मोहभंग की ओर

दशकों तक भारत में यह लगभग सर्वमान्य तथ्य रहा है कि यहां क्रिकेट धर्म की तरह है और सचिन तेंदुलकर इस धर्म के आराध्य. लेकिन पिछले दिनों घटी एक घटना हमें इस बात का इशारा देती है कि अब हमें सालों पुराने इस तथ्य को फिर से जांचना होगा. दिसंबर के आखिरी दिन थे. दिल्ली बलात्कार कांड से पूरा देश आहत और आक्रोशित था. ऐसे माहौल में यकायक खबर आती है कि क्रिकेट के खुदा सचिन तेंदुलकर ने वन-डे से संन्यास ले लिया है, खबरों को थोड़ा भी करीब से समझने वाला जानता है कि यह कितनी बड़ी खबर थी.

इसलिए यह अंदेशा जताया जाने लगा कि मीडिया अब रेप-कांड की खबर को किनारे कर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सभी चैनलों ने सचिन के संन्यास की खबर को तरजीह ही नहीं दी. यह दिखाता है कि क्रिकेट अब धर्म नहीं रह गया है और सचिन के देवत्व का मोह भी कम हुआ है. मशहूर खेल पत्रकार दारेन शाहिदी तहलका से बातचीत में कहते हैं- ‘पिछले कुछ सालों से इस मुल्क में क्रिकेट तभी खबर है जब रियल न्यूज का अभाव है. अब जनता असल खबरों के स्थान पर क्रिकेट नहीं देखना चाहती. हाल में छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला होने के ठीक पहले तक मीडिया आईपीएल से जुड़ी खबरें दिखा रहा था लेकिन इस हमले के बाद चैनल्स से आईपीएल मुकाबले किनारे हो गए. अगर क्रिकेट की खबरें थीं भी तो इसके भ्रष्टाचार से जुड़ी हुई थीं. साफ है कि जनता के लिए क्रिकेट अब इतनी अहमियत नहीं रखता कि सब कुछ भूल-भाल कर उसे देखा जाए. हालिया मैच-फिक्सिंग कांड क्रिकेट की लोकप्रियता को और कम करेगा.’

दारेन की बात में सच्चाई है. 18 मई को मैच फिक्सिंग के खुलासे के दूसरे ही दिन बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन ने एक बयान जारी किया- ‘मै विश्वास दिलाता हूं, आईपीएल फिक्स बिल्कुल नहीं है, दोषी खिलाड़ियों को सज़ा मिलेगी.’ साफ है कि श्रीनिवासन को चिंता थी कि जनता में आईपीएल के फिक्स होने की धारणा बनने से इसकी लोकप्रियता पर असर पड़ रहा है. कई शहरों में आईपीएल के खिलाफ प्रदर्शन भी हो रहे थे. फिक्सिंग वैसे भी क्रिकेट की लोकप्रियता में हमेशा ग्रहण लगाती रही है. सन 2000 में भी मैच-फिक्सिंग के खुलासों के बाद लंबे वक्त तक क्रिकेट प्रेमियों का भरोसा इस खेल पर से उठ गया था और इसके मुकाबलों को को दर्शक ढूंढ़े नहीं मिल रहे थे. खेल पत्रकार हेमंत सिंह फिक्सिंग के प्रभाव को एक नई तरह से समझाते हुए कहते हैं, ‘नब्बे के दशक में डब्ल्यूडब्ल्यूई की फाइट बेहद पॉपुलर थी लेकिन जैसे ही यह खुलासा हुआ कि ये कुश्तियां न केवल फिक्स होती हैं बल्कि झूठी भी होती हैं तो यकायक इन कुश्तियों का ग्राफ जमीन पर आ गया. अगर आईपीएल के हर सीजन में ऐसे ही फिक्सिंग के खुलासे होते रहे तो इसका हश्र भी रेसलिंग जैसा हो सकता है.’

क्रिकेट की लोकप्रियता कम हो रही है, यह सिर्फ खेल विशेषज्ञ या चंद घटनाएं ही नहीं कह रहीं. बल्कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद भी इसे मानती है. 2011 में आईसीसी के एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह बात साफ शब्दों में कही गई थी कि भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता लगातार घट रही है, खासकर वनडे और टेस्ट क्रिकेट को लोकप्रिय बनाए रखने के लिए खास कोशिशों की जरूरत है. यह सच है कि टी-ट्वेंटी के तमाशे वाले इस दौर में टेस्ट और वनडे के दर्शक सबसे ज्यादा कम हुए हैं. लेकिन गहरी बात यह है कि टी-ट्वेंटी की लोकप्रियता भी लगातार गिर रही है.

खासकर आईपीएल की. टैम के मुताबिक आईपीएल की टीआरपी लगातार कम होती जा रही है. 2008 में पहले आईपीएल की टीआरपी सबसे ज्यादा 5.59 रही थी तो पिछले यानी आईपीएल-5 और हाल ही में समाप्त हुए आईपीएल-6 की टीआरपी सबसे कम क्रमश: 3.9 और 3.8 रही. आईपीएल-6 के पहले हफ्ते की टीआरपी 3.8 थी जो कि आपीएल पांच की पहले हफ्ते की टीआरपी से एक अंक कम थी. आईपीएल-5 के ओपनिंग मैच की टीआरपी 5.5 थी जो कि आईपीएल-6 के ओपनिंग मैच में घटकर सिर्फ 4.1 रह गई. टीआरपी के इन आंकड़ों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आईपीएल की लोकप्रियता लगातार घट रही है. वह भी तब जबकि यह क्रिकेट का सबसे तेज़ मायावी और चमकीला स्वरूप है. निश्चित तौर पर लोगों का धर्म और उसके खुदाओं पर से भरोसा उठ रहा है.

-हिमांशु बाजपेयी