विश्व पटल पर भुखमरी में शर्मनाक स्थिति में भारत

हालाँकि भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर सफ़ार्इ दी है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया की है कि यह चौंकाने वाला है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2021 ने कुपोषित आबादी के अनुपात पर एफएओ के अनुमान के आधार पर भारत के रैंक को कम कर दिया है, जो ज़मीनी वास्तविकता और तथ्यों से रहित और गम्भीर कार्यप्रणाली मुद्दों से ग्रस्त है।

मंत्रालय का कहना है कि इस रिपोर्ट की प्रकाशन एजेंसियों, कंसर्न वल्र्डवाइड और वेल्ट हंगरहिल्फ ने रिपोर्ट जारी करने से पहले उचित मेहनत नहीं की है। मंत्रालय ने दावा किया है कि एफएओ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली अवैज्ञानिक है। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि हंगर इंडेक्स ने चार प्रश्न के एक जनमत सर्वेक्षण के परिणामों पर अपना मूल्यांकन पेश किया है, जो गैलप द्वारा टेलीफोन पर किया गया था। इस अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता जैसे अल्पपोषण को मापने के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं है। उसका कहना है कि अल्पपोषण का वैज्ञानिक माप करने के लिए लोगों के वज़न और ऊँचाई के माप की आवश्यकता होती है, जबकि यहाँ शामिल पद्धति में पूरी तरह से टेलीफोन पर लिये आँकड़ों के अनुमान को आधार बनाया गया है।

मंत्रालय ने कहा है कि रिपोर्ट में कोरोना वायरस की अवधि के दौरान पूरी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार के बड़े पैमाने पर प्रयासों की पूरी तरह से अनदेखी की गयी है, जिस पर सत्यापन योग्य विवरण उपलब्ध है। कुल मिलाकर यह सफ़ार्इ देने वाली बात है; क्योंकि वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट पहले भी आती रही हैं। मोदी सरकार में हर साल भुखमरी की रिपोर्ट जारी हुई है। जिसे इससे पहले कभी न इस सरकार ने ग़लत बताया और न किसी सरकार ने ग़लत ठहराया, तो फिर आज यह रिपोर्ट ग़लत कैसे हो गयी? जबकि साफ़ दिख रहा है कि देश में समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। मसलन देश में पिछले सात साल में न केवल ग़रीबी बढ़ी है, बल्कि बेरोज़गारी, महँगाई बढ़ी भी है। देश की अर्थ-व्यवस्था कमज़ोर हुई है। सवाल यह है कि सरकार आख़िर कौन-कौन से आँकड़े झुठलाती रहेगी? सही तो यही होगा कि उसे अपनी ग़लतियों और कमियों को स्वीकार करते हुए उनमें सुधार करना चाहिए।

बहरहाल सरकार कोई ऐसा एक काम बताने में आज नाकाम है, जिसमें लोग ख़ुश हुए हों। ख़ुद भाजपा के कई नेता भी अन्दरख़ाने अपनी सरकार से नाख़ुश दिखने लगे हैं। हमारे देहात में एक कहावत है कि अच्छा आदमी वह होता है, जिसकी ज़्यादा लोग तारीफ़ करें और बुरा वह जिसकी ज़्यादा लोग बुराई करें। यहाँ सरकार को इसी से अंदाज़ा लगा लेना चाहिए कि उसके काम अच्छे हैं या ख़राब? वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने इसके लिए प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराते हुए उन पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया है कि ‘ग़रीबी और भूख मिटाने के लिए भारत को एक विश्व शक्ति बनाने के लिए हमारी डिजिटल अर्थ-व्यवस्था के लिए मोदी जी को धन्यवाद! वैश्विक भुखमरी सूचकांक में हम साल 2020 में 94वें स्थान पर थे और 2021 में हम 101 वें स्थान पर पहुँच गये हैं।’

दरअसल यह कोई छोटा तंज़ नहीं है। प्रधानमंत्री को लोगों के सामने आकर इसके लिए स्पष्टीकरण देना चाहिए और सुधार के लिए ज़मीनी स्तर पर नये सिरे से काम करने का संकल्प करना चाहिए। वैश्विक भुखमरी की रिपोर्ट की आलोचना करना और इसे भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा बताना बहुत आसान है; लेकिन आईना दिखाने वाली इस हक़ीक़त के प्रति शुतुर्गमुर्ग़ वाला रवैया अपनाने के बजाय इससे सबक़ लेकर व्यवस्था में आवश्यक और अपेक्षित सुधार करने की दिशा में आगे बढ़ा जाए, तो तस्वीर बदली ही नहीं जा सकती, बल्कि पूरी तरह पलटी भी जा सकती है। यहाँ मशहूर शायर वसीम बरेलवी का एक शेर मुझे याद आता है :-

‘आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है। भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है।।’

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)