भारत को चीन से कितना ख़तरा!

सीमा पर चीन करता जा रहा निर्माण, लड़ाकू विमान लगातार भर रहे उड़ानें

क्या साल के आख़िर में तीसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शी जिनपिंग भारत के साथ युद्ध की तैयारी कर रहे हैं? पूर्वी लद्दाख़ के ग़ैर-विवादित क्षेत्र में नो फ्लाई ज़ोन में चीन के लड़ाकू विमानों ने हाल के दो हफ़्तों में एक से ज़्यादा बार भारतीय क्षेत्र के ऊपर उड़ानें भरी हैं। इसके अलावा भूटान के रास्ते भारत को घेरने के इरादे से चीन डोकलाम से नौ किलोमीटर दूर भूटान की अमो चू नदी घाटी में पिछले साल जो गाँव बसाना शुरू किया था, अब वहाँ पूरा गाँव बस गया है। चीन ने इसके अलावा सीमा पर कई निर्माण किये हैं, जिन्हें उसकी भविष्य की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है। यह सब घटनाएँ तब हो रही हैं, जब चीन भारत के साथ कोर कमांडर स्तर की बातचीत के 16 दौर हो चुके हैं।

चीनी सेना अपनी पहुँच डोकलाम पठार की रणनीतिक लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण चोटी तक बनाना चाहती है। जुलाई के मध्य में भारत ने भूटान को डोकलाम पठार के पास विवादित त्रि-जंक्शन क्षेत्र में चीन के कार्यों को लेकर सचेत किया था। दरअसल चीन का बड़ा उद्देश्य दबाव की स्थिति बनाकर भारत के साथ 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और थिंपू के साथ 477 किलोमीटर की विवादित सीमा के साथ दशकों से उठाये जा रहे अपने सीमा दावों को ताक़त देना है।

चीन की गतिविधियों को लेकर चिन्ता केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी जता रहे हैं। सीमा के भीतर चीन के लड़ाकू जहाज़ों के उड़ान भरने की रिपोट्र्स के बीच सुब्रमण्यम स्वामी ने एक ट्वीट करके कहा- ‘चीन की सेना भारतीय सीमा में घुस चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। क्या आप (मोदी) इसका परिणाम समझते हैं?’

सन् 2017 में सिक्किम के पास डोकलाम पठार पर भारत और चीन की सेना का आमना-सामना हुआ था। सैटेलाइट से हाल में ली गयी जो तस्वीरें सामने आयी हैं, उनसे ज़ाहिर होता है कि एलएसी के पास भूटान के साथ विवादित क्षेत्र में चीन ने पिछले साल जो निर्माण शुरू किया था, वहाँ अब पूरा गाँव बस गया है और वहाँ उसने बड़ी संख्या में पूर्व सैनिकों को बसाया है। तस्वीरों में दिखता है कि वहाँ काफ़ी घरों के आगे कारें और अन्य वाहन खड़े हैं। दरअसल चीन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण डोकलाम पठार को वैकल्पिक मार्ग के रूप में तैयार कर रहा है।

अब ये रिपोट्र्स पुख़्ता हो चुकी हैं कि चीन अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जीओसी-इन-सी, लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता का कहना है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) अरुणाचल प्रदेश सीमा पर बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ अपनी क्षमताओं को बढ़ा रही है।

लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता कहते हैं- ‘तिब्बत में भी एलएसी के पार बुनियादी ढाँचे में बहुत विकास हुआ है और हो रहा है। दूसरी ओर सडक़ों और पटरियों, कनेक्टिविटी और नये हवाई अड्डों और हेलीपैडों का निर्माण कार्य हो रहा है। सशस्त्र बलों सहित हमारी सभी एजेंसियाँ लगातार इन हालात की निगरानी कर रही हैं।’
उनका कहना है कि चीन की इन गतिविधियों को देखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेशनल मामलों में हम भी अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। तकनीक (टेक्नोलॉजी) के तेज़ी से विकास के साथ ही वेलफेयर की प्रकृति बदल रही है, इसलिए तकनीक के साथ तालमेल रखने के लिए हमें अपनी ख़ुद की कार्यप्रणाली और विभिन्न चुनौतियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने की भी ज़रूरत है।’

