राफेल पर फिर सवाल

सुरजेवाला ने मोदी सरकार से पाँच सवाल भी किये थे, जिनमें पहला यह था कि 1.1 मिलियन यूरो के जो क्लाइंट गिफ्ट दसॉल्ट के ऑडिट में दिखा रहा है। क्या वो राफेल सौदा के लिए बिचौलिये को कमीशन (दलाली) के तौर पर दिये गये थे? दूसरा, जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है? तीसरा, क्या इस सबसे राफेल सौदे पर सवाल नहीं खड़े हो गये हैं? कांग्रेस ने चौथा सवाल यह किया है कि क्या इस पूरे मामले की जाँच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि इस सौदे के लिए किसको और कितने रुपये दिये गये?
क्या प्रधानमंत्री इस पर जवाब देंगे? याद रहे कांग्रेस ने राफेल सौदे में गम्भीर अनियमितताओं का आरोप लगाया था। पार्टी का आरोप था कि जिस लड़ाकू विमान को यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपये में लिया था उसे एनडीए सरकार ने 1670 करोड़ प्रति विमान की दर से लिया। कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया था कि सरकारी एयरोस्पेस कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ लगायी गयी याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने 14 नवंबर, 2019 को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि इस मामले की जाँच की ज़रूरत नहीं है। हालाँकि, विमान ख़रीद में राशि को इसमें नहीं जोड़ा गया था। मीडियापार्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे में गड़बड़ी का सबसे पहले पता फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए को 2016 में हुए इस सौदे पर दस्तख़त के बाद लगा। एएफए को मालूम हुआ कि राफेल बनाने वाली कम्पनी दसॉ एविएशन ने एक बिचौलिये को 10 लाख यूरो देने पर रज़ामंदी जतायी थी। यह हथियार दलाल इस समय एक अन्य हथियार सौदे में गड़बड़ी के लिए आरोपी है। हालाँकि एएफए ने इस मामले को प्रोसिक्यूटर के हवाले नहीं किया। रिपोर्ट में कहा गया कि अक्टूबर 2018 में फ्रांस की पब्लिक प्रॉसिक्यूशन एजेंसी को राफेल सौदे में गड़बड़ी की चेतावनी मिली और उसी समय फ्रेंच क़ानून के मुताबिक दसॉ एविएशन के ऑडिट का भी समय हो गया।

कम्पनी के 2017 के खातों की जाँच का दौरान ‘क्लाइंट को गिफ्ट’ के नाम पर हुए 5,08,925 यूरो के ख़र्च का पता लगा। यह समान मद में अन्य मामलों में दर्ज ख़र्च राशि के मुक़ाबले कहीं अधिक था। मीडियापार्ट के दावे के मुताबिक, इस ख़र्च पर माँगे गये स्पष्टीकरण पर दसॉ एविएशन ने एएफए को 30 मार्च, 2017 का बिल मुहैया कराया, जो भारत की डेफसिस सॉल्यूशंस की तरफ़ से दिया गया था। यह बिल राफेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दिये ऑर्डर का आधा काम के लिए था। इसके लिए प्रति पीस 20,357 यूरो की राशि का बिल थमाया गया। अक्टूबर, 2018 के मध्य में इस ख़र्च के बारे में पता लगने के बाद एएफए ने दसॉ से पूछा कि आख़िर कम्पनी ने अपने ही लड़ाकू विमान के मॉडल क्यों बनवाये और इसके लिए 20,000 यूरो की मोटी रक़म क्यों ख़र्च की गयी? साथ ही सवाल पूछे गये कि क्या एक छोटी कार के आकार के यह मॉडल कभी बनाये या कहीं लगाये भी गये? तब दसॉ और डेफसिस सॉल्यूशंस ने एक बयान में कहा था कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए भारत के साथ सन् 2016 में किये गये सौदे में अनुबन्ध संरचना का किसी भी तरह उल्लंघन नहीं किया गया है।
दसॉ एविएशन के प्रवक्ता ने बयान में कहा कि एएफए सहित अन्य आधिकारिक संगठन बहुत-सी जाँचें करते हैं और हम कहना चाहते हैं कि 36 विमानों की ख़रीद में भारत के साथ हुए अनुबन्ध का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। प्रवक्ता ने कहा कि दसॉल्ट एविएशन आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के रिश्वत रोधी प्रस्ताव और राष्ट्रीय क़ानूनों का कड़ाई से पालन करता है। उसने सभी आरोपों से इन्कार किया और कहा कि उसने राफेल की निर्माता कम्पनी दसॉल्ट एविएशन को इस विमान के 50 नक़ली मॉडल (प्रतिकृति) सप्लाई की थी। डेफसिस सॉल्यूशंस ने कर (टैक्स) रसीद पेश करते हुए इन आरोपों को ग़लत ठहराने का प्रयास किया। कम्पनी ने कहा कि यह मीडिया में सामने आये उन निराधार, बेबुनियाद और भ्रामक दावों का जवाब है, जो कहते हैं कि डेफसिस ने राफेल विमानों के 50 प्रतिकृति मॉडल की आपूर्ति नहीं की है।

