सातवें आसमान पर

ओलंपिक खेलों में स्वर्ण सहित 7 पदक से भारत ने जगायीं भविष्य की उम्मीदें

इस साल मोदी सरकार के खेलों के बजट में 325 करोड़ रुपये की कटौती के बावजूद भारत के खिलाडिय़ों ने तमाम अभावों और सुविधाओं की कमी के बीच ओलंपिक इतिहास का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए एक स्वर्ण पदक सहित 7 पदक जीते। भले 135 करोड़ की बड़ी आबादी वाले देश के लिए यह उपलब्धि सागर में अंजुरी भर पानी जैसी हो; लेकिन इससे भविष्य के लिए उम्मीद की नयी किरण जगी है। बशर्ते वर्तमान उपलब्धि के नशे से बाहर निकलकर भविष्य में खेलों पर पूरा ध्यान दिया जाए। भारत को श्रेष्ठ परिणाम दे सकने वाली प्रतिभाओं पर फोकस करके ही दुनिया के नामी खिलाडिय़ों को टक्कर दी जा सकती है और पदकों की संख्या बढ़ायी जा सकती है। तमाम पहलुओं पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

जमैका के तेज़ धावक उसैन बोल्ट को कौन नहीं जानता। तीन ओलंपिक में उसैन ने 8 स्वर्ण पदक जीते। क्या आपको पता है कि यह 8 स्वर्ण पदक जीतने के लिए उसैन बोल्ट को सिर्फ़ 115 सेकेंड (2 मिनट से भी कम) दौडऩा पड़ा। इन स्वर्ण (गोल्ड) पदकों की बदौलत उसैन ने 119 मिलियन डॉलर कमाये। लेकिन असली बात यह है कि उसैन ने यह अद्भुत उपलब्धि हासिल करने के लिए 20 साल तक कड़ी मेहनत की। कोविड-19 की सख़्त पाबंदियों के बीच हुए टोक्यो ओलंपिक में भारत की इस बार की उपलब्धियाँ भले देश की जनसंख्या के अनुपात में बहुत छोटी दिखती हों, लेकिन एक रास्ता खुला है, जो भविष्य में सही खेल नीति और खिलाडिय़ों के समर्पण से उसे बहुत ऊँचाई तक ले जा सकता है। दुनिया के नामी और रिकॉर्डधारी खिलाडिय़ों को टक्कर दे सकने की क्षमता वाले खिलाडिय़ों और खेलों पर केंद्रित (फोकस) किया जाता है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सुविधाएँ देकर अगले ओलंपिक से पहले ज़्यादा-से-ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों में भेजा जाता है, तो हम चार साल बाद अपने पदकों की संख्या दोगुनी करने की क्षमता रखते हैं। एक स्वर्ण सहित अभी तक के रिकॉर्ड 7 पदक (मेडल) जीतने की ख़ुशी ही थी कि टोक्यो से लौटे खिलाडिय़ों का पुरज़ोर स्वागत किया गया। एयरपोर्ट पर खेल दीवानों की भीड़ इन खिलाडिय़ों की एक झलक पाने और उन्हें सिर पर बैठाने को उतावली थी।

टोक्यो में भारत ने एथलेटिक्स (स्वर्ण), वेटलिफ्टिंग (रजत), कुश्ती (एक रजत, एक कांस्य), पुरुष हॉकी (कांस्य), बैडमिंटन (कांस्य) और बॉक्सिंग (कांस्य) सहित कुल 7 पदक हासिल किये। इससे पहले भारत ने 2012 के लंदन ओलंपिक में सबसे अधिक 6 पदक जीते थे।

अब अगला ओलंपिक 2024 में पेरिस में होगा। इन तीन वर्षों में भारत के पास स्थितियों के मुताबिक बेहतर खिलाडिय़ों को ओलंपिक मुक़ाबलों में चुनौती दे सकने लायक बनाने का अवसर है। प्रतिभाओं की कमी नहीं है। वरिष्ठ खिलाड़ी पीटी उषा कहती हैं- ‘हमारे लिए सबसे बेहतर है भीड़ की जगह अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के आपपास प्रदर्शन करने वाले खिलाडिय़ों की पहचान करके उन्हें बेहतरीन प्रशिक्षण देकर ज़्यादा-से-ज़्यादा आउटिंग करवाना। इससे उनका एक्सपोजर होगा और वे पदक की दौड़ में शामिल रहेंगे। यही एक स्थिति है, जो हमें ओलंपिक में बेहतर पायदान पर खड़ा कर सकती है।’ भारत की आबादी के लिहाज़ से सात पदक समंदर के पानी में एक बूँद जैसी लगते हैं; लेकिन इसे एक छोटी शुरुआत मान भी लें, तो भी आगे का रास्ता उतना आसान नहीं। हमारे यहाँ अंतर्राष्ट्रीय सुविधाओं का नितांत अभाव है। जो खेल संस्थाएँ बनी हैं, उनमें ग़ैर-खिलाडिय़ों का दबदबा है; जिनका ज़्यादा ध्यान खेलों के पैसे पर रहता है। बाबुओं के सहारे चल रहे हमारे खेल संस्थानों को लेकर कई बार गम्भीर सवाल उठे हैं; लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। उलटे यह अव्यवस्था समय के साथ और मज़बूत ही हुई है।

