रहस्यमय कथा, चलती रेल के डिब्बे ग़ायब!

इस बैठक का एजेंडा वर्ष 1996-98 में चावल के 220 डिब्बों और गेहूँ के 46 डिब्बों के ग़ायब हो जाने पर चर्चा करना था। इस मामले को आगे सुलह के लिए भेजा गया था। फिर 13 अप्रैल, 2005 को भी मुख्य वाणिज्य प्रबंधक कार्यालय, मालेगाँव में रेलवे और क्षेत्रीय अधिकारियों गुवाहाटी के बीच एक बैठक आयोजित की गयी थी। इस बैठक का एजेंडा सन् 1986 से सन् 1996 तक लापता डिब्बों पर चर्चा करनी थी, जिसमें क़रीब 5,100 चावल की बोरियाँ और 2,178 गेहूँ की बोरियाँ ले जायी गयी थीं। इसमें 28 दिसंबर, 2004 तक के ही आँकड़ों पर चर्चा की गयी थी। बैठक में मैनेजर मूवमेंट एम.एल. सोलंकी, एजी प्रथम (डी) और एफसीआई से एस.बी. शर्मा, रेलवे से डिप्टी सीसीएम (दावा) एस.के. कर्मकार और सीआईए चट्टोपाध्याय ने भाग लिया था।

इसके बाद 22 फरवरी, 2007 को भी रेलवे अधिकारियों और एफसीआई के क्षेत्रीय अधिकारियों (गुवाहाटी) के बीच ऐसी ही एक बैठक हुई। इस बैठक का मक़सद उन डिब्बों पर चर्चा करना था, जो 2000-01 और 2004-05 के बीच ग़ायब हो गये थे। इस दौरान 427 डिब्बे चावल और 57 डिब्बे गेहूँ ग़ायब पाये गये।

बैठक में भाग लेने वाले एफसीआई के अधिकारी संयुक्त प्रबंधक आन्दोलन एम.एल. सोलंकी, एजी प्रथम (डी) एस.बी. शर्मा और एजी सेकेंड (एम) आर.एन. दत्ता थे। मालेगाँव में मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (दावा) कार्यालय में हुई बैठक में रेलवे की ओर से एस.के. करमाकर और सीईओ ए.के. प्रसाद ने हिस्सा लिया।

सबसे अधिक असुरक्षित क्षेत्र
मालगाडिय़ों के डिब्बे गुम होने के मामले में जो आरटीआई दायर की गयी है, उससे पता चलता है कि 2000-2001 से 2004-05 तक क़रीब 500 से अधिक डिब्बे खाद्यान्न ग़ायब हो गये; जिनमें से अधिकांश डिब्बे चावल से लदे थे। आरटीआई के मुताबिक, एफसीआई और रेलवे के अधिकारी अब तक 5,500 से अधिक डिब्बों के लापता होने पर चर्चा कर चुके हैं। ‘तहलका’ को अपने स्रोतों और आरटीआई से जो विवरण मिला है, उसमें उत्तर-पूर्वी एफसीआई जोन ने अब तक डिब्बों के गुम होने की सबसे अधिक शिकायतें दर्ज करायी हैं।

लापता डिब्बों की सूची
1. आरटीआई से मिले जवाब के मुताबिक, 3 दिसंबर, 2021 को एफसीआई, कर्नाटक के क्षेत्रीय कार्यालय ने भारतीय रेलवे को 54 डिब्बों का दावा दायर किया। ये 54 डिब्बे सन् 2015 और सन् 2020 के बीच की अवधि के दौरान ग़ायब हो गये थे। इसके अलावा एक अन्य आरटीआई में एफसीआई अधिकारियों ने 28 फरवरी, 2019 से 20 मार्च, 2019 तक चावल के चार और डिब्बों के लापता होने की शिकायत दर्ज करायी है। आरटीआई से पता चला है कि पश्चिम क्षेत्र मुम्बई कार्यालय (एफसीआई) ने 20 मई को लापता डिब्बों की जानकारी दी है। इसी तरह 15 मार्च, 2011 को एफसीआई पश्चिम क्षेत्र, मुम्बई के अधिकारियों और रेलवे अधिकारियों ने मुम्बई में एक बैठक की, जिसमें डिब्बों के लापता होने के मामले पर चर्चा की गयी। बैठक में एम.एल. सहगल (जीएम मूवमेंट), के.के. बरुआ (डीजीएम मूवमेंट), बी.के. त्यागी (एजीएम मूवमेंट), कामना ज्ञान (मैनेजर मूवमेंट) ने एफसीआई जबकि एस.आर. सेठी (टीसी दावा), वीरेंद्र कुमार, (एसओ) ने टीसी तृतीय की तरफ़ से और सीएमआई अनिल कुमार गुप्ता ने रेलवे की तरफ़ से हिस्सा लिया।