 

वायुसेना के पास अब 21 राफेल


विवाद का विषय बने राफेल लड़ाकू विमान को भारत लाने का सिलसिला मोदी सरकार ने बहुत तामझाम के साथ शुरू किया था। इसमें कोई दो-राय नहीं कि राफेल आने से वायुसेना की ताक़त बढ़ी है। मई के आख़िर में तीन राफेल विमान भारत की धरती पर लैंड हुए और उन्हें पश्चिम बंगाल के हाशिमारा वायुसेना हवाई अड्डे पर तैनात करने की तैयारी की गयी है। इन तीन विमान के भारत आते ही अब वायुसेना के पास कुल 21 राफेल आ चुके हैं। भारत सरकार की तरफ़ से फ्रांस के साथ 36 राफेल विमान का सौदा किया गया है। इससे पहले 18 राफेल विमान की स्क्वाड्रन को अंबाला वायुसेना हवाई अड्डे पर तैनात किया गया था। बाक़ी जो 18 आने वाले हैं, उन्हें पश्चिम बंगाल के हाशिमारा वायुसेना हवाई अड्डे पर तैनात करने की योजना है। राफेल फाइटर विमान एमआइसीए और मेट्योर एअर-टू-एअर मिसाइल से लैस हैं। इनमें स्कैल्प एअर टू ग्राउंड क्रूज मिसाइल से हमला करने की क्षमता है और एक ख़ूबी यह भी है कि राफेल एक ही बार में 14 जगह सटीक निशाना लगा सकते हैं। सम्भावना है कि साल के आख़िर तक भारत को बाक़ी राफेल भी मिल जाएँगे।

 

“राफेल सौदे में शुरू की गयी फ्रांसीसी न्यायिक जाँच माकपा द्वारा उठायी गयी आशंकाओं की पुष्टि करती है कि पहले के ख़रीद समझौते को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का बदला रुख़ गहरे भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग में फँस गया है। माकपा इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री और सरकार की भूमिका की जाँच करने और सौदे की सच्चाई का पता लगाने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति के गठन के लिए सितंबर, 2018 में उठायी गयी अपनी माँग को दोहराती है।”

सीताराम येचुरी
माकपा नेता

 

राहुल गाँधी का हमला


“कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने राफेल सौदे में कथित गड़बडिय़ों की फ्रांस में जाँच शुरू होने के बाद एक ट्वीट में लिखा- ‘ख़ाली जगह को भरिए, …मित्रों वाला राफेल है, टैक्स वसूली – महँगा तेल है, पीएसयू-पीएसबी की अन्धी सेल है और सवाल करो तो जेल है…मोदी सरकार… है!’
इससे पहले राहुल गाँधी ने अपने इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर किया और कैप्शन दिया- ‘चोर की दाढ़ी…’ इस इंस्टाग्राम पोस्ट में राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी की एक तस्वीर को राफेल विमान के साथ एडिट करके शेयर किया। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने एक अन्य ट्वीट में लोगों से पोल के माध्यम से पूछा कि जेपीसी जाँच के लिए प्रधानमंत्री मोदी तैयार क्यों नहीं हैं? राहुल ने इस पोल में चार विकल्प दिये; 1- अपराधबोध, 2- मित्रों को भी बचाना है, 3- जेपीसी को राज्यसभा सीट नहीं चाहिए और 4- उपरोक्त सभी। ज़्यादातर लोगों ने चौथे विकल्प को चुना।