शिक्षा का दायरा बढ़ाकर ही सम्भव है भारत का सर्वांगीण विकास

प्रति वर्ष 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने सन् 1966  में साक्षरता एवं शिक्षा के प्रति विश्व के लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया था। आज भारत समेत दुनिया के कई देश अलग-अलग सामाजिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, अशिक्षा उन्हीं में से एक है। वर्तमान समय में शिक्षा किसी भी समाज के विकास की एक अनिवार्य शर्त है। साक्षर एवं शिक्षित नागरिक विज्ञान, स्वास्थ्य, आर्थिक, राजनीतिक तथा लोक प्रशासन जैसे विविध क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और समाज में अनुकूल बदलाव ला सकता है। यूरोपीय देश इसके शानदार उदाहरण हैं, जहाँ आज कई देशों में साक्षरता स्तर 100 फ़ीसदी तक पहुँच गया है। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में दुनिया में साक्षरता तेज़ी से बढ़ी है; लेकिन यह दुर्भाग्य है कि आज भी करोड़ों युवा तथा महिलाएँ कई कारणों से अशिक्षित हैं। यूनेस्को के हाल के आँकड़े यह बताते हैं कि दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया तथा उप-सहारा अफ्रीकी देशों में सबसे ज़्यादा निरक्षर वयस्क आबादी रहती हैं। ज़्यादातर यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा एशिया के विकसित देशों में साक्षरता दर विकासशील देशों के मुक़ाबले बेहद शानदार है। दुनिया में वयस्क अशिक्षितों में आज भी लगभग दो-तिहाई संख्या महिलाओं की हैं। यह निराशाजनक है कि 21वीं सदी में आज जहाँ हमें उच्च एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बारे में बातें करनी चाहिए थीं, वहीं हम अभी तक निरक्षरता और साक्षरता पर ही बहस कर रहे हैं। आज भी कई अफ्रीकी देश ऐसे हैं, जिन्हें 50 फ़ीसदी साक्षरता दर हासिल करने में अभी भी कई साल लगेंगे। दक्षिण सूडान, चाड, नाइजर, बुर्किना फासो तथा माली कुछ ऐसे ही देश हैं। इंटरनेट पर प्राप्त कुछ वेबसाइट्स के आँकड़ों के अनुसार, उत्तर कोरिया और उज्बेकिस्तान जैसे कुछ छोटे विकासशील देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी साक्षरता दर तो लगभग शत-प्रतिशत कर ली है; लेकिन वे उच्च शिक्षा तथा विकास के अन्य पैमानों पर अभी भी बहुत पीछे हैं।

भारत में साक्षरता दर

पिछले वर्ष राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा जारी 75वें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) की रिपोर्ट बताती है कि देश की साक्षरता 77.7 फ़ीसदी है; जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 फ़ीसदी, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 फ़ीसदी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं से ज़्यादा है। केरल 96.2 फ़ीसदी साक्षरता के साथ एक बार फिर पहले पायदान पर है, जबकि आंध्र प्रदेश 66.4 फ़ीसदी साक्षरता दर के साथ राज्यों में सबसे निचले स्थान पर है। दिल्ली (88.7 फ़ीसदी), उत्तराखण्ड (87.6 फ़ीसदी), हिमाचल प्रदेश (86.6 फ़ीसदी) तथा असम (85.9 फ़ीसदी) में साक्षरता दर बहुत अच्छा है और ये शीर्ष पाँच में शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर राजस्थान (69.7 फ़ीसदी), बिहार (70.9 फ़ीसदी), तेलंगाना (72.8 फ़ीसदी) व उत्तर प्रदेश (73 फ़ीसदी) में साक्षरता दर बाक़ी राज्यों की तुलना में कम हैं और यहाँ बेहतर करने की ज़रूरत है। यह सर्वेक्षण हिन्दी राज्यों में फैले इस भ्रम को तोड़ता है, जो यह मानते हैं कि दक्षिण के सभी राज्यों में साक्षरता दर ज़्यादा है। इस सर्वेक्षण से हमें यह भी पता चलता है कि आंध्र प्रदेश, राजस्थान, बिहार, तेलंगाना तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की साक्षरता राष्ट्रीय साक्षरता दर के औसत से कम है।

इस सर्वेक्षण में एक बेहद महत्त्वपू्र्ण बात यह है कि केरल में पुरुषों और महिलाओं के बीच जो साक्षरता का अन्तर है, वह मात्र 2.2 फ़ीसदी है; जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह अन्तर 14 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। बड़े हिन्दी भाषी राज्यों में पुरुषों तथा महिलाओं के बीच साक्षरता का अन्तर राष्ट्रीय स्तर से भी बहुत ज़्यादा है। राजस्थान में यह अन्तर 23.2 फ़ीसदी, बिहार में 19.2 फ़ीसदी तथा उत्तर प्रदेश में 18.4 फ़ीसदी का है, जिसे कम करना बेहद ज़रूरी है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि शहरी साक्षरता दर 87.7 फ़ीसदी जबकि ग्रामीण साक्षरता दर 73.5 फ़ीसदी है। ग्रामीण साक्षरता के दृष्टिकोण से राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहाँ पुरुषों तथा महिलाओं के बीच साक्षरता का अन्तर 25 फ़ीसदी है, जो बेहद गम्भीर स्थिति है।

देश में साक्षरता एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा ग़ैर- सरकारी संगठन आज देश के कोने-कोने में कार्य कर रहे हैं। लेकिन फिर भी सच यही है कि देश में आज भी करोड़ों लोग निरक्षर हैं। एक तरफ़ हम आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ करोड़ों लोग इस देश में ऐसे भी हैं, जो अपना हस्ताक्षर तक नहीं कर सकते। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि साक्षर एवं शिक्षित भारत ही प्रगतिशील सोच का द्वार खोलेगा, जिसके द्वारा सही मायनों में सामाजिक विकास सम्भव होगा। यह दु:खद बात है कि आज शिक्षा से जुड़ी कई सरकारी योजनाएँ तथा अभियान जैसे मिड-डे मील,  छात्रवृत्ति योजना, समग्र शिक्षा अभियान, इत्यादि के बावजूद आज भी लाखों बच्चे स्कूल से बाहर हैं। बहुत सारे बच्चे स्कूल में तो आ जाते हैं; लेकिन वे प्राथमिक कक्षा से माध्यमिक तक पहुँचते-पहुँचते स्कूल ही आना छोड़ देते हैं। ऐसे में यहाँ सवाल यह उठता है कि कोई भी देश बिना बच्चों को शिक्षित किये कैसे बेहतर भविष्य का सपना देख सकता है?

हमें यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि सतत् विकास के कई वैश्विक लक्ष्यों में एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी है, जो साक्षरता से कई क़दम आगे की बात है। अगर हमें वास्तव में इस वैश्विक लक्ष्य को एक समय सीमा के अन्दर प्राप्त करना हैं, तो सभी देशों की सरकारों, ग़ैर-सरकारी संगठनों तथा यूनेस्को जैसे वैश्विक महत्त्व के संस्थानों को बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। विश्वव्यापी उच्च साक्षरता दर प्राप्त करने के लिए सामाजिक जागरूकता तथा आर्थिक सशक्तिकरण ज़रूरी है। अत: इस दिशा में सभी देश की केंद्र और सभी राज्य सरकारों तथा वैश्विक संगठनों को गम्भरतापूर्वक प्रयास करने की ज़रूरत है।

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)