2. इस बैठक में मुख्य रूप से 1986-96 से 1996-2000 तक के गुम डिब्बों के मामलों पर चर्चा की गयी। इस सम्बन्ध में मुम्बई, गोवा, मैसूर और कोलकाता में पहले ही बैठकें हो चुकी हैं। कुल 51 डिब्बे ग़ायब पाये गये। सन् 1986 से सन् 1996 के दौरान 15 डिब्बे ग़ायब हो गये, जिनमें से केवल 10 गेहूँ के डिब्बे थे और पाँच चावल के डिब्बे थे। 1996-2000 की अवधि के दौरान क़रीब 36 डिब्बे ग़ायब हुए, जिसमें गेहूँ के 20 थे और 16 डिब्बे चावल के थे।

इसके बाद 13 मार्च, 2019 की एक अन्य आरटीआई में हमने पाया कि एफसीआई के पश्चिम क्षेत्र कार्यालय ने पाँच लापता डिब्बों के लिए रेलवे के सामने दावा किया है। 25 फरवरी, 2004 को विशेष ट्रेन (396427) में ईआर39873 (बीसीएक्सटी) संख्या वाले एक डिब्बे में 1,098 अनाज की बोरियाँ थीं। अनाज की क़ीमत क़रीब 3.34 लाख रुपये थी। यह ट्रेन पंजाब के फ़िरोजपुर से महाराष्ट्र के गोंदिया के लिए रवाना हुई थी। 15 जुलाई, 2018 को 2620000366 नंबर वाली एक विशेष ट्रेन लक्ष्य बन गयी, जिसके तीन डिब्बे डब्ल्यूएन ईसीओआर74377, डब्ल्यूआर18115, एनडब्ल्यूआर96310 से क्रमश: 1,155; 1,150 और 1,149 बोरियाँ खाद्यान्न की ग़ायब हो गयीं। इस अनाज की क़ीमत क़रीब 39.19 लाख रुपये थी। यह ट्रेन हरियाणा के नरवाना से महाराष्ट्र के बारामती के लिए रवाना हुई थी।

21 जुलाई, 2018 को विशेष ट्रेन (262000360) की संख्या एफसीआरओ42692 के साथ एक और डिब्बा, जिसमें 1,274 बोरियाँ थीं ग़ायब हुआ। यह ट्रेन हरियाणा के सफीदों से महाराष्ट्र के परली के लिए रवाना हुई; लेकिन अपने गंतव्य तक पहुँचने से पहले ही डिब्बा ग़ायब हो गया। अनाज की क़ीमत क़रीब 14.23 लाख रुपये थी।

3. इस तरह की कई गुमशुदगी घटनाएँ केरल में भी हुई थीं; लेकिन केरल के कोल्लम ज़िले ने ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं की थी। यह तभी हुआ, जब आरटीआई कार्यकर्ताओं ने उनसे अपील की, तो वे आगे आये और एनडब्ल्यूआर बीसीएनए10994 नंबर के साथ एक डिब्बे के लापता होने का मामला दर्ज कराया। यह जानकारी 10 अप्रैल, 2019 को दी गयी थी। 22 फरवरी, 2019 से डिब्बे और उनमें लदी खाद्यान्न की बोरियाँ ग़ायब हुई थीं, जिनका कोई विवरण नहीं दिया गया था कि ये बोरियाँ गेहूँ की थीं या चावल की थीं। आरटीआई के मुताबिक, चेन्नई के अंचल कार्यालय ने बताया कि 28 फरवरी, 2019 तक दो डिब्बों में लदा 30.45 लाख रुपये क़ीमत का खाद्यान्न ग़ायब हो गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले छ: वर्षों में परिवहन के दौरान 2,503 मीट्रिक टन गेहूँ और चावल बर्बाद हो गया है। लेकिन अनाज का नुक़सान कैसे हुआ, और खोई हुई गाडिय़ाँ कैसे वापस मिलीं? इसे लेकर उसकी तरफ़ से ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गयी।

