भ्रष्टाचार पर क़ाबू की क़वायद

सरकारी भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने वाला विभाग तो पहले भी था। भ्रष्टाचार तब भी और अब भी हो रहा है। एक दिन में सैकड़ों शिकायतें विभाग के पास पहुँच रही है। बाक़ायदा इनकी जाँच हो रही है और सही पर कार्रवाई अंजाम दी जा रही है। पहले शिकायतें जा रही थीं; लेकिन कार्रवाई कुछ ही मामलों में होती, बाक़ी ढर्रा पहले ही तरह ही चलता रहता। पर अब शिकायतों पर तुरन्त कार्रवाई हो रही है। पहले सरकारी संरक्षण के चलते प्रभावशाली अधिकारी बेख़ौफ़ होकर कमीशनख़ोरी करते रहते। कभी-कभार कोई बड़ी कार्रवाई हुई, तो बात अलग वरना सरकारें भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस का राग अलापती रही; लेकिन ठोस कुछ किया-धरा नहीं। खनन से लेकर जाति प्रमाण-पत्र हासिल करने में भ्रष्टाचार का ही बोलबाला रहा। राज्य में बीस हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का खनन भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा नमूना है। बिना घूस के काम करना जैसे अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए मजबूरी सी बन गयी थी।

कैप्टन अमरिंदर सरकार में मंत्री रहे साधू सिंह धर्मसोत के ख़िलाफ़ करोड़ों रुपये के गड़बड़झाले के आरोप लगे, विपक्ष ने सदन के बाहर और अन्दर जाँच की आवाज़ बुलंद की; लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा। उन्होंने भारी विरोध के बाद भी अपना कार्यकाल मज़े से पूरा किया। सरकार बदलने के बाद धर्मसोत का सरकारी संरक्षण हटा, तो मामला दर्ज हो गया। आरोप भी पुष्ट हो गये और उनकी गिरफ़्तारी भी हो गयी। करोड़ों रुपये के वार-न्यारे के इस खेल में धर्मसोत के ख़िलाफ़ पुख़्ता सुबूत मिले हैं। ज़िला वन अधिकारी ने बताया कि प्रति पेड़ कटाई 500 रुपये धर्मसोत के हिस्से में जाते थे। राज्य में लाखों की संख्या में ऐसे पेड़ कटे। उनके ख़िलाफ़ कई मामले हैं, जिनके चलते उनको कहीं से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही। पूर्व विधायक जोगिंदर पाल पर भी मौज़ूदा सरकार के दौरान कार्रवाई अमल में आ सकी। राज्य के कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। देर-सबेर उन पर भी कार्रवाई होगी। सरकारी भ्रष्टाचार पर बड़ी कार्रवाई कार्यकारी पुलिस महानिदेशक गौरव यादव के आदेश पर डीएसपी लखबीर सिंह पर हुई। 10 लाख रुपये की घूस के आरोपी लखबीर पर आरोप पहले भी लगते रहे हैं; लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं हुई थी।

