सर्वोच्च अदालत ने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 15(4) और 15(5) हर देशवासी को बराबरी मौलिक अधिकार देते हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘प्रतियोगी परीक्षाएं उत्कृष्टता, व्यक्तियों की क्षमताओं को नहीं दर्शाती हैं। ऐसे में कुछ वर्गों को मिलने वाले सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ को प्रतिबिंबित नहीं किया जा सकता’।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘सामाजिक न्याय की उपलब्धता के लिए आरक्षण आवश्यक है। मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस, बीडीएस और सभी पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण संवैधानिक तौर पर सही है।’ कोर्ट ने कहा कि ‘उच्च स्कोर योग्यता के लिए एकमात्र मानदंड नहीं है। सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के संबंध में योग्यता को प्रासंगिक बनाने की जरूरत है।’
सर्वोच्च अदालत ने साफ़ किया है कि ‘पहले के फैसलों ने यूजी और पीजी एडमिशन में आरक्षण पर रोक नहीं लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि आरक्षण और सीटों की संख्या की जानकारी परीक्षा होने के बाद तक नहीं की जाती है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सीटों के गोलपोस्ट को बदल दिया गया है। इस स्तर पर न्यायिक हस्तक्षेप से इस वर्ष के लिए प्रवेश में देरी होती इसलिए 2021-22 बैच के लिए रेंज क्राइटेरिया पर कोई रोक नहीं है।’