चीन से तुलना करें, तो ज़ाहिर होता है कि हमारे देश में पदक जीतने की ललक कमोवेश शून्य जैसी है। जीतना चाहते हैं। लेकिन न तो बुनियादी मज़बूत ढाँचा है; न कोच हैं; न वैसे प्रोफे नल खेल संस्थान। देश की पहला विश्वविद्यालय अब जाकर बना है, जिसे दिल्ली सरकार ने बनाया है। क्रिकेट को दोष नहीं दिया जा सकता। लेकिन सच यह है कि क्रिकेट ने सब खेलों की जगह ले ली है और बड़े घरानों की थैलियाँ भी क्रिकेट के लिए ही खुलती हैं।

भारत की ओलंपिक की स्थिति की पड़ोसी देश चीन से तुलना करें, तो पता चलता है कि हम कितना पीछे हैं। टोक्यो ओलंपिक से पहले तक भारत ने 121 साल के ओलंपिक इतिहास में महज़ 28 पदक जीते थे। भारत के विपरीत चीन ने इन मुक़ाबलों में पहली बार 1984 में जाकर लॉस एंजेलिस ओलंपिक में भाग लिया था। भारत के विपरीत टोक्यो से पहले तक चीन ने 525 पदक जीत लिये थे, जिनमें 217 स्वर्ण पदक थे। टोक्यो में भी चीन दूसरे नंबर पर रहा और 88 पदक जीते।

यह बहुत दिलचस्प भरी गाथा है कि भारत जैसे देश ने हाल के वर्षों में उभरे आईटी और अन्य क्षेत्रों में तो विश्व विख्यात प्रतिभाएँ दुनिया को दे रहे हैं; लेकिन खेल क्षेत्र में हम आज भी लगभग सि$फर ही हैं। जाने-माने खेल टीकाकार (कमेंटेटर) जसदेव सिंह ने एक बार कहा था कि हमारे माता-पिता खेल मैदान से ज़्यादा खेत को अहमियत देते हैं।

हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं; लेकिन खेल किसी की भी प्राथमिकता नहीं है। एक पुरानी घटना है, जिसके मुताबिक बास्केटबॉल में खेल प्रतिभाएँ तलाशने के लिए रूस के खेल विशेषज्ञ भारत आये। उन्होंने 125 लडक़ों का चयन किया, जिनकी लम्बाई बास्केटबॉल के लिहाज़ से सही छ: फुट या इससे अधिक थी। इन लडक़ों की शिक्षा से लेकर खाने-पीने और अन्य ख़र्चे सरकार को ही करने थे। लेकिन जब इनके अभिभावकों को मंज़दूरी देने को कहा गया, तो उन्होंने यह कहकर साफ़ इन्कार कर दिया कि इनके खेलों में जाने से हमारी खेती चौपट हो जाएगी; क्योंकि यहाँ काम कौन करेगा?

अब भले कुछ परिवार अपने बच्चों को खेलों में जाने के प्रति सॉफ्ट रहते हैं। लेकिन आज भी ज़्यादातर माता-पिता बच्चों को इंजीनियर या डॉक्टर ही बनाना चाहते हैं। पीटी उषा इसका कारण भारत में खेलों के प्रति माहौल न होने को मानती हैं। उषा कहती हैं- ‘हमारे देश में खेल संस्कृति का नितांत अभाव है। पारिवारिक और सामाजिक भागीदारी भी न के बराबर है और खेल कभी सरकारों की प्राथमिकता नहीं रहे।’

खेल जानकार मानते हैं कि देश में खेल फेडरेशनों पर सियासत बड़े स्तर पर हावी है। साई (स्पोट्र्स अथॉर्टी ऑफर इण्डिया) जैसे देश खेल संगठन पर समय-समय पर दर्ज़नों आरोप लगते रहे हैं। यहाँ तक कि ओलंपिक खेलों में एक विदेशी भारतीय कोच ने भी साई पर गम्भीर आरोप लगाये थे। जानकारों के मुताबिक, भारत में खेल ढाँचा (इंन्फ्रास्ट्रक्चर) और ख़ुराक (डाइट) नाक़ाफी है और खेल ढाँचों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद बड़े पैमाने पर हावी है। इसके अलावा देश में आज भी ग़रीबी है और खेल से पहले युवाओं के माता-पिता नौकरी को प्राथमिकता देते हैं। सबसे ख़राब बात यह है कि हमारे देश में खिलाडिय़ों को निजी प्रायोजन (स्पॉन्सरशिप) के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं। निजी प्रायोजन विदेशों में आसानी से उपलब्ध होते हैं और कई खिलाड़ी इसी से अपनी ज़रूरतों को पूरा कर लेते हैं, जो भारत के खिलाड़ी आसानी से नहीं कर पाते।

ग़रीब घरों के सितारे

सोशल मीडिया पर जब महिला हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे के घर की तस्वीरें वायरल हुईं, तो सब स्तब्ध रह गये। खपरैल की छत वाला कच्चा घर और आगे आँगन के ऊपर प्लास्टिक से बना कवर। ओलंपिक हॉकी में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली सलीमा के आर्थिक स्थिति का इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह भी समझा जा सकता है कि कितनी विकट परिस्थितियों में रहकर यह खिलाड़ी देश का नाम रोशन करती हैं। झारखण्ड के सिमडेगा ज़िले के बडक़ीचापर गाँव में सलीमा टेटे घर की ये तस्वीरें वायरल होने के बाद यूजर्स ने काफ़ी कमेंट किये। एक यूजर ने लिखा- ‘देखो, ओलंपिक में देश का सम्मान बढ़ाने वाली लडक़ी का महल।’ अन्य यूजर्स ने भी हॉकी खिलाड़ी की आर्थिक हालत देखकर दु:ख जताया।