फ़रीदकोट में तैनात लखबीर सिंह ने दूसरी पुलिस रेंज तरनतारन के एक मामले को सैटल कराने के लिए यह राशि ली थी। पिशौरा सिंह एनडीपीसी एक्ट में नामजद था। प्राथमिकी से नाम हटाने के लिए उसने यह राशि डीएसपी को दी थी। पंजाब में पुलिस और नशा तस्करों का बड़ा गठजोड़ है। डीएसपी से कांस्टेबल स्तर के कई अधिकारी और कर्मचारी ऐसे मामलों में संलिप्त हैं। नशा तस्करों के पुलिस संरक्षण की वजह से ही इस पर नियंत्रण पाना मुश्किल है। हज़ारों करोड़ों रुपये के इस कारोबार को जब तक सरकारी संरक्षण से मुक्त नहीं किया जाता, यह चलता ही रहेगा। हाल में पंजाब काडर के वरिष्ठ आईएएस संजय पोपली की गिरफ़्तारी से साबित हो गया है कि किस क़दर ब्यूरोक्रेट्स भ्रष्टाचार के दलदल में फँसे हैं। नवांशहर में सात करोड़ रुपये से ज़्यादा की सीवरेज लाइन परियोजना में ठेकेदार से एक फ़ीसदी कमीशन लेने के आरोप में पोपली और उनके सहायक संजीव वत्स की गिरफ़्तारी हो गयी। विजिलैंस विभाग ने पोपली के चंडीगढ़ आवास से नौ किलो तो बाहर स्टोर में रखा सोना बरामद हुआ। किसी अधिकारी के घर सोने की ईंटें, बिस्कुट्स और सिक्के मिलना साबित करता है कि राज्य वाकई भी भ्रष्टाचार के दलदल में फँसा है। इस घटना का दु:खद पहलू यह रहा कि संजय पोपली के इकलौते बेटे कार्तिक पोपली की मौत हो गयी। पोपली और उनकी पत्नी ने विजिलैंस टीम पर गोली मारकर हत्या का आरोप लगाया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसे $खुदकुशी की घटना पाया गया है। विजिलैंस ने भ्रष्टाचार के मामले में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) विशाल चौहान को भी गिरफ़्तार कर लिया है। इससे पहले ज़िला वन अधिकारी गुरमनप्रीत सिंह भी इसी मामले में विजिलैंस के शिकंजे में हैं।

अमृतसर विकास ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन दिनेश बस्सी के ख़िलाफ़ भी विजिलैंस कार्रवाई कर रहा है। राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन के बाद जिस तरह से विजिलैंस विभाग को सरकार की ओर से खुले मन से कार्रवाई करने का आदेश मिला है, वह इस दिशा में अच्छी पहल है। मृतप्राय: से पड़े विजिलैंस विभाग की सक्रियता देखते ही बनती है। यह सब सरकार के नेतृत्व पर निर्भर करता है। कोई भी सरकार अगर किसी मिशन पर सच्चे अर्थ में काम करना चाहे तो उसे अंजाम तक पहुँचा सकती है। मुख्यमंत्री भगवंत मान प्रशासक के तौर पर मज़बूत साबित नहीं हुए हैं; लेकिन फ़िलहाल भ्रष्टाचार पर क़ाबू पाने के लिए उन्होंने जो रुख़ अपनाया है, उसे शुभ संकेत माना जा सकता है।

सन्तोषजनक नहीं पिछले नतीजे

पंजाब में विजिलेंस विभाग की कार्रवाइयाँ सन्तोषजनक नहीं कही जा सकतीं। पिछले पाँच साल के आँकड़ों से इसकी पुष्टि की जा सकती है। इतने भ्रष्टाचार के बावजूद विभाग का आँकड़ा 200 तक भी नहीं पहुँचा। हर माह 15 से ज़्यादा मामले ही दर्ज नहीं हुए। वर्ष 2017 में विभाग ने कुल 159 मामले दर्ज हुए। इनमें 107 में आरोप-पत्र दाख़िल किये जा सके। एक चौथाई हिस्सा जाँच में ही उलझा रहा। केवल 44 मामलों में आरोपियों पर दोष साबित हो सका। सन् 2018 में भी 159 मामले पंजीकृत हुए। इनमें 112 में आरोप-पत्र दाख़िल किये गये और केवल 35 में दोषियों को सज़ा मिल सकी। सन् 2019 में भी संयोग से तीसरे वर्ष 159 मामले ही दर्ज हुए। न्यायालयों में 115 में आरोप-पत्र दाख़िल हुए; लेकिन सज़ा मिल सकी केवल 29 मामलों में ही। सन् 2020 में दर्ज मामलों की संख्या रही 140, आरोप-पत्र दाखिल हुए 108 और सज़ा मिली केवल छ: मामलों में ही। सन् 2021 में दर्ज मामले हुए 150, आरोप-पत्र 115 मामलों के पेश हो सके। ज़्यादातर मामलों में विजिलैंस की जाँच ही चलती रही। घूसख़ोरी में रंगे हाथों पकड़े जाने के मामलों की संख्या सन्तोषजनक नहीं कही जा सकती। विभाग की जाँच लम्बा खिंचना और न्यायालयों में आरोप पेश न होना वे सब पहलू हैं, जिन्हें कुछ कारणों से अनदेखा किया जाता है।