साल के आख़िर में चीन में अपने नेता (राष्ट्रपति) पद का चुनाव वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी को करना है। ज़्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि शी जिन पिंग तीसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। उसके बाद वह अपनी कुछ योजनाओं को अमलीजामा पहनाना चाहते हैं। क्या इसमें भारत के ख़िलाफ़ युद्ध करना भी शामिल है? यह एक जटिल सवाल है, क्योंकि भारत की पिछले दशकों में बढ़ती ताक़त से भी चीनी नेतृत्व बेचैनी महसूस करता है। ख़ुद चीन के ख़राब आर्थिक हालात की रिपोट्र्स अब आने लगी हैं।

यह कहा जाता है कि जिनजिंग अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सीमा पर विवाद खड़े करते हैं। हालाँकि बहुत-से रक्षा विशेषज्ञ चेताते हैं कि चीन की गतिविधियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। तनाव वाली तमाम गतिविधियों के बावजूद एक सच यह भी है कि चीन के साथ भारत का व्यापार आज भी जारी है। यूक्रेन में युद्ध के चलते हाल में भारत ने चीन की एक निजी कम्पनी ताइयुआन को 500 करोड़ के रेल पहियों का ऑर्डर दिया है। वैसे यूक्रेन की कम्पनी को यह ठेका इससे कहीं कम क़ीमत पर दिया गया था।

लिहाज़ा चीन के सीमा पर तनाव बढ़ाने के बावजूद कुछ विशेषज्ञ उसके व्यापारिक हितों का हवाला देते हुए मानते हैं कि वह युद्ध की सीमा तक शायद ही जाए। दूसरा भारत की सैन्य क्षमताओं को कम करके नहीं आँका जा सकता। वैसे भी चीन के भीतर ही शी जिनपिंग के लिए चुनौतियाँ कम नहीं हैं। इनमें आर्थिक चुनौतियाँ भी शामिल हैं। यह कुछ ऐसे बिन्दु हैं, जो उनके लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की राह में रोड़ा भी बन सकते हैं। क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में उनके विरोधी कम नहीं हैं; ख़ासकर उनकी आर्थिक नीतियों के। हाल में आयी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से बड़ी संख्या में व्यापारियों का दूसरे देशों को पलायन हुआ है।

पश्चिम भी चिन्तित
पश्चिमी देशों का रुख़ भी चीन के प्रति अविश्वास भरा है। हाल में अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई और ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई-5 के प्रमुखों ने एक बैठक के दौरान चीन को पश्चिमी देशों के लिए लम्बे समय का और सबसे बड़ा ख़तरा बताया था। उनका मानना था कि चीन पश्चिम देशों की गोपनीयता हासिल करने में जुटा है और उसकी विभिन्न तकनीकों को चुराने की फ़िराक़ में रहता है। दोनों देशों के ख़ुफ़िया विशेषज्ञों का मानना था कि चीन दुनिया को अपने पक्ष में बदलने की चालें चल रहा है और इसके लिए दमन का सहारा लेने से भी नहीं कतरा रहा। वे (प्रमुख) दुनिया को इसके प्रति आगाह करते हुए कहते हैं कि इन ख़तरों से निपटने की तैयारी ज़रूरी है।
चीन की ये गतिविधियाँ एशियाई देशों में भी उतनी ही हैं। स्थिति कितनी गम्भीर है इसका अंदाज़ा एफबीआई के प्रमुख क्रिस्‍टोफर रे की बातों से लगाया जा सकता है, जिनका कहना है कि एफबीआई प्रत्येक 24 घंटे में चीन से जुड़े एक मामले की जाँच करती है। क्रिस्टोफर का तो यह तक कहना है कि चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ नज़दीकी सम्बन्ध बनाने से कोई बदलाव आएगा, यह सोचना एक भूल ही होगी। एफबीआई प्रमुख चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के निरंकुश एकाधिकार की तरफ़ जाने को सबसे बड़ी चिन्ता मानते हैं।

