महाराष्ट्र में है ‘क्लीन चिट’ सरकार

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देवेंद्र फडणवीस एक अच्छे इंसान हैं। वह एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे मंत्रियों को किसी भी तरह बचा ले जाने में, माहिर माने जाते हैं। यह बात अलग है कि विपक्ष के कड़े रुख के चलते उन्हें इस दफा जांच का आदेश देना पड़ा, लेकिन जांच के नतीजों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है।Ó यह कहना है महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण का।
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की देवेंद्र फडणवीस सरकार तीन साल पूरे करने जा रही है। लेकिन भ्रष्टाचार को खत्म करने के मुद्दे को लेकर बनी इस सरकार पर आए दिन भ्रष्टाचार के नए नए आरोप लग रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में विपक्ष में बैठी कांग्रेस-एनसीपी एक जुट होकर सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार की पोल खोल रही है।
जहां एकनाथ खडसे पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था। वहीं, इस साल हाउसिंग मंत्री प्रकाश मेहता और सुभाष देसाई पर लगे आरोपों की जांच चल रही है, लेकिन दोनों की अपने अपने पदों पर बने हुए हैं। फडनवीस ने साफ कर दिया है कि ‘एसआरए प्लान्सÓ में घोटाले के आरोप में फंसे मेहता की जांच लोकायुक्त करेंगे। लेकिन सवाल है कि आखिर मेहता के मामले में बरती जा रही नरमी के पीछे राज क्या है।
भ्रष्टाचार के आरोपों की फेहरिस्त के चलते मुख्यमंत्री को मंत्रियों सहित विधायकों और सांसदों को भ्रष्टाचार से दूर रहने की नसीहत देनी पड़ी। साथ ही यह भी चेतावनी दी है कि वह भ्रष्टाचार से दूर नहीं होते हैं तो उन्हें अगली बार चुनावों से दूर कर दिया जायेगा। वैसे, मुख्यमंत्री के इन प्रयासों से उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा बरकरार है।
राज्य के हाउसिंग मंत्री प्रकाश मेहता पर आरोप है कि उन्होंने दक्षिण मुंबई के ताड़देव इलाके में मौजूद एमपी मिल्स कंपाउंड की करीब एक लाख वर्ग फुट की जमीन बिल्डर को दी, जिससे मेहता को कथित तौर पर 500 से 800 करोड़ का फायदा हुआ। दरअसल, दक्षिण मुंबई की यह जमीन (स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी) परियोजना के तहत झुग्गी में रहने वालों के लिए मंजूर हुई थी। आरोप है कि मुख्यमंत्री की जानकारी के बिना मेहता ने एक बिल्डर को फायदा पहुंचाने के लिए एमपी मिल्स कंपाउंड की फाइल आगे बढ़ाई।
अफसरों ने जब इस बारे में मेहता से पूछा तो उन्होंने न सिर्फ झूठ बोला बल्कि मुख्यमंत्री को भी इस बारे में पता होने की बात कही, मेहता ने फाइल पर लिख दिया कि उनकी मुख्यमंत्री से बात हो गई है और उन्होंने मंजूरी दे दी। लेकिन जब फडणवीस ने इस बारे में कोई भी जानकारी होने से इंकार किया तो मेहता ने दावा किया कि उन्होंने कई फाइलें फडनवीस को दी थी वहीं, उन्हें पता ही नहीं था कि उन्होंने इस विशेष मामले का जिक्र मुख्यमंत्री से नहीं किया था। वैसे, विपक्ष के दबाव के बावजूद फडनवीस ने मेहता की दलीलों को कबूल कर लिया और संतुष्टि के लिए मेहता पर लगे आरोपों की जांच को लोकायुक्त से कराये जाने की बात कही।
असंतुष्ट कांग्रेस-एनसीपी ने मेहता की मुसीबत और बढ़ा दी और उनके द्वारा किए गए एक और घोटाले को उजागर किया। यहां पर आरोप है कि घाटकोपर पश्चिम स्थित निर्मल होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड (एनएचपीएल) के एक प्राइवेट बिल्डर को फायदा पहुंचाया गया था। 1999 में महाराष्ट्र हाउसिंग एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) एनएचपीएल को ट्रांजिट शिविर का निर्माण करने के लिए 18,902 वर्ग मीटर की जमीन दी थी लेकिन एनएचपीएल के पूरा काम न करने पर म्हाडा ने ‘अलॉटमेंट 2006 में रद्द कर दिया था। आरोप के मुताबिक मेहता ने म्हाडा के साथ जमीन के अलॉटमेंट को लेकर हस्तक्षेप किया, लेकिन साल 2012 में इसे निरस्त कर दिया गया था। कांग्रेस और एनसीपी के अनुसार कि मेहता ने फिर से एनएचजीएल को जमींन अलॉट कर दी। बकौल पूर्व मुख्यमंत्री चौहान, ‘प्रकाश मेहता पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करीबी हैं, इसीलिए फडणवीस कोई सख्त फैसला लेने से बच रहे हैं। कल तक विपक्ष में बैठ कर सत्ताधारी के आरोपों की जांच करवाने वाली सरकार आज खुद सत्ता में बैठ कर चुप क्यों है?Ó
फडणवीस का ड्रीम प्रोजेक्ट गले की फांस!
