सत्ता पक्ष-विपक्ष आमने-सामने
झारखण्ड में झामुमो के नेतृत्व में सरकार है। कांग्रेस मुख्य सहयोगी के रूप में सरकार में शामिल है। झामुमो और कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर प्रहार कर रही है और सरकार गिराने की साज़िश का आरोप लगा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इसे सरकार गिराने का षड्यंत्र करार दिया है। वहीं कांग्रेस के मंत्री और विधायक भी यही बोल रहे। उधर विपक्षी दल भाजपा के विधायक और नेता बोल रहे, सरकार ख़ुद ही गिर रही है। वह कटाक्ष भी कर रहे, क्या तीन विधायकों को तोडऩे से सरकार गिर जाएगी? क्या 49 लाख रुपये में 13-13 विधायक टूट रहे? अगर और अधिक पैसे की बात है, तो बाक़ी के पैसे कहाँ हैं? उन्हें कैसे देने की बात थी? भाजपा नेता इस मामले को राज्य में चल रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जाँच से जोड़कर कह रहे हैं कि यह भ्रष्टाचार का पैसा है।
गिरफ़्तारी पर उठे सवाल
तीनों विधायकों की गिरफ़्तारी पर कई सवाल उठ रहे हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि तीनों विधायकों को पैसा कहाँ से मिला और किसने दिया? वह रुपया लेकर कहाँ जा रहे थे? यह किस काम के लिए दिया गया था? विधायकों के पास नक़दी होने की सूचना पुलिस को कहाँ से मिली? उनका सटीक लोकेशन पुलिस को किसने दिया? क्योंकि एक चर्चा यह भी है कि झारखण्ड सरकार की स्पेशल ब्रांच ने बंगाल पुलिस को सूचना दी थी। अगर ऐसा था, तो सरकार ने अपने ही सहयोगी विधायकों के साथ ऐसा क्यों किया? क्या इसमें कांग्रेस की भी रजामंदी थी? कहीं सच में सरकार गिराने की साज़िश तो नहीं थी? या फिर राज्य में चल रहे ईडी कार्रवाई से ध्यान भटकाने के लिए यह सब हुआ। कहीं झारखण्ड में ईडी की कार्रवाई को देखते हुए इस तंत्र में शामिल लोगों का ही पैसा खपाने का प्रयास तो नहीं हो रहा था? सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं तीनों विधायकों के पास बरामद रुपये का कोई बंगाल कनेक्शन तो नहीं है?
क्योंकि झारखण्ड के कई विधायकों का बंगाल में राजनीतिक और व्यावसायिक अच्छे सम्बन्ध हैं। इस बीच बंगाल सीआईडी ने यह भी दावा किया है कि 49 लाख पकड़े जाने से पहले 21 जुलाई को इन तीनों विधायकों को कोलकाता में 75 लाख रुपये दिये गये थे। यह राशि वहाँ के एक कारोबारी महेंद्र अग्रवाल ने दी थी। महेंद्र अग्रवाल भी सीआईडी की हिरासत में हैं। कहने वाले यह भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके क़रीबी चौतरफा घिरे हैं। मुख्यमंत्री की सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग के पास मामला लम्बित है। उनके ख़िलाफ़ न्यायालय में पीआईएल दाख़िल है। उनके विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा को ईडी ने गिरफ़्तार किया है। उनके प्रेस सलाहकार अभिषेक कुमार से पूछताछ की जा रही है। मुख्यमंत्री ख़ुद कभी भी ईडी के रडार पर आ सकते हैं।
कई मामले ठण्डे बस्ते में
राज्य में सन् 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनी। भाजपा पर झाविमो के छ: विधायकों को तोडऩे का आरोप लगा। ये सभी भाजपा में शामिल हो गये थे। इनमें से कुछ को मंत्री पद तो कुछ को निगम-बोर्ड में जगह मिली। तब भी ख़रीद-फ़रोख़्त की बात उठी। सन् 2010, 2012, 2014, 2016 में राज्यसभा चुनाव में हार्स ट्रेडिंग का मामला आया। विधायकों के ख़रीद-फ़रोख़्त की बात हुई। सन् 2012 में राज्यसभा चुनाव के दिन ही निर्दलीय प्रत्याशी आरके अग्रवाल के छोटे भाई सुरेश अग्रवाल की गाड़ी से 2.15 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। इससे देश में पहली बार राज्यसभा चुनाव को ही रद्द करना पड़ा था।
जुलाई, 2021 में रांची के एक होटल से तीन लोग पकड़ाये। उनके पास से दो लाख रुपये बरामद हुए थे। उन पर हेमंत सरकार गिराने की साज़िश रचने का आरोप लगा था।
पर्दा उठने का इंतज़ार
बंगाल सरकार ने झारखण्ड के तीनों कांग्रेसी विधायक इरफ़ान अंसारी, नमन विक्सल कोंगाड़ी और राजेश कच्छप के मामले में सीआईडी को सौंप दी है। जाँच में क्या ख़ुलासा होगा? यह तो वक़्त ही बताएगा। अभी तक जितनी बातें सामने आयी हैं, यह सिर्फ़ नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप और सोशल मीडिया के हवाले से आयीं हैं। न पुलिस और न ही किसी जाँच एजेंसी ने पूरे रहस्य से पर्दा उठाया है। तीनों विधायक गिरफ़्तारी के समय से लेकर अभी तक मीडिया के सामने नहीं आ पाये हैं। न ही उन्हें अपनी बात रखने का अवसर दिया गया। देखना यह है कि मामले का ख़ुलासा कब तक होता है। सच्चाई क्या है। इस बार मामले का पटाक्षेप हो पाता है या नहीं। या फिर सारी बातें राज ही बन कर रह जाती हैं और तीनों विधायक केवल बली का बकरा बन कर रह जाते हैं।