सलीमा के पिता सुलक्षण टेटे छोटे किसान हैं और बमुश्किल परिवार का पालन-पोषण करते हैं। सलीमा खेलने के लिए बांस की मोटी छड़ी के साथ लडक़ों के साथ ऊबड़-खाबड़ खेतों में अभ्यास करती थीं। सलीमा जब ओलंपिक में गयीं, तो परिवार के पास टीवी तक नहीं था। परिवारजन मैच देख सकें, इसके लिए प्रशासन ने उन्हें टीवी दिया। एक और डिफेंडर निक्की प्रधान का परिवार भी ग़रीबी में है। खेती से गुज़ारा होता है। पाँच भाई बहनों में दूसरे नंबर की निक्की की तीन बहनें शशि, कान्ति और सरीना भी हॉकी खेलती हैं। ग़रीबी से उठकर निक्की मेहनत के बूते भारतीय टीम में पहुँची है। मिडफील्डर नेहा गोयल की माँ सावित्री ने बेटी को सही जगह पहुँचाने के लिए फैक्ट्री में काम किया। एक और मिडफील्डर निशा वारसी के पिता सोहराब अहमद कपड़े की दुकान पर दर्ज़ी का काम करते हैं। परिवार किराये के मकान में रहता रहा। ज़िन्दगी की इसी जद्दोजहद में पिता को लकवा मार गया। बेटी का सपना पूरा करने लिए माँ मेहरुनिसा ने फैक्ट्री में मज़दूरी की। कप्तान रानी रामपाल फारवर्ड हैं और पिता रामपाल मेहनत मज़दूरी करते थे। रामपाल कोरोना से पीडि़त होने के बाद अब बेड पर हैं। एक समय रानी के माता-पिता के पास बेटी की हॉकी किट और जूते ख़रीदने तक के पैसे नहीं थे।

एक और फॉरवर्ड नवनीत कौर के पिता बूटा सिंह खेती-बाड़ी करते हैं। डिफेंडर उदिता के पिता यशवीर सिंह दूहन पुलिस में थे; लेकिन बीमारी के बाद सन् 2015 में उनका निधन हो गया, जिसके बाद परिवार पर संकटों का पहाड़ टूट पड़ा। माँ गीता देवी ने मुश्किल हालात में उदिता का पालन-षोषण किया। फॉरवर्ड शर्मिला देवी के पिता सुरेश कुमार भी ग़रीब किसान हैं। बहुत मुश्किल से उदिता हॉकी के अपनी मंज़िल तक पहुँच पायीं, जिसमें उनके कोच का भी बड़ा रोल रहा।

वाह! खेल भावना

ओलंपिक में खिलाडिय़ों के बीच स्पर्धा होती है। लेकिन इस बार एक अनुपम उदाहरण ने सबका दिल जीत लिया। ओलंपिक में पुरुषों की ऊँची कूद स्पर्धा के दौरान कतर के मुताज इसा बरशीम और इटली के गियानमार्को टेम्बरी ने स्वर्ण पदक शेयर किया।

जब दोनों ही खिलाड़ी ऊँची कूद के आख़िरी राउंड में निर्धारित ऊँचाई पर नहीं पहुँच सके। तब उन्हें मैच रेफरी ने अपने पास बुलाकर कहा कि विजेता का निर्धारण होने तक आप लोग अपनी-अपनी जंप जारी रखें। लेकिन कतर के एथलीट मुताज इसा बरशीम ने उनकी बात बीच में ही काटते हुए पूछा कि क्या एक इवेंट में दो विजेता हो सकते हैं, तो रेफरी ने हामी भर दी। ये सुनकर दोनों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। कतर के बरशीम ने तुरन्त अपने प्रतिद्वंद्वी इटली के टम्बेरी को गले लगाकर इस बात की पुष्टि कर दी कि दोनों को साझा रूप से विजेता घोषित किया गया। ओलंपिक खेलों के इतिहास में इस घटना को अविस्मरणीय खेल भावना के लिए हमेशा याद किया जाएगा; क्योंकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।

शर्मनाक लम्हे

टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी के सेमीफाइनल मु$काबले में अर्जेंटीना से हार के बाद भारतीय हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना कटारिया के घर के बाहर पटाखे फोडऩे और जातिगत टिप्पणी किये जाने की घटना हुई। आरोपियों ने कहा कि कई सारे दलित खिलाडिय़ों की वजह से भारत को हार मिली। निश्चित ही यह शर्मनाक हादसा था।

हरिद्वार के रोशनाबाद गाँव में फॉरवर्ड प्लेयर वंदना कटारिया के घर पर यह घटना हुई। उनके भाई शेखर के आरोप के मुताबिक, टीम की हार से हम सभी दु:खी थे। लेकिन इस बात का गर्व है कि लड़ते हुए हार मिली।

मैच के थोड़े ही देर के बाद घर के बाहर पटाखों का शोर सुनायी दिया। बाहर जाकर देखा तो गाँव के ही उच्च जाति के दो युवक नाच रहे थे। शेखर ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी, जिसके मुताबिक परिवार के लोग बाहर निकले, तो पटाखे जलाकर डांस कर रहे युवकों ने जातिगत टिप्पणी शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि टीम में कई दलित खिलाडिय़ों की वजह से ही हार मिली है। आरोपियों ने कहा कि केवल हॉकी ही नहीं, बल्कि हर एक खेल से दलितों को दूर रखना चाहिए। एफआईआर के मुताबिक, आरोपियों ने परिवार के सदस्यों का अपमान किया और शर्ट उतारकर नाचने लगे। सिडकुल थाने में शिकायत के आधार पर एक आरोपी को गिरफ़्तार भी किया गया।

किसके कितने खिलाड़ी व पदक?

