विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस पर विशेष, पर्यावरण संरक्षण में नाकामी दु:खद

पर्यावरण संरक्षण क़ानून

पर्यावरण संरक्षण को लेकर दुनिया भर में कई क़ानून बने हैं; लेकिन उनका कड़ाई से पालन न होने के चलते पर्यावरण को होने वाले नुक़सानों को आज तक नहीं रोका जा सका है। भारत में पर्यावरण संरक्षण को लेकर सन् 1969 में केंद्र सरकार ने एक विधेयक तैयार किया था, जिसे 30 नवम्बर, 1972 को संसद में प्रस्तुत किया गया। दोनों सदनों से पास होने के बाद इस विधेयक को 23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।

जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम-1974 के नाम से बना यह क़ानून 26 मार्च, 1974 से पूरे देश में लागू है; लेकिन जल प्रदूषण आज चरम पर है। इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण के लिए वायु प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम-1981 बना, जो 16 मई, 1987 से क़ानून के रूप में देश भर में लागू है। इस क़ानून के तहत मुख्यत: वाहनों और कारख़ानों से निकलने वाले धुएँ और गन्दगी का स्तर निर्धारित करना और उसे नियंत्रित करना है।

इसके अलावा सन् 1952 में भारतीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया। इस बोर्ड के अंतर्गत वन्य-जीवन पार्क और अभयारण्य बनाये गये। इसके बाद वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम-1972 बना, जिसके तहत शेरों के संरक्षण के लिए सन् 1972 में, बाघों के संरक्षण के लिए 1973 सन् में, मगरमच्छों के संरक्षण के लिए 1984 में और इसी तरह अन्य पशुओं के संरक्षण के लिए अलग-अलग समय पर अधिनियम बने। इसके बाद वन संरक्षण अधिनियम-1980 भी बना। इसके बावजूद भारत में न तो पर्यावरण संरक्षित हो पा रहा है और न ही इसे प्रभावित करने वाले लोगों को सजा दी जा रही है।

कैसे बचेगा पर्यावरण?

पर्यावरण का संरक्षण तभी सम्भव है, जब लोगों में इसके प्रति जागरूकता पनपेगी और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी निभाएँगे। इसके लिए सबसे पहले लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना होगा और उन्हें पर्यावरण ख़राब होने से होने वाले नुक़सानों को बताना होगा। स्कूल स्तर पर ही पर्यावरण के बारे में बच्चों को पढ़ाना होगा। हर आदमी को पौधे लगाने के लिए प्रेरित करना होगा और बताना होगा कि वह हर साल दो-चार पौधे लगाने का संकल्प लेने के साथ-साथ वृक्षों को काटने से बचाए। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदारी किसानों की हो सकती है, जो हमेशा से प्रकृति और पर्यावरण प्रेमी रहे हैं। किसानों के साथ-साथ शहरी लोगों को पर्यावरण के प्रति सबसे ज़्यादा जागरूक करने की ज़रूरत है। उन्हें बताना होगा कि वृक्षविहीन कंक्रीट के शहरों में ज़्यादा-से-ज़्यादा पौधरोपण करना होगा।

यह बड़ी सच्चाई है कि शहरी सभ्यता में रहने वाले ख़ुद को आधुनिक और समझदार ज़रूर समझते हैं; लेकिन पर्यावरण को सबसे ज़्यादा नुक़सान शहरी लोग ही पहुँचा रहे हैं। यह कहने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति सबसे ज़्यादा लापरवाह यही शहरी लोग हैं, जिनकी मूर्खता का नतीजा पूरी दुनिया भुगत रही है। जंगलों को काटकर इन कंक्रीट के जंगलों को बढ़ाने की होड़ ने पर्यावरण को जो नुक़सान पहुँचाया है, उसकी भरपाई करना आसान नहीं है।

इसके अलावा जंगलों को माफिया के साथ-साथ आग से बचाना होगा। इसमें कोई दो-राय नहीं कि आदमी के लिए अब आधुनिक सुविधाओं को छोड़ पाना सम्भव नहीं है; लेकिन आधुनिकता के साथ-साथ पूर्वजों के शिक्षाओं पर भी हर आदमी को चलना होगा, अन्यथा जीवन संकट में पड़ जाएगा। जैसे कि कारख़ानों को ख़त्म नहीं किया जा सकता, क्योंकि आधुनिक ज़रूरतों को पूरा करने में इनका बड़ा योगदान है; लेकिन कारख़ानों से होने वाले प्रदूषण को कम ज़रूर किया जा सकता है।

इसी तरह धरती पर फैलने वाले प्रदूषणों को रोकने का प्रयास भी किया जा सकता है। आज पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने वाले सभी तरह के प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, थल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि को कम करने की आवश्यकता है, अन्यथा आने वाली पीढिय़ों के लिए जीवन जीना और भी दुश्वार होता जाएगा। इसका सबसे अच्छा उपाय इंसानों की बढ़ती आबादी को रोकना और पेड़-पौधों की संख्या को बढ़ाना है। इसके अलावा हर किसी को अपने स्तर पर जलवायु शुद्धिकरण में योगदान देना होगा, तभी हमारा पर्यावरण अच्छा होगा और विश्व पर्यावरण दिवस व विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाना सफल हो सकेगा।