एक और मामले में फडनवीस को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट नागपुर-मुंबई समृद्धि एक्सप्रेसवे के इंचार्ज बनाये गए सीनियर नौकरशाह राधेश्याम मोपलवार को सस्पेंड करना पड़ा। मोपलवार की एक दलाल के साथ हो रही बातचीत की सीडी सामने आने के बाद राज्य की बीजेपी सरकार पर शिवसेना समेत विपक्षी पार्टियों ने सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद मुख्यमंत्री को ये कड़ा फैसला लेना पड़ा। इस सीडी में करोड़ों रुपये का भूखंड एक बिल्डर को देने के लिए सौदेबाजी की रिकॉर्डिंग थी।
एक्सप्रेसवे का चार्ज संभालने के बाद मोपलवार ने इगतपुरी और सिन्नर तालुका के दौरे के दौरान एक गलत बयान देते हुए सरकार की छवि भी खराब करने की कोशिश की थी। दरअसल, उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री एक्सप्रेसवे का निर्माण एसपीवी (स्पेशल पर्पस वेहिकल) द्वारा कराएंगे। इस दौरान जब फडणवीस से इस बार में पूछा गया तो मुख्य सचिव सुमित मलिक ने साफ किया कि एमएसआरडीसी खुद एसपीवी है, मोपलवार को समृद्धि के लिए एसपीवी क्यों चाहिए? हालाकिं, मोपलवार पर लगे इन आरोपों की जांच हुई लेकिन तब तक वह करोड़ों रुपये बना चुके थे।
एनपीसी के प्रवक्ता नवाब मलिक सवाल पूछते हैं, ‘क्यों मेहता और अकेले मोपलवार को दोषी ठहराया जाए? इन सबके लिए सीएम भी उतने ही जिम्मेदार हैं। कैबिनेट में ज्यादातर वे लोग आज मिनिस्टर बने बैठे हैं, जो भ्रष्ट है जिनके ऊपर हत्या से लेकर बैंकिंग धोखाधड़ी और भूमि अधिग्रहण सहित कई आरोप लगे हुए हैं। जिनको अनदेखा करते हुए सरकार अपनी साफ छवि होने का दिखावा कर रही है। इसलिए समृद्धी प्रोजेक्ट की न्यायिक जांच होनी चाहिए। इससे पता चल जाएगा कि सरकार के कैसे किसानों से सस्ते दामों में उनकी जमीन खरीदी और न बेचने पर उन पर दबाव बना उन्हें मजबूर किया गया है।Ó
एकनाथ खडसे को क्लीनचिट, लेकिन कैबिनेट में नहीं हुई वापसी
पिछले साल फडणवीस सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते अपने एक ऐसे मंत्री को हटाया था, जिसे एक वक्त पर मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी माना जाता था। जी हां, हम बात कर रहे है फडणवीस सरकार में राजस्व मंत्री रहे एकनाथ खडसे की जिन्हें लैंड डील समेत कई विवादों में नाम आने के बाद जून 2016 में त्यागपत्र देना पड़ा था। दरअसल, खडसे पर एमआईडीसी की जमीन को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर खरीदने का आरोप लगा था। इस आरोप में खडसे की पत्नी मंदाकिनी और दामाद गिरीश चौधरी को भी जांच के दायरे में रखा गया।
आरोप था कि तीनों ने अप्रैल 2016 में पुणे में तीन एकड़ जमीन खरीदी थी और 3.75 करोड़ रुपए का भुगतान किया था। इसके लिए 1.37 करोड़ रुपये स्टाम्प ड्यूटी के तौर पर चुकाए गए थे। असलियत यह है कि इतनी ड्यूटी 31.01 करोड़ की डील पर चुकाई जाती है। इस पर सवाल यह उठा कि आखिर खडसे ने इतनी ज्यादा स्टाम्प ड्यूटी क्यों दी? इसी की जांच के लिए संयुक्त आयोग बनाया गया, और साल भर बाद अब खडसे को इस मामले ‘क्लीन चिटÓ भी हासिल हो गई है। वैसे, आरोप साबित नहीं होने के बावजूद, फिलहाल खडसे को कैबिनेट से दूर रखा गया हैं।
