देश में साक्षरता एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा ग़ैर- सरकारी संगठन आज देश के कोने-कोने में कार्य कर रहे हैं। लेकिन फिर भी सच यही है कि देश में आज भी करोड़ों लोग निरक्षर हैं। एक तरफ़ हम आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ करोड़ों लोग इस देश में ऐसे भी हैं, जो अपना हस्ताक्षर तक नहीं कर सकते। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि साक्षर एवं शिक्षित भारत ही प्रगतिशील सोच का द्वार खोलेगा, जिसके द्वारा सही मायनों में सामाजिक विकास सम्भव होगा। यह दु:खद बात है कि आज शिक्षा से जुड़ी कई सरकारी योजनाएँ तथा अभियान जैसे मिड-डे मील, छात्रवृत्ति योजना, समग्र शिक्षा अभियान, इत्यादि के बावजूद आज भी लाखों बच्चे स्कूल से बाहर हैं। बहुत सारे बच्चे स्कूल में तो आ जाते हैं; लेकिन वे प्राथमिक कक्षा से माध्यमिक तक पहुँचते-पहुँचते स्कूल ही आना छोड़ देते हैं। ऐसे में यहाँ सवाल यह उठता है कि कोई भी देश बिना बच्चों को शिक्षित किये कैसे बेहतर भविष्य का सपना देख सकता है?
हमें यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि सतत् विकास के कई वैश्विक लक्ष्यों में एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी है, जो साक्षरता से कई क़दम आगे की बात है। अगर हमें वास्तव में इस वैश्विक लक्ष्य को एक समय सीमा के अन्दर प्राप्त करना हैं, तो सभी देशों की सरकारों, ग़ैर-सरकारी संगठनों तथा यूनेस्को जैसे वैश्विक महत्त्व के संस्थानों को बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। विश्वव्यापी उच्च साक्षरता दर प्राप्त करने के लिए सामाजिक जागरूकता तथा आर्थिक सशक्तिकरण ज़रूरी है। अत: इस दिशा में सभी देश की केंद्र और सभी राज्य सरकारों तथा वैश्विक संगठनों को गम्भरतापूर्वक प्रयास करने की ज़रूरत है।
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)