सीमा सन्धि को तोड़ते हुए हरकतें कीं, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाओं में संघर्ष हुआ था। हालाँकि इसके बाद सीमा पर भारत ने गस्त बढ़ा दी है। लेकिन चीन सीमा पर गतिविधियाँ बढ़ाने से बाज़ नहीं आ रहा है।

क्या कहते हैं जानकार?

चाइना रेडियो से लम्बे समय तक जुड़े वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव ने ‘तहलका’ को बताया कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त (सुपर पॉवर) बनना चाहता है। इसी विस्तारवादी नीति के कारण वह काम कर रहा है। इतिहास में जाएँ, तो चीन हमेशा से परोक्ष रूप से दूसरे देशों पर आधिपत्य जमाने के लिए जाना जाता है। वह दो क़दम आगे बढ़ाकर एक क़दम पीछे लेने की नीति पर काम करता है। चीन का हमेशा से अपने पड़ोसी देशों के साथ यही रवैया रहा है। इसका ताज़ा उदाहरण दक्षिण चीन सागर में उसके द्वारा धीरे-धीरे क़ब्ज़ा करना है। चीन ने इसी 1 जनवरी से सीमाओं से लगे इलाक़ों के लिए एक नया क़ानून लागू कर दिया है। इस क़ानून के माध्यम से उसने सीमावर्ती गाँवों में हर तरह की सुविधाएँ मुहैया कराने का प्रावधान रखा है। चीन इन सीमावर्ती गाँवों को आदर्श गाँव बनाने की बात करते हुए इनमें रेल और सडक़ों से लेकर यातायात के सभी साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ दूसरी सहूलियतें उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है।

बता दें कि भारत ने भी एलएसी पर पिछले कुछ साल से अपनी स्थिति मज़बूत की है। भारत ने भी इन इलाक़ों में सुरंग, पुल, हेलीपैड और सडक़ें बनायी हैं। लेकिन अपनी सीमा में। जबकि चीन अतिक्रमण की नीति अपनाता है, जो कि ग़लत है। रक्षा मंत्रालय की साल 2018-19 की सालाना रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार ने भारत चीन सीमा पर 3812 किलोमीटर इलाक़े को सडक़ निर्माण के लिए चिह्नित किया है, जिसमें से 3418 किलोमीटर सडक़ बनाने का काम सीमा सडक़ संगठन (बीआरओ) को दिया है। इनमें से अधिकतर परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सन् 1982 से सन् 1984 तक तैनात (अब सेवानिवृत्त) लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं कि भारत एलएसी को मानता है और कभी उससे आगे नहीं गया है।

भारत ने एलएसी पर अपनी स्थिति पिछले कुछ समय से मज़बूत की है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत रुक-सी गयी है। चीन की तरफ़ से लगातार दबाव बनाया जा रहा है। कुछ वाक़ये हाल ही में हुए, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के लिए चीनी, तिब्बती और रोमन में नये नामों की सूची जारी की है। इस बारे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यपत्र ‘अंग्रेजी डेली ग्लोबल टाइम्स’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश को चीनी नाम ‘जांगनान’ देकर अपना बताने का प्रयास किया है।

इस पर विदेश मामलों के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक कहा कि हमने इसे देखा है। ये पहली बार नहीं है, जब चीन ने नाम बदलने की कोशिश की है। चीन ने अप्रैल में भी ऐसे नाम रखना चाहा था। अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और आगे भी रहेगा। महज़ प्रदेश का नाम बदलकर रख देने से तथ्य नहीं बदले जा सकते।

बता दें कि चीन ने अक्टूबर, 2021 में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू के अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आपत्ति जतायी और कहा कि भारत ऐसा कोई काम न करे, जिससे सीमा विवाद का विस्तार हो। फिर सन् 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अरुणाचल जाने पर भी विरोध किया था। फिर सन् 2020 में गृह मंत्री अमित शाह के अरुणाचल जाने पर आपत्ति जतायी। एक सांसद के तिब्बत के एक कार्यक्रम में शामिल होने पर भी चीन ने उन्हें पत्र लिखकर आपत्ति जतायी। ऐसे में चीन भारत पर लगातार दबाब बनाने की कोशिश में जुटा है।

विदेश और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ और लेखक ब्रहा चेल्लानी ने एक लेख में लिखा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पहले से ही अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों को ताक पर रखती आ रही है। शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने क़मज़ोर देशों की सम्प्रभुता को प्रभावित करने की कोशिश की है। यहाँ तक कि लिथुआनिया जैसे देशों को चीन में अपने दूतावासों को बन्द करने तक के लिए मजबूर कर दिया। चीन एक मात्र देश है, जिसने व्यापार को भी वेपनाइज यानी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। यहाँ तक जिन देशों ने ताइवान के साथ बेहतर सम्बन्ध बनाये रखे, चीन ने उन देशों को भी अपने निशाने पर रखा हुआ है।

चीन मामलों के जानकार पंकज श्रीवास्तव कहते हैं कि जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारत के विदेश मंत्री एस. जय शंकर की मुलाक़ात हुई थी, तो उसमें भी बार-बार यही दोहराया गया कि सीमा विवाद को एक तरफ़ रखा जाए और आपसी रिश्तों को सामान्य बनाया जाए। चीन के जितने भी पड़ोसी देश हैं, उनमें भारत ही चीन के ख़िलाफ़ खड़ा होने की क्षमता रखता है। भारत ने यह दिखा दिया है कि अगर चीन देर तक सीमा पर खड़ा रह सकता है, तो भारत भी अपने क्षेत्रों की रक्षा करने में समर्थ है।