विरासतों का विध्वंस

भू-माफिया के निशाने पर हैं शेखावाटी की हवेलियाँ

शेखावाटी की हवेलियों की पहचान केवल अभिजात्य वर्ग की बौद्धिक विलासिता के पर्यटन स्थल के रूप में ही नहीं रही, बल्कि सामान्य नागरिकों से भी इनका जुड़ाव रहा है। शेखावाटी की संस्कृति को संजोये हवेलियाँ पौराणिक और एतिहासिक घटनाओं को भित्ती चित्रों के माध्यम से प्रतिबिंबित करने का सृजनात्मक आँगन हैं।
हवेलियों के विभिन्न कक्षों की दीवारों पर फ्रेस्को पद्धति से बनाये गये भित्ती चित्रों में राम, कृष्ण तथा अन्य देवी-देवताओं की कथाओं के अतिरिक्त वनांचल का वैभव दिखाते हुए जीव-जंतुओं को विचरण करते हुए भी दिखाया गया है। शेखावाटी की हवेलियाँ संस्कृति, पुरा सम्पदा और पर्यटन का अद्भुत समन्वय है। इनका निर्माण काल 18वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य माना गया है। हालाँकि सरकारी तंत्र ने इनका कोई अधिकारिक सर्वे नहीं करवाया। लेकिन सूत्रों की मानें तो सीकर, झुंझनू और चुरू ज़िले में इन हवेलियों की संख्या तक़रीबन 1,500 है। लेकिन पिछले पाँच साल से सुनहरी पुरा सम्पदा का यह वैभव भू-माफिया के निशाने पर है।सरकारी क़ानून-क़ायदों को दुत्कारते हुए भू-माफिया हवेलियों के छज्जों, अटारियों, गोखों को तो नेस्त-ओ-नाबूद कर ही चुके हैं। उन्होंने कला का अतुल्य वैभव दर्शाने वाले भित्ति चित्रों पर भी हथोड़े चला दिये हैं। पिछले पाँच साल से लक्ष्मणगढ़, फतेहरपुर और रामगढ़ में ही 100 से अधिक हवेलियों को मलबे के ढेर में बदल
दिया गया।


माफिया की दबंगई की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि लोगों की शिकायतों के बावजूद पुलिस अधिकारी चुप्पी साधे बैठे रहे। सूत्रों का कहना है कि सरकारी नियमों में सूराख़ तलाश कर गिरोहबंद भू-माफिया आवासीय के नाम पर व्यावसायिक इमारतें खड़ी कर चाँदी कूट रहे हैं। भू-माफिया का ऐसा दुस्साहस क्यों हुआ? पुरा सम्पदा के अप्रतिम वैभव को सरेराह नष्ट करने के हालात क्योंकर बने? सूत्रों का कहना है कि हवेलियों को गिराने के पीछे भू-माफिया की सोची-समझी साज़िश थी। दरअसल हवेलियाँ प्राइम लोकेशन पर होने की वजह से माफिया की नज़रों इन पर गड़ गयी। माफिया का व्यावसायिक लोभ निशाना साधने में जुट गया कि यदि यहाँ व्यावसायिक कॉम्पलेक्स बना लिये जाएँ, तो अथाह दौलत हाथ आ सकती है। उनके निशाने पर मुख्य रूप से झुंझनू ज़िले की छ: हवेलियाँ थीं। माफिया ने इन हवेलियों को ही धाराशायी नहीं किया, बल्कि इनसे जुड़ी सरकारी ज़मीन पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। हवेलियाँ गिराने की यह शुरुआत थी।

सूत्रों का कहना है कि पिछली सरकार के दौरान यह मंशा ज़ाहिर की गयी थी कि शेखावाटी के सेठ-साहूकारों की हवेलियों को रोज़गार का ज़रिया बनाया जाना चाहिए। इससे दोहरा फ़ायदा होगा। एक तो पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा और दूसरा लोगों को रोज़गार भी मिल सकेगा। हालाँकि यह मंशा बातों तक ही सीमित थी। लेकिन इस योजना का रिसाव हुआ तो भू-माफिया बेख़ौफ़होकर हवेलियों को ध्वस्त करने में जुट गये। सब कुछ तुरत-फुरत हुआ और जयपुर समेत प्रदेश भर में हवेलियों को ध्वस्त कर व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स में तब्दील करने का काला खेल शुरू हो गया। हालाँकि इससे पहले सन् 2007 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने स्मारकों और विरासत वस्तुओं पर राष्ट्रीय योजना शुरू करने का मन बनाया था, किन्तु यह योजना एक अधूरी परियोजना बनकर रह गयी। लेकिन इस योजना की मुश्क ने भी भू-माफिया के हौसले बुलंद किये कि कभी-न-कभी उनकी मुराद ज़रूर पूरी होगी। नतीजतन पिछले पाँच साल में शेखावाटी की क़रीब 500 विरासती हवेलियाँ विध्वंस की भेंट चढ़ गयीं। नवलगढ़ में 300 हवेलियाँ थीं; लेकिन अब केवल 165 हवेलियाँ बची रह गयी हैं।
बीकानेर में 200 से ज़्यादा हवेलियाँ थीं, लेकिन अब केवल 1,100 रह गयी हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि सतर्क हुई सरकार ने तुरत-फुरत में जो काम किया, वो यह कि सीकर, चूरू, झुंझुनू में हवेलियों की विक्रय रजिस्ट्री पर रोक लगा दी। इसके साथ ही मौज़ूदा राज्य सरकार ने अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी कि प्रदेश की 10,000 विरासत हवेलियों को रोज़गार का ज़रिया बनाने के लिए विरासत कंजर्वेशन एंड प्रोटेक्शन रेगुलेशन में संशोधन किया जाएगा।

