आमरो सरदार, जय सरदार
गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार रणनीति के तहत कांग्रेस इस बात पर हार्दिक पटेल के संगठन पाटीदार अमायत आंदोलन समिति (पीएएस) से तालमेल करते हुए उसकी इन शर्तों पर राजी हुई थी कि पटेलों के लिए आरक्षण की व्यवस्था होगी। 25 अगस्त 2015 के बाद अमदाबाद में हुई रैली में 14 युवाओं की हत्या व अन्य ज्य़ादतियों के खिलाफ जांच के लिए आयोग बिठाया जाएगा। सोचिए, चौबीस साल का नौजवान जो अभी चुनाव भी लडऩे योग्य नहीं है कैसे वह भाजपा की बाइस साल पुरानी सरकार के लिए सिरदर्द बन जाता है। राज्य की जनसंख्या के 14 फीसद पर उसका प्रभाव है। उसका प्रभाव उत्तर गुजरात में यदि बनासंकठा और साबरकंठा के आदिवासी इलाकों को छोड़ दें तो है। कच्छ, पोरबंदर और राजकोट में बहुत कम है। मध्य गुजरात में छोटा उदयपुर, दोहाद, गोधरा, अहमदाबाद, सूरत और भड़ूच के सिवा है। दक्षिण गुजरात में भी कुछ असर है।
भाजपा को सुई चुभाने जैसा दर्द देने के लिए कांग्रेस ने चालीस साल के अल्पेश ठाकोर को साथ लिया। उसे कांग्रेस पार्टी ने अक्तूबर में पार्टी में ले लिया। वह ओबीसी क्षत्रिय-ठाकोर समुदाय समूह का नेता है। प्रदेश में उत्तर और मध्य गुजरात में इस समुदाय का खासा प्रभाव रहा है। वह पाटन जिले में राधनपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ रहा है।
भाजपा को खासी तकलीफ युवा वकील जिग्नेश मेवाणी से भी रही है जो 36 साल के प्रभावी नौजवान हंै। उसने कांगे्रस के समर्थन से निर्दलीय तौर पर वडगाम से चुनाव लड़ा। उसका दलित-आदिवासियों पर खासा प्रभाव है। ऊना में चार दलित नौजवानों मार दिया गए थे। गोली कांड के बाद उसकी लोकप्रियता बढ़ी। उसका समर्थक समुदाय राज्य में 7.5 फीसद हैं।
उधर भाजपा को समर्थन देने वालों को कमी इस चुनाव में नहीं दिखी वजह साफ है कि केंद्र सरकार में उसका राज साढ़े तीन साल से है और राज्य सरकार में पार्टी लगभग बाइस साल से सत्ता में है। उसके साथ काफी पाटीदार, ओबीसी समुदाय के लोग, दलित और आदिवासी हैं। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को इन नए नेताओं से थोड़ी घबराहट हमेशा से है। इसे दूर करने के लिए प्रधानमंत्री के अलावा भाजपा का पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री और नेता पूरे प्रदेश के तमाम कार्यकर्ता और संघ परिवार के विभिन्न कार्यकर्ता सतत सक्रिय रहे। इसकी वजह यह थी कि भाजपा और कांग्रेस में राज्य विधायिका में कुछ ही ज्य़ादा फीसद का $फासला रहा है। पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 115 सीटें मिली थीं। चुनाव तब भी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुए थे।जपा के लिए खतरे का संकेत
गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले किसी तरह अपनी साख बचाने में कामयाब हो गई हो लेकिन पिछले 22 साल से राज्य में लगभग लुप्त रही कांग्रेस में फिर से जान पड़ गई। 2012 में 115 सीटें जीतने वाली भाजपा बढ़ी मुश्किल से 100 का आंकडा पार कर पाई। दूसरी और 2012 में 63 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 78 को पार कर गई। 2014 में लोकसभा की सभी 26 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए खतरे के संकेत हैं।