ओलंपिक 2020 के तहत कुल 33 प्रतिस्पर्धाएँ आयोजित हुईं, जिनके लिए कुल 42 स्थानों पर 339 अलग-अलग मैच आयोजित किये गये। टोक्यो ओलंपिक इस साल का खेलों का सबसे बड़ा आकर्षण रहा। इन खेलों में भारत ने 126 एथलीटों का दल भेजा था। भारत के ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेना शुरू करने के बाद से यह ओलंपिक इतिहास में भारत का सबसे बड़ा दल रहा।

भारत के अलावा टोक्यो ओलंपिक खेलों में कुल 205 देशों ने हिस्सा लिया। अमेरिका ने इन खेलों के लिए 630 खिलाडिय़ों को भेजा था, जो ओलंपिक 2020 में सबसे बड़ा दल था। अमेरिका ने 39 स्वर्ण पदक समेत कुल 113 पदक जीतकर पहले स्थान पर क़ब्ज़ा किया, जबकि चीन 38 स्वर्ण समेत 88 पदक जीतकर दूसरे स्थान पर रहा।

जापान ने 27 स्वर्ण सहित 58 पदकों सहित तीसरा, ब्रिटेन ने 22 स्वर्ण सहित 65 पदक जीतकर चौथा और रूस के नाम बदलकर आरओसी के नाम से खेले खिलाडिय़ों ने 20 स्वर्ण सहित 71 पदक जीतकर पाँचवाँ स्थान हासिल किया। भारत का 48वाँ स्थान रहा।

चालू वित्त वर्ष में घटाया खेल बजट

भले आज देश के प्रधानमंत्री से लेकर अन्य नेता और सरकारें खिलाडिय़ों की मेहनत का श्रेय लेने की होड़ में हों; लेकिन एक कड़वा सच यह है कि मोदी सरकार ने इस साल खेलों का 230.78 करोड़ रुपये का बजट काट लिया था। कोरोना महामारी के कारण साल भर खेल गतिविधियाँ बन्द रहीं, जिसका लाभ लेते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2021-22 के बजट में खेल और युवा कार्य मंत्रालय को 2,596.14 करोड़ रुपये आवंटित किये, जो पिछले वर्ष के आवंटन से 230.78 करोड़ रुपये कम हैं।

यह आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ कि ओलंपिक वर्ष में देश की सरकार ने खेल बजट काट दिया हो। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2021-22 के लिए संसद में पेश बजट में कटौती का ज़िक्र किया था। हालाँकि यह पिछले वित्त वर्ष के संशोधित आवंटन से 795.99 करोड़ रुपये अधिक था। वहीं वर्ष 2020-21 के लिए मूल आवंटन 2,826.92 करोड़ रुपये था, जो बाद में घटाकर 1,800.15 करोड़ रुपये कर दिया गया था। मंत्रालय ने शुरुआत में पिछले साल के बजट में खेलों को 2826.92 करोड़ रुपये दिये थे, जो बाद में घटाकर 1,800.15 करोड़ कर दिये गये; क्योंकि कोरोना महामारी के कारण खेल नहीं हो रहे थे। खेलो इंडिया के लिए वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में 890.42 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। संशोधित अनुमान में इसे 328.77 कर दिया गया। वित्त वर्ष 2021-22 में इस मद के लिए परिव्य बढ़ाकर 657.71 करोड़ रुपये कर दिया गया था। वहीं राष्ट्रीय खेल महासंघों के लिए आवंटन पिछले बजट में 245 करोड़ रुपये था, जिसे संशोधित आवंटन बजट अनुमान में 132 करोड़ रुपये कर दिया गया। हालाँकि अगले वित्त वर्ष के लिए बढ़ाकर 280 करोड़ रुपये किया गया।

राष्ट्रीय खेल विकास कोष के लिए 25 करोड़ रुपये दिये गये, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में संशोधित आवंटन 7.23 करोड़ रुपये है। भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को मिलने वाले आवंटन में भी इज़ाफ़ा किया गया। साई को 660.41 करोड़ रुपये आवंटित किये गये। जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के बजट अनुमान में आवंटन 500 करोड़ रुपये था, जो संशोधित अनुमान में 612.21 करोड़ रुपये हैं। खिलाडिय़ों के लिए प्रोत्साहन का बजट 70 करोड़ रुपये से घटाकर 53 करोड़ रुपये कर दिया गया। वहीं 2010 राष्ट्रमंडल खेल साई स्टेडियमों की मरम्मत का बजट 75 करोड़ रुपये से घटाकर 30 करोड़ रुपये कर दिया गया।

खिलाडिय़ों पर इनामों की बौछार

ओलंपिक में पदक विजेताओं और अन्य राज्यों के खिलाडिय़ों के लिए पुरस्कारों की बड़े पैमाने पर बौछार हुई है। भारत को एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले स्टार भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा पर उनकी इस उपलब्धि के लिए देश भर से शनिवार को पुरस्कारों की बरसात हो रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने राज्य के खिलाड़ी चोपड़ा के लिए छ: करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की है।

भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) और इंडियन प्रीमियर लीग फ्रेंचाइजी चेन्ई सुपर किंग्स ने भी चोपड़ा को एक-एक करोड़ रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की। बीसीसीआई ने अन्य पदक विजेता भारतीय खिलाडिय़ों को भी नक़द पुरस्कार देने की घोषणा की है। खट्टर ने कहा कि चोपड़ा को पंचकुला में बनने वाले एथलेटिक्स के सेंटर फॉर एक्सीलेंस का प्रमुख बनाया जाएगा। ओलंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में देश के लिए दूसरा और ट्रैक-ऐंड-फील्ड में पहला स्वर्ण जीतकर नीरज चोपड़ा ने शनिवार को इतिहास रच दिया। खट्टर ने कहा कि‍ हमारी खेल नीति के तहत नीरज को छ: करोड़ रुपये का नक़द पुरस्कार, प्रथम श्रेणी (क्लास वन) की नौकरी और सस्ती दरों पर भूखण्ड (प्लॉट) दिया जाएगा।

अमरिंदर सिंह ने भी चोपड़ा की उपलब्धि की सराहना की और आधिकारिक बयान जारी करके उनके लिए दो करोड़ रुपये के नक़द पुरस्कार की घोषणा की। अमरिंदर ने कहा कि यह समूचे देशवासियों और पंजाबियों के लिए गर्व का मौक़ा है। सेना में कार्यरत नीरज चोपड़ा के परिवार की जड़ें पंजाब में हैं।

हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर ने घोषणा की कि पहलवान रवि दहिया और बजरंग पूनिया के सोनीपत और झज्जर ज़िले स्थित पैतृक गाँवों में इंडोर कुश्ती स्टेडियम बनाया जाएगा। टोक्यो ओलंपिक में हरियाणा के पहलवान रवि दहिया ने रजत और बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक जीता। प्रदेश सरकार की पदक नीति के तहत कांस्य पदक जीतने वाले पूनिया को ढाई करोड़ का नक़द इनाम, सस्ती दर पर भूखण्ड और सरकारी नौकरी दी जाएगी। रवि दहिया ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाले दूसरे पहलवान हैं। उन्हें चार करोड़ रुपये की इनामी राशि के अलावा प्रथम श्रेणी की नौकरी और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण का एक भूखण्ड सस्ती दर पर दिया जाएगा। हरियाणा सरकार भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा रही प्रदेश की नौ खिलाडिय़ों को भी 50-50 लाख का नक़द इनाम देगी और ओलंपिक की किसी भी स्पर्धा में चौथे स्थान पर आने वाले राज्य के खिलाड़ी को भी इतनी ही र$कम दी जाएगी। बीसीसीआई के सचिव जय शाह ने ट्वीट कर यह घोषणा भी की कि रजत पदक विजेता मीराबाई चानु और रवि दहिया को भी 50-50 लाख रुपये क्रिकेट बोर्ड देगा। मीराबाई चानु ने भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में पहला पदक जीता था। रवि दहिया ओलंपिक में कुश्ती में सुशील कुमार (2012) के बाद रजत पदक जीतने वाली दूसरे पहलवान हैं। कांस्य पदक विजेता पहलवान बजरंग पूनिया, बॉक्सर लवलीना बारगोहेन और बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु को भी 25-25 लाख रुपये दिये जाएँगे।

देश के लिए हॉकी में 41 साल बाद ओलंपिक पदक जीतने वाली पुरुष हॉकी टीम को भी 1.25 करोड़ रुपये बोर्ड देगा। कई निजी कम्पनियों ने भी खिलाडिय़ों के लिए इनाम और प्रोत्साहन की घोषणा की है। आईपीएल फ्रेंचाइजी चेन्नई सुपर किंग्स चोपड़ा को एक करोड़ का नक़द इनाम देने के अलावा 8758 नंबर की एक विशेष जर्सी भी उनके सम्मान में जारी करेगी। गुरुग्राम स्थित रियेल एस्टेट कम्पनी ऐलान ग्रुप के अध्यक्ष राकेश कपूर ने नीरज चोपड़ा के लिए 25 लाख के इनाम की घोषणा की, तो वहीं इंडिगो ने एक साल के लिए उन्हें असीमित मुफ़्त यात्रा की पेशकश की है।

मणिपुर सरकार ने चानु को एक करोड़ रुपये और नौकरी दी। चोपड़ा हरियाणा के पानीपत ज़िले के खांद्रा गाँव के रहने वाले हैं। अभिनव बिंद्रा ने इससे पहले भारत के लिए सन् 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत के लिए व्यक्तिगत स्पर्धा में पहली बार निशानेबाज़ी का स्वर्ण पदक जीता था। इससे पहले मणिपुर सरकार ने चानु को एक करोड़ रुपये और सहायक पुलिस अधीक्षक (खेल) का नियुक्ति-पत्र दिया था।

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्य रहीं राज्य की वंदना कटारिया को 25 लाख रुपये के नक़द पुरस्कार की घोषणा की; जबकि झारखण्ड सरकार ने इसी टीम का हिस्सा रहीं अपने राज्य की दो खिलाडिय़ों सलीमा टेटे और निक्की प्रधान को 50-50 लाख रुपये देने की घोषणा की है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी पुरुष हॉकी टीम का हिस्सा रहे प्रदेश के दो खिलाडिय़ों विवेक सागर और नीलाकांत शर्मा के लिए एक-एक करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की है। रेलवे ने भी टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतने वाले खिलाडिय़ों और उनके कोच को नक़द इनाम देने की घोषणा की है। रेलवे ने स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी को तीन करोड़ रुपये और उनके कोच को 25 लाख रुपये देने का ऐलान किया है। सिल्वर जीतने वाले खिलाड़ी को दो करोड़ और कोच को 20 लाख दिये जाएँगे। ब्रॉन्ज जीतने वाले खिलाडिय़ों को एक करोड़ रुपये और कोच को 15 लाख का इनाम दिया जाएगा। इसके अलावा ओलंपिक में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों को 7.5 लाख रुपये दिये जाएँगे। भारतीय ओलंपिक संघ ने मेडल विजेताओं के लिए नक़द इनाम की घोषणा पहले से कर रखी है। इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) ने स्वर्ण जीतने पर 75 लाख रुपये, रजत (सिल्वर) जीतने पर 40 लाख और कांस्य (ब्रॉन्ज) जीतने पर 25 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की है। अब तक के 5 पदक विजेताओं को इसी हिसाब से इनामी राशि दी जाएगी।

