यह आखिरी चुनाव है मेरा: मुख्यमंत्री

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इस बार का विधानसभा चुनाव इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कबूल कर चुके हैं कि उनके 55 साल के राजनीतिक जीवन का यह आखिरी चुनाव है। इसके बाद अगली पीढ़ी को इस पहाड़ी सूबे में कांग्रेस का जिम्मा संभालना है। इन पांच दशक में वीरभद्र सिंह ने राजनीति में अपने समर्थकों की लम्बी कतार तैयार की जो सूबे के किसी दूसरे नेता के पास नहीं। इन सालों में वे या पार्टी के प्रदेश में अध्यक्ष रहे, विपक्ष में नेता रहे या मुख्यमंत्री या फिर केंद्र सरकार में मंत्री।
ऐसा शायद ही कभी हुआ कि उनके पास कोइ ओहदा नहीं रहा। उनके कट्टर समर्थक इस बात से खुश है कि 84 साल के वीरभद्र सिंह की काबलियत पर भरोसा करते हुए राहुल गांधी ने उन्हें चुनाव में जिम्मा ही नहीं सौंपा है बल्कि यह भी कहा है कि पार्टी के चुनाव जीतने पर वे ही मुख्यमंत्री होंगे। उनके कट्टर समर्थक और हमीरपुर मार्केटिंग बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम कौशल ने कहा कि यह वीरभद्र सिंह की काबिलियत है कि कांग्रेस आलाकमान ने उनपर भरोसा करते हुए चुनाव की बागडोर उन्हें सौंपी है। कोई ऐसा नेता नहीं जो वीरभद्र सिंह जैसा करिश्माई हो। वे कांग्रेस को लगातार दूसरी बार चुनाव जिताकर रेकॉर्ड बनाएंगे। लोग उन्हें जीवन के आखिरी चुनाव में जीत का तौहफा देंगे।
यह भी दिलचस्प है कि वीरभद्र सिंह जीवन का आखिरी चुनाव भी नए हलके अर्की से लड़ रहे हैं। इससे उनकी हिम्मत ही कहा जा सकता है क्योंकि नया हलका होने के बावजूद वे परचा भरकर पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए प्रदेश के दूसरे हिस्सों के लिए निकल गए। उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह ने अर्की में उनके प्रचार का जिम्मा संभाल रखा है।
यह रिपोर्ट लिखे जाने (30 अक्टूबर) तक प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं का मुकाबला वे अकेले कर रहे थे। कांग्रेस के केंद्रीय नेता अभी तक फील्ड में चुनावी सभाओं में नजर नहीं आ रहे हैं। कुछेक नेता जरूर नामांकन के वक्त नजर आए थे, लेकिन अधिकतर अभी तक चुनाव प्रचार में उतारे नहीं गए हैं। जबकि 30 अक्टूबर तक भाजपा के लिए उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली जैसे बड़े नेता प्रचार कर चुके थे। इनके अलावा प्रदेश के दो वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल और जगत प्रकाश नड्डा भी पूरी तरह मैदान में जमे हैं।
वीरभद्र सिंह के सामने राजनीतिक जीवन के इस सबसे बड़े चुनाव में पार्टी को चुनाव में दुबारा जिताने की ही चुनौती नहीं है। उनके पुत्र और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह भी शिमला ग्रामीण सीट से मैदान में खड़े हैं और वीरभद्र सिंह उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए अर्की से ज्यादा प्रचार शिमला ग्रामीण हलके में कर रहे हैं। वीरभद्र सिंह उन्हें अपने रहते प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में स्थापित कर देना चाहते हैं। हलके में विक्रमादित्य की बहिन अपराजिता भी पूरी शिद्दत से डटी हैं। अपराजिता पंजाब के मुख्यमंत्री के परिवार में ब्याही हैं।
जहाँ तक वीरभद्र सिंह की राजनीति की बात है वे अपने बूते कांग्रेस को अट्टा में लाने की क्षमता रखते हैं। पिछले चुनाव में वे ऐसा कर चुके हैं। प्रचार के लिए हिमाचल आए केंद्रीय कांग्रेसी नेता गौरव गोगोई कहते हैं कि हिमाचल में भाजपा वीरभद्र सिंह से इतनी घबराई हुई है कि उनके खिलाफ उसने अपनी तोपें उतार दी हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनसे डरा हुआ है। वीरभद्र सिंह का मुकाबला भाजपा नेता नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वीरभद्र कांग्रेस का ब्रह्म अस्त्र है।
वैसे कांग्रेस को हिमाचल में वीरभद्र सिंह पर ज़रुरत से ज्यादा निर्भरता भारी भी पड़ी है। पिछले तीन दशक में वीरभद्र सिंह के अलावा कोई मजबूत नेता पार्टी में उभर नहीं पाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम ज़रूर नब्बे के दशक में उभरे लेकिन घर पर पैसे मिलने के बाद से वे कानूनी दांव पेच में फंस गए। उन्हेंने आरोप लगाया था कि उनके घर पर पैसे कथित रूप से वीरभद्र सिंह के इशारे पर रखे गए। चुनाव से ऐन पहले सुखराम अपने मंत्री बेटे समेत कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।