राज्य सरकार ने अपना मक़सद और दावा स्पष्ट करते हुए कहा कि कई लोग हवेलियों और इमारतें संरक्षित करना चाहते हैं, किन्तु उनके पास पैसा नहीं है। ऐसे में यदि इन हवेलियों में व्यावसायिक गतिविधियों की सशर्त अनुमति दी जा सके, तो काफ़ी हद तक इन्हें बचाया जा सकेगा। साथ ही रोज़गार उपलब्ध कराने का इरादा भी छिपा नहीं रह सकेगा। सूत्रों का कहना है कि अभी तीन तरह की विरासत हवेलियाँ हैं। इनमें एक राष्ट्रीय, तो दूसरी राज्य महत्त्व की है। तीसरी श्रेणी में निजी हवेलियाँ हैं। ऐसी 10,000 हवेलियाँ अधिसूचित है।


राष्ट्रीय महत्त्व की हवेलियों में व्यावसायिक गतिविधियों को अनुमति नहीं दी जाएगी अन्य हवेलियों में निर्धारित गतिविधियों के लिए विरासत प्रकोष्ठ से एग्रीमेंट करना हेागा। इससे हवेलियों की तोड़-फोड और उसे मूल स्वरूप को बदलने पर रोक लग सकेगी। राज्य सरकार के सूत्रों का कहना है कि हैरिटेज इमारतों-हवेलियों को बचाने के लिए अब सम्बद्ध क्षेत्र को स्थानीय लोग और राहगीरों के लिए अनुकूल जगह बनाने के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके ज़रिये हवेलियों में हरिटेज से जुड़ी कई गतिविधियों के संचालन की अनुमति मिल सकेगी-बशर्ते कि वहाँ रहने वाले वही रहकर काम करे।
सूत्रों का कहना है कि कोरोना के संक्रमण-काल में बने हालात का अध्ययन करने के लिए प्रस्तावित स्टेट विरासत कंजेर्वेशन एंड प्रोटेक्शन रेग्यूलेशन बायलॉज में संशोधन किये जाएँगे। इससे हवेलियों को माफिया की मैली नज़रों से बचाया जा सकेगा और उन्हें रोज़गार तथा व्यावसाय केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकेगा।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि इससे आमदनी के लिए हवेलियों को तोडक़र कॉम्पलेक्स बनाने की अवैध गतिविधियों को रोका जा सकेगा? विश्लेषकों का कहना है कि जयपुर समेत राज्य में 40 शहरों की 10,000 विरासत इमारतें और हवेलियाँ कॉम्पलेक्स निर्माण के दायरे में आ जाएँगी। लेकिन तभी, जब इमारतों को संरक्षित बनाये रखा जाए। वरिष्ठ पत्रकार भुवनेश गुप्ता का कहना है कि इन हवेलियों में विरासत गेस्ट हाउस, होटल आर्ट गैलरी, सांस्कृतिक केंद्र आदि गतिविधियाँ शुरू की जा सकेगी।

हालाँकि अभी तक इनमें केवल आवासीय उपयोग की ही इजाज़त है। योजना का लब्बोलुआब समझें, तो जिनकी हवेली होगी, वही आमदनी से जोडऩे के लिए सहूलियत दी जाएगी। लेकिन फ़िलहाल यह क़वायद क़ाग़जों में ही चल रही है, ज़मीन पर इनका अवतरण नहीं हुआ है।
शेखावाटी के मारवाड़ी सेठ-साहूकारों की सम्पदा के रूप में चर्चित इन हवेलियों से उनकी बेगानगी की बड़ी वजह रही उनका कोलकाता, मुम्बई जैसे समुद्र तटीय इलाक़ों में कारोबार फैलाकर व्यस्त हो जाना। कुछ व्यवसायी, तो अपनी कारोबारी व्यस्तता के चलते भूल ही गये कि उनके पैतृक गाँव में उनकी कोई सम्पत्ति है भी या नहीं। कुछ हवेलियों पर उनके नज़दीकी लोग ही क़ाबिज़ हो गये।

इन हवेलियों का मुख्य आकर्षण इनकी दीवारों पर फ्रेस्को पेंटिंग थी। दरअसल साहूकारों ने अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करने के लिए कलाकारों को अनुबन्धित कर हवेलियों की दीवारों और दरवाज़ों पर अलंकारिक चित्रण करवा लिया। कोई 300 साल पहले की गयी यह चित्रकारी आज भी उतनी ही जीवंत लगती है। यह बात दिलचस्पी से परे नहीं कि प्रत्येक हवेली के मुख्य द्वार पर तोरण लगे ही मिलेंगे, जिन्हें बेटियों की शादियों के बाद भी हटाया नहीं गया। कहते हैं कि इनसे पता चलता है कि इस परिवार में कितनी बेटियाँ थीं, जिनका विवाह हुआ।
हवेलियों में सुनहरी कोठी सरीखी ऐसी भी हवेलियाँ है, जिनके दरवाज़े पर शीशे मढ़े तथा हाथी, घोड़े और नृत्य करती महिलाओं के चित्र बने होते हैं। हवेलियों का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार किया गया है। हवेली के विशाल प्रवेश द्वार को पोल कहा जाता है, जबकि अंदरूनी आँगन को चौक कहा जाता है।
कई हवेलियों में दो चौक भी होते हैं। बरामदे को तिबारी कहा जाता है, जबकि दूसरी मंज़िल को मेड़ी के नाम से जाना जाता है। शेखावाटी का पहला उल्लेख ‘बांकीदास’ की ख्यात पुस्तक में किया गया था। शेखावाटी का इतिहास पहली बार जेम्स टॉड ने लिखा था।