 

कुछ दिलचस्प बातें

 भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक के हॉकी इवेंट में अपना पहला स्वर्ण पदल सन् 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में जीता था, जो भारत का पहला ओलंपिक भी था। मेजर ध्यानचंद ने इस पूरे ओलंपिक में अकेले सबसे ज़्यादा 14 गोल दाग़े, जबकि भारतीय टीम ने पाँच मैचों में कुल 29 गोल किये थे। भारतीय हॉकी का यह स्वर्णिम युग कहा जाता है।

 कर्णम मल्लेश्वरी भारत की पहली महिला एथलीट हैं, जिन्होंने ओलंपिक पदक जीता। भारतीय खेलों के लिए गौरव का पहला पल सिडनी 2000 में आया जब कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था। ओलंपिक इतिहास में भारत के नाम अब तक कुल 35 पदक हैं। इनमें 10 स्वर्ण, नौ रजत और 16 कांस्य पदक शामिल हैं। सबसे ज़्यादा आठ स्वर्ण पदक भारत ने हॉकी में जीते हैं। भारत ने 2012 लंदन आलंपिक में सर्वाधिक जीते 6 पदकों को पीछे छोड़ते हुए टोक्यो ओलंपिक में 7 पदक अपने नाम किये।

 भारत ने अब तक 24 ओलंपिक में हिस्सा लिया है, जिसमें 6 ओलंपिक में भारत को एक भी मेडल नसीब नहीं हो सका। भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने 2012 के लंदन ओलंपिक में देश के लिए कांस्य पदक जीता। नेहवाल ओलंपिक पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। सन् 2012 के लंदन ओलंपिक में बैडमिंटन विमेन सिंगल्स में कांस्य पदक के लिए साइना का मुक़ाबला चीन की शिन वांग से हुआ था। भारतीय महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक की शुरुआत में सिल्वर मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया। टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतने वाली वह पहली खिलाड़ी बनीं।

 ओलंपिक की किसी स्पर्धा के फाइनल तक पहुचने वाली प्रथम भारतीय महिला पीटी उषा हैं। वह सेकेंड के 100वें हिस्से के अन्तर से पदक से चूक गयी थीं। इस बार ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत को 13 साल बाद दूसरा स्वर्ण पदक मिला। बीजिंग ओलंपिक 2008 में पहली बार शूटर अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पदक जीता था।

 

भारत के पदक विजेता

 

नीरज चोपड़ा (स्वर्ण पदक)

ओलंपिक खेलों में पहली बार हिस्सा ले रहे नीरज चोपड़ा ने भारत के लिए गौरव के सबसे बेहतरीन क्षण दिये। भारतीय टीम ने 13 साल बाद ओलंपिक में स्वर्ण पदक का सूखा ख़त्म किया और ट्रैक ऐंड फील्ड में तो यह भारत का पहला स्वर्ण पदक रहा। टोक्यो में नीरज चोपड़ा ने भारत को यह स्वर्ण पदक दिलाया। उन्होंने 87.58 मीटर भाला फेंक (जैबलिन थ्रो) के साथ भारत की झोली में यह स्वर्ण पदक डाला।

नीरज ने 2021 में ही इंडियन ग्रॉ प्री-3 में 88.07 मीटर भाला फेंक के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था। जून में पुर्तगाल के लिस्बन में हुए मीटिंग सिडडे डी लिस्बोआ टूर्नामेंट में उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। नीरज का लक्ष्य 90 मीटर भाला फेंक करने का है। उनसे पहले सन् 2008 के बीजिंग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल के व्यक्तिगत स्पर्धा में अभिनव बिंद्रा एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता रहे।

 

मीराबाई चानू (रजत पदक)

टोक्यो ओलंपिक में भारत के पदकों का खाता पहले ही दिन मीराबाई चानू ने रजत पदक के साथ खोला था। चानू ने भारोत्तोलन के 49 किलोवर्ग में कुल 202 किलो (87 किलो + 115 किलो) भार उठाकर भारत के लिए इस प्रतिस्पर्धा में 21 साल बाद ओलंपिक पदक हासिल किया। सिडनी ओलंपिक 2000 के 69 किलो भारोत्तोलन में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता था।

 

पीवी सिंधु (कांस्य पदक)

पिछले ओलंपिक में रजत पदक जीत चुकीं महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने टोक्यो में भारत को दूसरा पदक दिलाया। सिंधु ने रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था। टोक्यो में कांस्य पदक जीतकर वे (पहली महिला) दूसरी ऐसी खिलाड़ी बन गयीं, जिन्होंने व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में दो ओलंपिक पदक हासिल किये हैं। सुशील कुमार ने कुश्ती में बीजिंग ओलंपिक 2008 में कांस्य और लंदन ओलंपिक 2012 में रजत पदक हासिल किये थे।

लवलीना बोरगोहाईं (कांस्य पदक)