इस बैठक का लब्बोलुआब यह रहा कि चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ख़ामोशी से पूरे विश्‍व में दबाव की नीति बनाने की योजना पर काम कर रही है। दो देशों के ख़ुफ़िया प्रमुख मानते हैं कि इस दबाव का मुक़ाबला करने के लिए चीन के ख़िलाफ़ कार्रवाई की ज़रूरत है। उन्हें यह भी लगता है कि रूस के यूक्रेन पर हमले की तर्ज पर चीन ताइवान पर कार्रवाई करके उसे जबरन अपने क़ब्ज़े में करने की कोशिश कर सकता है।

ख़ुफ़िया विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने जासूसों का विशाल नेटवर्क बना लिया है और वह पश्चिम सहित देश के अन्य हिस्सों, जिनमें भारत भी शामिल है; में बड़े पैमाने पर अपनी गतिविधियाँ जारी रखे हुए है। इनमें हैकिंग उसका सबसे बड़ा हथियार है। चीन आर्थिक लाभ उठाने के लिए लम्बे समय से हैकिंग और सूचनाओं को चोरी की गतिविधियों में लिप्‍त है। एफबीआई और एमआई-5 दूसरे देशों की एजेंसियों के साथ एक टीम बनाकर चीन को लेकर काम कर रहे हैं।

रिपोट्र्स से पता चलता है कि चीन दुनिया भर की तमाम बड़ी कम्पनियों में अपने एक इंटरनल सेल के ज़रिये काम करता है, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को रिपोर्ट करता है। यह सेल न सिर्फ़ राजनीतिक एजेंडा चलाता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कम्पनी राजनीतिक दिशा-निर्देशों का पालन करे। ख़ुद चीन के विशेषज्ञ यह स्वीकार करते रहे हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया के कई देशों में बिजनेस के ज़रिये सक्रिय है। इनमें कई गोपनीय तरीक़े से काम करते हैं।

चीन पश्चिम ही नहीं एशिया में अपने विस्तार पर तेज़ी से काम कर रहा है। भारत से चीन का सीमा पर सीधा टकराव है। अपने हितों को देखते हुए अमेरिका भी एशिया में चीन को लेकर सक्रिय है। वह चीन को एशिया में रोकना चाहता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान एशिया के काफ़ी देश रूस के साथ खड़े दिखे हैं। चीन तो ख़ैर है ही। लिहाज़ा अमेरिका एशिया में चीन का विस्तार रोकने की हर सम्भव कोशिश कर रहा है। वह किसी सूरत में चीन के किसी नये क्षेत्र में क़ब्ज़े को रोकना चाहता है। इनमें भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्व पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाला बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जहाँ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ विद्रोह जैसे हालात हैं।


“जब भी हम पाते हैं कि चीनी विमान या रिमोट से पायलट एयरक्राफ्ट सिस्टम (आरपीएस) वास्तविक नियंत्रण रेखा के थोड़ा बहुत क़रीब आ रहे हैं, तो हम अपने लड़ाकू विमानों के ज़रिये उचित उपाय करते हैं। हमने हमारे सिस्टम को हाई अलर्ट पर रखा है। इसने उन्हें काफ़ी हद तक बाधित किया है।’’
विवेक राम चौधरी
एयर चीफ मार्शल


“चीन की सेना भारतीय सीमा में घुस चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिला, जिसका भाई भारतीय सेना में है और लद्दाख़ में सेवारत है। उनके भाई के अनुसार, चीनी पीएलए (चीन की सेना) एलएसी (भारत-चीन की सीमा रेखा) के पार ग़ैर-विवादित भारतीय क्षेत्र में आगे बढ़ चुकी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। अभी भी कोई आया नहीं? क्या मोदी इसका परिणाम समझते हैं?’’
सुब्रमण्यम स्वामी
भाजपा सांसद