4. 13 मार्च, 2019 को भुवनेश्वर के क्षेत्रीय कार्यालय ने 26000702 नंबर वाली एक विशेष ट्रेन से एक लापता डिब्बे एसई98210 के बारे में जानकारी दी। यह डिब्बा 29 अप्रैल, 2018 से ग़ायब था। इसमें 1,275 बोरियों में 63.32 मीट्रिक टन खाद्यान्न ले जाया गया था। इस अनाज की क़ीमत क़रीब 17.80 लाख रुपये थी।

5. एफसीआई गुरदासपुर (पंजाब) के क्षेत्रीय अधिकारी के अनुसार, 30 जुलाई, 2018 को डिब्बा एसएनएफ एबीसीएनए60056, संख्या आरआर150 के साथ एक विशेष ट्रेन के हिस्से के रूप में गुरदासपुर से पश्चिम बंगाल की ओर जा रहा था। लेकिन जब यह स्पेशल ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुँची, तो यह डिब्बा नहीं मिला। ट्रेन में खाद्यान्न ले जाने के बारे में कोई विवरण नहीं है। जब आरटीआई दायर की जा रही थी, तब भी एफसीआई के रिकॉर्ड में डिब्बा ग़ायब था। उन्हें कोलकाता बुलाया गया। कोलकाता के एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय को भी लापता डिब्बों की जानकारी प्रदान करने के लिए कहा गया था। लेकिन अधिकारियों ने एक पत्र में जवाब दिया कि उनके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है। आरटीआई में कहा गया है कि एक अधिनियम का हवाला देते हुए उन्हें ब्योरा देने के लिए कोलकाता बुलाया गया था।

हो रही सीबीआई जाँच
9 फरवरी, 2018 को, सीबीआई के पटना कार्यालय ने एक प्राथमिकी (आरसी 02320180004) दर्ज की। यह प्राथमिकी पूर्वी रेलवे के मुख्य सतर्कता अधिकारी ने दर्ज की थी। आरटीआई की दूसरी अपील का ज़िक्र करते हुए रेल मंत्रालय ने कहा है कि पश्चिम बंगाल के जमालपुर के आरपीएफ पोस्ट पर दर्ज प्राथमिकी में साफ़तौर पर कहा गया है कि स्पेशल ट्रेनों के 86 डिब्बे ग़ायब थे।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) अब इन गुमशुदा डिब्बों के मामले की जाँच कर रहा है। सीबीआई की प्राथमिकी में लापता डिब्बों की संख्या 100 है और इनकी क़ीमत क़रीब 34 करोड़ रुपये है। अभी रेलवे इन डिब्बों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। हालाँकि ये डिब्बे अब रेलवे की दूसरी तरफ़ यानी धोबीघाट पर हैं, जहाँ मरम्मत का काम किया जाता है। ‘तहलका’ सूत्रों के मुताबिक, इन डिब्बों के पहिये और अन्य हिस्सों को हटा दिया गया है।

तीन दशक से अधिक समय से लटके मामले
यह जानकर वास्तव में आश्चर्य होता है कि इतनी बड़ी संख्या में मालगाड़ी के डिब्बे इतने वर्षों से ग़ायब हैं और अभी भी उनके ठिकाने का कोई सुराग़ नहीं है। क़रीब 32-33 साल से ज़्यादा का समय हो गया है; लेकिन अभी भी लापता डिब्बों का कोई पता नहीं चला है।

यह जानकारी आपको चौंका देगी और शायद आपको हँसी भी आये कि जब पूरी ट्रेन अपने ट्रैक पर चल रही है, तो कुछ डिब्बे कैसे ग़ायब हो सकते हैं? आख़िर ये लोहे के बड़े-बड़े बक्से हैं और इन्हें किसी के लिए भी ले जाना कैसे असम्भव होगा? क्योंकि ये किसी पार्क में खड़े नहीं रहे होते, और न ही इतने हल्के होते हैं कि कोई आसानी से पार कर सके। कम-से-कम कहने के लिए तो यह चौंकाने वाली बात ही है कि सन् 1987 और सन् 2019 के बीच ग़ायब हुए डिब्बों का कोई सुराग़ नहीं है।