मुक्केबाज़ लवलीना बोरगोहाईं ने टोक्यो ओलंपिक में यादगार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया। लवलीना 69 किलो वेल्टरवेट कैटिगरी के सेमीफाइनल में तुर्की की वल्र्ड नंबर-1 बॉक्सर बुसेनाज सुरमेनेली से हार गयी थीं। उन्हें कांस्य पदक मिला। भारत को नौ साल के बाद ओलंपिक बॉक्सिंग में पदक हासिल हुआ है। असम के गोलाघाट ज़िले की लवलीना बॉक्सिंग में ओलंपिक पदक हासिल करने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। उनसे पहले विजेंदर सिंह ने सन् 2008 बीजिंग ओलंपिक और मेरी कॉम ने सन् 2012 लंदन ओलंपिक में भारत के लिए बॉक्सिंग में कांस्य पदक हासिल किये थे।

 

 

रवि दहिया (रजत पदक)

भारत को टोक्यो ओलंपिक में दूसरा रजत पदक रवि दहिया ने दिलाया। रवि 57 किलोवर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती के फाइनल में दूसरी वरीयता प्राप्त रूसी ओलंपिक समिति के पहलवान जावुर युगुऐव से 4-7 से मात खा गये थे और उन्हें रजत से सन्तोष करना पड़ा था। रवि दहिया ओलंपिक में रजत पदक हासिल करने वाले दूसरे पहलवान हैं। उनसे पहले सुशील कुमार ने सन् 2012 के लंदन ओलंपिक में यह कामयाबी हासिल की थी।

बजरंग पूनिया (कांस्य पदक)

बजरंग पूनिया का यह पहला ओलंपिक था और वे 65 किलोवर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती के सेमीफाइनल में हार गये। लेकिन कांस्य पदक के मु$काबले में उन्होंने कज़ाख़िस्तान के दौलेत नियाज़बेक़ोव को कोई मौक़ा नहीं दिया और 8-0 से हराकर पदक हासिल किया। यह टोक्यो ओलंपिक के समाप्त होने से ठीक एक दिन पहले भारत का छठा पदक था।

पुरुष हॉकी टीम

किसी समय हॉकी का पॉवर हाउस कहलाये जाने वाले भारत ने आठ बार ओलंपिक में स्वर्ण जीता है। इस बार चैंपियन भारतीय हॉकी टीम के लिए टोक्यो ओलंपिक बड़ी सफलता लेकर आया; वह भी 41 साल के लम्बे सूखे के बाद। भारतीय टीम लम्बे अरसे के बाद ओलंपिक हॉकी के सेमीफाइनल में पहुँची और वल्र्ड नंबर-1 और टोक्यो में चैंपियन बनी बेल्जियम को कड़ी टक्कर देने के बाद हारी। लेकिन जब मुक़ाबला कांस्य पदक के लिए हुआ, तो भारतीय टीम ने अपनी रफ़्तार से जर्मनी जैसी मज़बूत टीम को मात दे दी। अब ओलंपिक हॉकी में भारत के आठ स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदकों समेत 12 पदक हो गये हैं। यह टोक्यो में भारत का पाँचवाँ पदक रहा।

पदक से चूके, लेकिन प्रतिभा ग़ज़ब

इस ओलंपिक में हमारे कई खिलाड़ी पदक के बहुत पास पहुँचकर भी चूक गये। बहुत सम्भावना थी कि वे पदक अपने नाम कर लेंगे; लेकिन ऐन मौक़े पर वे इससे वंचित रह गये। टीम और व्यक्तिगत स्पर्धा दोनों में। आइए, जानते हैं उन खेलों और खिलाडिय़ों को, जो पदक के बहुत क़रीब पहुँच गये थे :-

महिला हॉकी टीम

अभी तक निचले पायदान पर माने जाने वाली महिला हॉकी टीम ने ऐसा खेल दिखाया कि ख़ुद भारतीय महिला हॉकी के कर्ताधर्ता अवाक् रह गये। टीम ने ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को पानी पिला दिया और सेमीफाइनल तक जा पहुँची। इस टीम की खिलाडिय़ों का प्रदर्शन कमाल का रहा। और भी हैरानी भरी बात यह थी कि यह टीम महज़ अपना तीसरा ओलंपिक खेल रही थी। भारतीय महिला हॉकी टीम कांस्य पदक से भले चूक गयी, लेकिन उसने बता दिया कि आने वाले समय में महिला हॉकी में दुनिया की कोई भी टीम उसे हलक़े में नहीं लेगी। कांस्य पदक मैच में भी वह अपने से कहीं अनुभवी ग्रेट ब्रिटेन की टीम से महज़ एक गोल के अन्तर से 3-4 से हारी। पहले क्वार्टर में कमज़ोर प्रदर्शन के बाद भारतीय टीम ने दूसरे क्वार्टर में शानदार खेल दिखाया और एक मौक़े पर ब्रिटेन की खिलाडिय़ों को हक्का-बक्का कर दिया। चार मिनट में तीन गोल करके भारत ने ब्रिटेन पर जो दबाव बनाया, उसे अगर बरक़रार रख पायी होती, तो कांस्य पदक ब्रिटेन की नहीं, भारत की झोली में होता। पूरे टूर्नामेंट में भारत ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। वह पूल-ए में थी और उसने मैच भी सिर्फ़ दो ही जीते थे, जिसके बूते वह क्वार्टर फाइनल में पहुँची थी। लेकिन क्वार्टर फाइनल में भारतीय टीम पूरी तरह बदली हुई दिखी। ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से रौंदकर वह सेमीफाइनल में पहुँची। सेमीफाइनल में भारत को अर्जेंटीना ने 2-1 से हरा दिया, जिसके बाद भारत को कांस्य पदक का मैच ब्रिटेन से खेलना पड़ा। टीम ने कमाल का खेल खेला।