यह बात जुदा है कि मुख्यमंत्री यह कबूलने को तैयार नहीं हैं कि उनके कैबिनेट का हिस्सा बने लोग भ्रष्ट हैं और यही वजह है कि आरोपों के बाद भी मिनिस्टरों के क्लीन चिट दे दी जाती है। जैसे, राज्य की महिला व शिशु कल्याण मंत्री पंकजा मुंडे द्वारा चिक्की घोटाले का मामला हो या नोटबंदी के दौरान मंत्री सुभाष देशमुख की कार से 91 लाख रुपये नकदी का पकड़ा जाना हो। इन दोनों मामलों को हवा तो खूब मिली लेकिन सरकार ने इन पर कार्रवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। सुभाष देसाई शिवसेना के वरिष्ठ नेता हैं, शिवसेना भाजपा सरकार में सहयोगी दलों के तौर पर शामिल है।
विनोद तावड़े जो शिक्षा मंत्री जैसे सम्मानित पद हैं, वे भी विपक्ष के निशाने पर हैं। तावड़े पर अपनी शैक्षिक योग्यता गलत बताये जाने के मामले में उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने पर भी विपक्ष फडऩवीस को माफ करने तैयार नहीं है।
भले ही लोकायुक्त जांच के बाद रविंद्र वायकर को क्लीन चिट मिल गई है लेकिन, विपक्ष के गले फैसला नहीं उतर रहा है। कांग्रेस के संजय निरुपम ने वायकर ट्रस्ट की जमीन के नाम पर गैऱकानूनी विकास का आरोप लगाया था। हालाकिं, अब मामले में वायकर को करीब करीब क्लीनचिट मिलने के बाद वह निरुपम पर 10 करोड़ रूपये की मानहानि का दावा ठोकने की तैयारी में है।
जून 2015में कैबिनेट मिनिस्टर पंकजा मुंडे पर आदिवासी बच्चों के स्कूल के लिए चक्की, कालीन, बर्तन, किताबें, नोटबुक्स, वॉटर फिल्टर और अन्य सामानों की खरीदी में, करीब 206 करोड़ रुपए का ठेका नियमों को नजरअंदाज कर जारी करने का आरोप था। यह स्कूल को राज्य सरकार चलाती है। खैर, घोटाले में एसीबी द्वारा मुंडे को क्लीन चिट दे दी गई थी। हालांकि विपक्ष ने इस रिपोर्ट को लीपापोती करार दिया था।
कांग्रेस ने क्लीनचिट को खतरनाक बताया
कांग्रेस मुंबई अध्यक्ष और संजय निरुपम कहते हैं, ‘इस तरह के चयनात्मक भ्रष्टाचार और क्लीन चिट्स भी खतरनाक हैं।Ó
निरुपम का आरोप लगाया कि फडनवीस और महाराष्ट्र सरकार दोनों इस मोपलवार के बारे में जानते थे और इसके बावजूद कठोर कार्रवाई करने में विफल रहे।
नवाब मलिक कहते हैं, ‘इस सरकार में बहुत भ्रष्टाचार है क्योंकि वहां इसे रोकने के लिए कोई राजनीतिक इच्छा नहीं है और फडऩवीस खुद इन आरोपों का बचाव करना चाहते है।Ó मलिक मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए दावा करते हैं कि अगर मोपलवार का ऑडियो टेप के लीक होकर वायरल न हुआ होता तो सीएम उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं करते।
विपक्ष में कमान संभाले धनंजय मुंडे फडनवीस को एक कमजोर मुख्यमंत्री मानते हैं। मुंडे कहते हैं ‘महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस जो पिछली सरकार में आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों के इस्तीफे की मांग करते थे, वहीं अब अपनी सरकार में आरोपों में फंसे मिनिस्टरों का बचाव करते दिख रहे है।Ó
अक्टूबर 2014 में जब बीजेपी महाराष्ट्र में सत्ता में आई, तब सीएम ने स्वच्छ प्रशासन का वादा किया था। लेकिन अब पार्टी और सरकार के मंत्री, अनैतिकता और भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे हैं।