आरटीआई के अनुसार, छत्तीसगढ़ से केरल के एर्नाकुलम जाने वाली एक विशेष ट्रेन आरआर310625 का ईआरसी22283 नंबर वाला एक डिब्बा भी ग़ायब था। इस स्पेशल ट्रेन में 24.5 मीट्रिक टन वाले 256 बोरी चावल लदे हुए थे। हैरानी की बात यह है कि एफसीआई का दावा अभी भी रेलवे के पास लम्बित है।

48 करोड़ की चीनी ग़ायब
एफसीआई न केवल गेहूँ और चावल, बल्कि अन्य खाद्यान्न और खाद्य भण्डार का भी परिवहन करता है। इन्हें विशेष ट्रेनों से दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है। इससे पहले एफसीआई ने चीनी का भण्डार दूसरे राज्यों में भी पहुँचाया था। गेहूँ और चावल की तरह चीनी के डिब्बों को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजा जाता था। चीनी के डिब्बों के ग़ायब होने के मामले भी सामने आये हैं और पूर्वोत्तर के जोनल कार्यालय ने आरटीआई में इस सम्बन्ध में विवरण पहले ही दे दिया है। वर्ष 1984-85 से 1994-95 तक चीनी लदी कई विशेष ट्रेनें उत्तर-पूर्व क्षेत्रों में भेजी गयीं; लेकिन कुछ डिब्बे गंतव्य तक पहुँच ही नहीं सके।

एफसीआई ने रेलवे को इस नुक़सान के बारे में कई लिखित शिकायतें भेजी हैं; लेकिन कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला है। 24 मार्च, 2015 को एफसीआई ने रेलवे को 48.18 करोड़ रुपये के दावे के बारे में याद दिलाने के लिए एक और पत्र भेजा। एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय की अभी भी रेलवे से चर्चा जारी है; लेकिन अभी तक कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला है। आरटीआई में कहा गया है कि सन् 1993 से सन् 1997 के बीच में चीनी के आठ डिब्बे ग़ायब हैं, जो पहली जनवरी, 2008 को रेलवे को भेजे गये पत्र में उल्लिखित हैं।

सम्भावित कारण
रेलवे सूत्रों के अनुसार, डिब्बों के ग़ायब होने का कारण एक्सल बॉक्स का गर्म या अधिक गर्म होना हो सकता है। रेलवे वाहन में हॉट एक्सल बॉक्स तब होता है, जब अपर्याप्त व्हील बेयरिंग ल्यूब्रिकेशन के कारण तापमान में वृद्धि होती है। यदि पता नहीं चले, तो तापमान में वृद्धि जारी रह सकती है; जब तक कि कोई बर्न ऑफ न हो, जो पटरी से उतरने या आग लगने का कारण हो सकता है। तो यह कारण हो सकता है कि इन विशेष ट्रेनों से कुछ डिब्बों को अलग कर दिया जाता है; लेकिन हम इस सम्भावना से इनकार नहीं कर सकते हैं कि हॉट एक्सल घटना की आड़ में कुछ और डिब्बों को भी हटाया जा सकता था।

जानकारों के मुताबिक, रेलवे उन सभी ट्रेनों का रिकॉर्ड रखता है, जो पटरियों पर चल रही हैं या यार्ड में खड़ी हैं। ये ब्योरा (रिकॉर्ड) भारतीय रेलवे के सेंटर फॉर रेलवे इंफार्मेशन सिस्टम (सीआरआईएस) विभाग द्वारा बनाये रखा जाता है। वे (सीआरआईएस के कर्मचारी) इसकी सभी ट्रेनों का ऑनलाइन रिकॉर्ड रखते हैं। वे ट्रेनों के सभी मार्गों से अवगत हैं। जब ये ट्रेनें अपने गंतव्य पर पहुँचती हैं और जब विशेष ट्रेनों को लोड और अनलोड किया जाता है। जब सब कुछ ऑनलाइन रखा जाता है, तो यह कल्पना करना कठिन है कि विशेष ट्रेनों के इन डिब्बों को कैसे हटाया जा सकता है? ऐसे में यह अविश्वसनीय चोरी की सम्भावना बेहद चौंकाने वाली है।