हालाँकि अनुभव की कमी से रक्षा पंक्ति भी कुछ मौक़ों पर छिन्न-भिन्न हुई और दाएँ छोर का आक्रमण भी कमज़ोर रहा। इन ग़लतियों ने भले कांस्य पदक भारत की झोली में आने से रोक दिया; लेकिन भविष्य की बड़ी उम्मीद ज़रूर जगा दी। वंदना कटारिया ने टूर्नामेंट में चार गोल दाग़े। यही नहीं, ओलंपिक्स में हैट्रिक मारने वाली वंदना पहली भारतीय बनीं। गोलकीपर सविता पूनिया की कलाई का जादू देखने को मिला, तो ड्रैग फ्लिकर गुरजीत कौर की पेनेल्टी कार्नर को गोल में बदलने की प्रतिभा और मेहनत से निखर सकती है।

अदिति अशोक : हॉकी के बाद बात व्यक्तिगत स्पर्धा की। इसमें 23 वर्षीय गोल्फर अदिति अशोक आख़िरी वक़्त तक पदक की दावेदार बनी रही। दुनिया में गोल्फ में भले अदिति की रैंकिंग 200वीं हो, टोक्यो ओलंपिक में अदिति का नाम हर किसी की ज़ुबान पर था। अदिति ने चार दिन तक ज़्यादातर समय ख़ुद तो दूसरे नंबर पर बनाये रखा। लेकिन चौथे दिन उनका प्रदर्शन थोड़ा ख़राब हुआ, जब जापान और न्यूजीलैंड की गोल्फर्स ने कमाल का प्रदर्शन कर अदिति को चौथे नंबर पर धकेल दिया। अदिति इसके बाद ओवरऑल चौथे नंबर पर रहीं और बेहद क़रीबी अन्तर से पदक गँवा बैठीं।

याद रहे पिछले ओलंपिक में जो रियो में हुआ था, में अदिति 41वें नंबर पर रही थीं। अब टोक्यो में अदिति के प्रदर्शन ने अगली बार के लिए बड़ी उम्मीद जगा दी है। भारत, जहाँ गोल्फ उतना ज़्यादा लोकप्रिय खेल नहीं है, वहाँ अपने प्रदर्शन से खेल को घर-घर में परिचित करवा दिया है। अभी उम्र अदिति के हक़ में है और बहुत ज़्यादा उम्मीद है कि आने वाले समय में वह और ऊपर के पायदान पर पहुँचेगी।

अतनु दास : आर्चरी में अतनु दास (29) ने सिंगल्स इवेंट में कमाल का प्रदर्शन किया। अतनु भारत की उम्दा आर्चर दीपिका कुमारी के पति हैं, जो ख़ुद पदक की मज़बूत दावेदार थीं। तीसरा ओलंपिक्स खेल रहीं दीपिका उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं; लेकिन उनके पति अतनु दास ने लगातार अपने पहले दो मैचों में दुनिया के टॉप आर्चर्स को हराकर सनसनी मचा दी। दास ने पहले ओलंपिक्स टीम इवेंट के सिल्वर मेडलिस्ट चाइनीज ताइपे के डे यु चेंग को हराया। अतनु 6-5 से विजयी हुए। अगले मैच में ओलंपिक्स चैंपियन कोरिया के ओह जिन हाएक को हराकर उन्होंने अपने लिए पदक की मज़बूत सम्भावना जगा दी। अतनु ने कोरियन आर्चर के ख़िलाफ़ शूट ऑफ में गये मैच को 6-5 से अपने नाम किया। याद रहे ओह जिन 2012 के लंदन गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट और टोक्यो गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट कोरियन टीम का हिस्सा थे। लेकिन राउंड ऑफ-16 में दास को जापानी आर्चर से हार झेलनी पड़ी। फुरुकावा ने अतनु को 6-4 से हराया, जो बाद में कांस्य पदक जीते।

अविनाश सबले : स्टीपलचेज (बाधा दौड़) की 3,000 मीटर रेस में भारत की ओर से अविनाश सबले ने दूसरी हीट में 8.18.12 का समय निकाला, जो नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना। उन्होंने इसके लिए अपना ही पिछले रिकॉर्ड तोड़ा। लेकिन सबले फाइनल तक नहीं पहुँच पाये। कुल मिलाकर 13वें सबसे तेज़ धावक इस ओलंपिक में बने। सबले ने हाल के महीनों में लगातार अपना प्रदर्शन बेहतर किया है। यदि कोशिश करें तो सबले सम्भावना जगा सकते हैं।

रिले टीम

एथलेटिक्स में भारत के पुरुषों की 4 & 400 मीटर रिले टीम फाइनल में तो नहीं पहुँची लेकिन अमोल जैकब, नागनाथन पंडी, निर्मल नोआह टॉम और मुहम्मद अनस की टीम ने टोक्यो में अपने प्रदर्शन से एशियाई रिकॉर्ड तोड़ डाला। टीम ने 3.00.24 मिनट का समय लिया और दूसरी हीट में चौथे नंबर पर रहे। इवेंट की दोनों हीट मिलाकर कुल आठ टीमों को फाइनल में जाना था, जबकि भारतीय टीम ओवरऑल नौवें नंबर पर रही। हालाँकि उनका प्रदर्शन ज़ाहिर करता है कि मेहनत से टीम टॉप की पंक्ति में पहुँच सकती है।