“सशस्त्र बलों सहित हमारी सभी एजेंसियाँ लगातार वर्तमान हालात की निगरानी कर रही हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑपरेशनल मामलों में हम भी अपनी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। टेक्नोलॉजी के तेज़ी से विकास के साथ ही वेलफेयर की प्रकृति बदल रही है। इसलिए टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल रखने के लिए हमें अपनी ख़ुद की कार्यप्रणाली और विभिन्न चुनौतियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने की भी ज़रूरत है।’’
लेफ्टिनेंट जनरल आर.पी. कलिता
जीओसी-इन-सी,
पूर्वी कमान

कमज़ोर नहीं भारत
सीमा पर चीन भारत को उकसाने की कोशिशों के तहत उसके लड़ाकू विमान पूर्वी लद्दाख़ में लगातार उड़ान भर रहे हैं। उसके लड़ाकू जेट पूर्वी लद्दाख़ में तैनात भारतीय बलों को भडक़ाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। जे-11 सहित चीनी लड़ाकू विमान वास्तविक नियंत्रण रेखा के क़रीब उड़ान भर रहे हैं। हाल के दिनों में इस क्षेत्र में 10 किलोमीटर के कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स (सीबीएम) लाइन के उल्लंघन के मामले सामने आये हैं।

विशेषज्ञ इसे क्षेत्र में भारतीय रक्षा तंत्र पर नज़र रखने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं। भारतीय वायु सेना ने इसका जवाब देने के लिए कड़े क़दम उठाये हैं और उसने मिग-29 और मिराज़-2000 सहित अपने सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमानों को उन्नत ठिकानों पर आगे बढ़ा दिया है, जहाँ से वे मिनटों में चीनी हरकतों का जवाब दे सकते हैं। इसके अलावा एलएसी पर तैनात सैनिकों को चीनी भाषा मैंडेरिन सिखाने पर भारतीय सेना का फोकस बढ़ रहा है। आईटीबीपी (इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस) ने इस दिशा में ज़्यादा तेज़ी से काम किया है।

भारत के पास रफाल और एस-400 मिसाइल प्रणाली है। बता दें कि वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिट्री एयरक्राफ्ट (डब्ल्यूडीएमएमए) ने अपनी ग्लोबल एयर पॉवर्स रैंकिंग-2022 की रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना को चीन की एयरफोर्स के मुक़ाबले बेहतर रैंकिंग दी है। डब्ल्यूडीएमएमए की रिपोर्ट में 98 देशों की एयर फोर्स पॉवर का मूल्यांकन किया जाता है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने हाल में भारत को रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली ख़रीदने के लिए काटसा (काउंटरिंग अमेरिकन एडवरसरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट) प्रतिबंधों से छूट दिलाने वाले एक संशोधित विधेयक पारित कर दिया। एस-400 रक्षा मिसाइल सिर्फ़ पाँच मिनट में युद्ध के लिए तैयार हो सकती है। सीमा पर मिग-29 और मिराज़-2000 जैसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान तैनात हैं।

भारतीय वायु सेना के पास 632 लड़ाकू विमान सहित 1645 विमान हैं। इनमें रफाल, सुकोई, मिग-21 बीआईएस, जगुआर, मिग-29 यूपीजी (मल्टीरोल) और तेज़स शामिल हैं। वायु सेना में एमआई-17/171 (मध्यम-लिफ्ट)-223, एचएएल ध्रुव (मल्टीरोल)-91, एसए 316/एसए319 (उपयोगिता)-77, एमआई-25/25/35 (गनशिप/परिवहन)-15, एएच-64ई (हमला)-8, सीएच-47एफ (मध्यम लिफ्ट)-6, एमआई-26 (भारी लिफ्ट)-1 व एसए 315 (लाइट यूटिलिटी)-17 जैसे हेलीकॉप्टर भी मौज़ूद हैं। वायु सेना के बेड़े में एएन-32 (सामरिक)-104, एचएस 748 (उपयोगिता)-57, डोर्नियर 228 (यूटिलिटी)-50, आईएल-76 एमडी/एमकेआई (रणनीतिक)-17 और सी-17 (रणनीतिक/सामरिक)-11 सहित सी-130जे (सामरिक)-11 ट्रांसपोर्टर जहाज़ भी शामिल हैं। ग्लोबल एयरपॉवर रिपोर्ट में इंडियन एयरफोर्स का छठा स्थान है।