सोचने वाली बात यह है कि कुछ दिनों पहले ही राज्य कैबिनेट के चार मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कराए गए हैं और एक को तो पुलिस ने गिरफ्तार भी किया, जिसे बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। ये वही मंत्री है जिसे केंद्र और राज्य में बीजेपी की सहयोगी पार्टी के चीफ उद्धव ठाकरे ने मंत्री बनाये जाने की सिफारिश की थी। हैरत की बात है कि सिंचाई घोटाले में पूर्व डिप्टी सीएम और एनसीपी सांसद की गिरफ्तारी की मांग करने वाले फडणवीस इन मामलों में दोहरी नीति क्यों अपना रहे हैं।
आरोपों में फंसे लोगों के तारनहार फडनवीस
संभाजी पाटिल निलंगेकर, जो कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर के पोते हैं, उन्हें फडऩवीस का करीब माना जाता है। संभाजी को एक मराठा चेहरे के रूप में पिछले साल कैबिनेट में शामिल किया गया। उन्हें बीजेपी के राज्य अध्यक्ष रावसाहेब दानवे को चुनौती देने वाला माना जा रहा है। संभाजी का नाम एक कंपनी जिसपर तीन बैंकों के साथ धोखाधड़ी करके 40 करोड़ रुपया हथियाने का आरोप है, में शामिल है। इस मामले में सीबीआई की दायर एफआईआर में संभाजी का नाम भी है। इसके अलावा एक और मंत्री जयकुमार रावल के खिलाफ गैरकानूनी ढंग से सरकारी जमीन को हथियाने का मामला दर्ज है।
बहरहाल, फडणवीस की कैबिनेट पर विपक्ष आरोपों की बौछार कर रहा है, लेकिन लगता है उन्हें इस बात में अब जरा भी दिलचस्पी नहीं है कि कौन क्या बोलता है। यही वजह है कि आरोपों के बाद मंत्रियों को आसानी से क्लीनचिट मिल जाती है और फडणवीस इस बात का दावा करते हैं कि हमने जांच कराई और आरोप गलत निकले।
भले ही मुख्यमंत्री अपने कैबिनेट का दामन पाक-साफ होने का दावा कर रहे हैं लेकिन आरोपों के बौछारों के चलते उनकी साफ छवि को हो सकने वाले नुकसान से वह परेशान नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता। जानकारी के मुताबिक, सरकार मंत्रियों के आये दिनों सामने आ रहे घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों के चलते ही फडणवीस अपनी कैबिनेट में फेरबदल करने मूड में हैं। अब इसे विपक्ष का दबाव कहे या आने वाले 2019 के चुनाव में अपनी सरकार की साफ छवि जनता को दिखाने की तैयारी।
‘वाकई यह एक क्लीन चिट सरकार है। मजेदार बात यह है कि फडणवीस ने अपने मंत्रियों से लेकर विधायकों तक को चेतावनी दे रहे हैं कि भ्रष्टाचार से दूर रहें। उनकी ये हिदायतें संकेत है कि उन्हें भनक है कि इन घोटालों और आरोपों का असर आने वाले चुनाव में वोट पर पड़ सकता है। देखते हैं कि मुख्यमंत्री कब तक अपने मंत्रियों को क्लीनचिट देकर सरकार की साफ छवि होने का दावा करते हैं।आम जनता इतनी भोली भाली भी नहीं है।सही गलत सब जानती है। 2019 के चुनावी नतीजे यह साफ दिखा देंगे। बड़े आत्मविश्वास के साथ कहती हैं ‘आपÓ से अलग हुईं अंजलि दमानिया। सामाजिक कार्यकर्त्ता अंजलि दमानिया का आरोप है कि उन्हें पाकिस्तान के कराची से एक धमकी भरा फोन आया था जिसमें उन्हें खडसे के खिलाफ उठाए मामलों को वापस लेने कहा गया। उनका कहना है कि छान बीन से पता चला है कि वह फोन नंबर महज़बीं के नाम है जो कि दाउद इब्राहिम की बीवी है।