सवालों के घेरे में रेलवे

‘तहलका’ की कवर स्टोरी की जाँच सन् 1987 से आज तक की अवधि के दौरान मालगाडिय़ों से लापता 500 से अधिक डिब्बों के बारे में वर्षवार विवरण देती है। आरटीआई से डिब्बों के रहस्यमय ढंग से लापता होने की पुष्टि होती है, तो वहीं क़र्ज़ के जाल में फँसने वाले रेलवे के लिए भी यह गहरी चिन्ता का विषय है। भारतीय रेल वित्त निगम (आईआरएफसी) ने 2021-22 के दौरान 38,917 करोड़ रुपये जुटाये। इसके साथ आईआरएफसी की कुल उधारी 3,42,697 करोड़ रुपये हो गयी है, जो सितंबर, 2020 की इसी अवधि की उधारी 2,45,349.32 करोड़ से 40 फ़ीसदी ज़्यादा है।

पिछले सात साल के दौरान रेल मंत्रालय द्वारा जुटाये गये उधार और ऋण लगभग 7,00,000 करोड़ रुपये हैं। इनमें आईआरएफसी द्वारा जुटाये गये 3,42,697 करोड़ रुपये, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) से 1,50,000 करोड़ रुपये का क़र्ज़, हाई स्पीड मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के लिए जापान से 1,00,000 करोड़ रुपये और बाक़ी विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से। साथ ही रेलवे की परिचालन लागत भी बहुत अधिक है, क्योंकि एक रुपया कमाने के लिए उसे 96.2 पैसे ख़र्च करने पड़ते हैं; जिसका अर्थ है कि जो अधिशेष वह कमाता है, वह उसके रखरखाव और वृद्धि के लिए बहुत कम है। इस सबसे ज़ाहिर होता है कि भारतीय रेलवे में कुछ गम्भीर गड़बड़ी है।