गिलगित-बाल्टिस्तान पर नज़र
चीन भारत को घेरने और एशिया क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और मज़बूत करने के लिए पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका पर आर्थिक दबाव बनाकर उसकी ज़मीन हड़पने की साज़िश रच रहा है। बहुत-से जानकार श्रीलंका में वर्तमान आर्थिक तंगहाली का कारण चीन को मानते हैं। नेपाल की ज़मीन पर कई वर्षों में क़ब्ज़ा किया है। पाकिस्तान ने तो सन् 1963 में पीओके के तहत पडऩे वाला 5,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शक्सगाम वैली चीन को भेंट में दे दिया था। अब जो रिपोर्ट सामने आयी हैं, वह भारत के लिए और चिन्ताजनक है। रिपोर्ट यह है कि चीन के 20,000 करोड़ रुपये के क़र्ज़ में फँसा पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान चीन को बेच सकता है।
‘तहलका’ की जुटाई जानकारी के मुताबिक, चीन से पाकिस्तान को मिले क़र्ज़ की शर्तों के मुताबिक पहले कुछ साल तक यह इलाक़ा पट्टे (लीज) पर दिया जाएगा। यदि पाकिस्तान क़र्ज़ नहीं चुका पाता है, तो ऐसी स्थिति में यह इलाक़ा चीन के क़ब्ज़े में चला जाएगा। गिलगित-बाल्टिस्तान के इन इलाक़ों में इलाक़ों में पाकिस्तान के अवैध क़ब्ज़े वाला पीओके शामिल है, जिसके बारे में रिपोट्र्स हैं कि चीन वहाँ पहले ही कुछ निर्माण गतिविधियों में शामिल है। साथ ही उसकी सेना की उपस्थिति भी वहाँ है।

काराकोरम नेशनल मूवमेंट के अध्यक्ष मुमताज़ नागरी ने भी हाल में यह आशंका ज़ाहिर की थी कि पाकिस्तान अपने क़र्ज़ के बोझ से छुटकारा पाने के लिए गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र चीन को पट्टे पर दे सकता है। अल अरबिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गिलगित-बाल्टिस्तान आने वाले समय में वैश्विक शक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा का केंद्र और दुनिया के ताक़तवर देशों के बीच जंग का मैदान बन सकता है।’

भारत के लिए चीन की यह कोशिश दो-तरफ़ा चिन्ता का विषय है। इसके कारण भी दो हैं। पहला यह कि सामरिक दृष्टि से यह चीन को बहुत मज़बूत कर देगा। दूसरा, भारत का इस इलाक़े पर स्वाभाविक और ऐतिहासिक दावा रहा है। भारत कहता रहा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है। आज़ादी के बाद से जम्मू-कश्मीर का यह इलाक़ा पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है। उपेक्षित अलग-थलग और लगभग अविकसित इस क्षेत्र को पाकिस्तानी संविधान में राज्य के तौर पर मान्यता नहीं दी गयी है। हालाँकि पाकिस्तान वहाँ चुनाव कराने की कोशिश करता रहा है।
पीओके के संविधान में भी यह हिस्सा शामिल नहीं है। इमरान ख़ान सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पाँचवाँ प्रान्त बनाने के लिए बहुत कोशिश की थी, जिसका भारत ने काफ़ी विरोध किया था। स्थानीय लोग भी इसके सख़्त ख़िलाफ़ रहे हैं। इमरान अपनी कोशिशों में सफल नहीं रहे थे। बता दें सात ज़िलों गान्चे, स्कर्दू, गिलगित, दिआमेर, गिजर, अस्तोर और हुंजा वाले इस इलाक़े (गिलगित-बाल्टिस्तान) की राजधानी गिलगित में है।

भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ समय पहले कहा था कि सन् 1962, 1966, 1972 और 1973 में पाकिस्तान का जो संविधान बनाया गया, उसमें कभी गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तानी का हिस्सा नहीं रहा। हमारे संविधान में पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया गया है। संसद में इसे लेकर बाक़ायदा प्रस्ताव पास हुए हैं।

सन् 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो गिलगित-बाल्टिस्तान किसी देश का हिस्सा नहीं था। कारण यह था कि ब्रिटेन ने सन् 1935 में गिलगित एजेंसी को यह क्षेत्र 60 साल के लिए पट्टे पर दिया था। पहली अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने पट्टे को ख़त्म करके इस इलाक़े को जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया। इसके बाद 31 अक्टूबर, 1947 को राजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के हमले के बाद जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर दिया। हालाँकि गिलगित-बाल्टिस्तान का मामला तमाम घटनाओं के बावजूद अनसुलझा ही रहा।
यह आरोप रहे हैं कि पाकिस्तान सेना और एजेंसियाँ इलाक़े में जनता पर बहुत ज़ुल्म करती हैं। बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों का पलायन हुआ है, जिससे गिलगित-बाल्टिस्तान की आबादी काफ़ी कम हुई है। हाल में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आयी थी, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान में होने वाली आत्महत्याओं में नौ फ़ीसदी अकेले गिलगित-बाल्टिस्तान में होती हैं। वहाँ जनता पर ज़ुल्म की इंतिहा है और उन्हें दिनभर में महज़ दो घंटे बिजली उपलब्ध करवायी जाती है। पाकिस्तान ने कभी इस इलाक़े को अपने नेशनल ग्रिड से नहीं जोड़ा। यहाँ तक कि स्थानीय लोगों को पन बिजली और अन्य विशाल संसाधनों पर अधिकार नहीं दिया है।
हाल के वर्षों में स्थानीय लोगों और पाकिस्तानी सेना के लोगों के बीच झड़पों की दर्ज़नों रिपोर्ट आयी हैं। पाकिस्तान विरोधी आन्दोलन के नेताओं का आरोप है कि सैनिक उनके लोगों को पीटते हैं। हाल में पाकिस्तानी सैनिकों के गिलगित-बाल्टिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री राजा नासिर अली ख़ान को बुरी तरह पीटने की ख़बरें सामने आयी थीं, क्योंकि वह स्कर्दू मार्ग पर सेना के अधिग्रहण का कड़ा विरोध कर रहे थे। नासिर इमरान ख़ान के समर्थक माने जाते हैं।

रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि गिलगित-बाल्टिस्तान यदि चीन को मिल जाता है, तो उसे चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के विस्तार में बड़ी मदद मिल जाएगी। उनके मुताबिक, भले इससे पाकिस्तान को अपने आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिल जाए, इससे असली फ़ायदा चीन को होगा। हाँ, पाकिस्तान को अमेरिका की तरफ़ से इसका विरोध होने की आशंका है।

पाकिस्तान इस समय अमेरिका को नाराज़ नहीं करना चाहता; क्योंकि वह आईएमएफ से बेलआउट पैकेज की कोशिश में है। अमेरिका इसमें फच्चर (फाँस) लगा सकता है। अमेरिकी कांग्रेस की सदस्य बॉब लैंसिया ने हाल में कहा था कि यदि गिलगित-बाल्टिस्तान भारत में होता और बलूचिस्तान स्वतंत्र होता, तो अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की इतनी ख़राब हालत नहीं होती।