संजय ने आगे ख़ुलासा किया कि वह पाँच नशा करने वालों के अभिभावकों को यह नहीं बताएगा कि वह उनके लडक़ों को दवा परीक्षण के लिए दिल्ली भेज रहा है। न ही उनके और हमारे बीच पाँचों युवकों की आपूर्ति के लिए कोई काग़ज़ी कार्रवाई होगी।
रिपोर्टर : जो दवा के परीक्षण में जाएँगे, उनका कोई हमारे साथ काग़ज़ी समझौता नहीं होगा?
संजय : नहीं होगा सर! मैं उनको भेजूँगा इस तरह कि उनके अभिभावक को न पता चले कि मैंने उनको भेजा है।
संजय के मुताबिक, वह सभी पाँचों सदस्यों को इस बारे में अँधेरे में रखेगा कि उन्हें दिल्ली क्यों भेजा जा रहा है?
रिपोर्टर : उनको तुम बताओगे नहीं कि उन पर दवा का ट्रायल (परीक्षण) होगा?
संजय : नहीं, बताने से नहीं भी जा सकता है।
संजय ने ‘तहलका’ से कहा कि वह दिल्ली भेजे जा रहे पाँच नशेडिय़ों से ड्रग ट्रायल की बात छिपाएगा, और उन्हें बताएगा कि उन्हें 20,000 प्रतिमाह वेतन के साथ नौकरी मिलेगी।
रिपोर्टर : उनका पैसा बताओ कितना लोगे?
संजय : उसको सैलरी बोलकर भेजना पड़ेगा।
रिपोर्टर : कितनी सैलरी?
संजय : उसे अच्छा सैलरी भेजना पड़ेगा। जब वो नशा करता है, चार-पाँच सौ तो वो फूँक ही देता है।
रिपोर्टर : कितनी सैलरी बताओ?
संजय : 20,000 बोलकर भेजा जाएगा।
रिपोर्टर : महीने का?
पाँच लडक़ों को ड्रग ट्रायल के लिए दिल्ली भेजने के लिए संजय ने अब अपने लिए एक बड़ी रक़म की माँग की।
रिपोर्टर : और आप कितना लोगे?
संजय : इसका तो एकदम क्लियर कट बात है। इसका तो आप ख़ुद सोचकर दीजिए। इसमें बहुत बड़ा जोखिम है।
रिपोर्टर : पैसे बताओ यार!
संजय : सेटिंग करके भेजना है। …सारा मेरी गारंटी है। कैसे हैंडल करके भेजना है पाँच लडक़ों को। क्या करना है उनको। …ख़र्चा-पानी। वो नशा करता है। …वो भी उसे ख़रीद कर दे देंगे। ये ग़द्दार काम है सर! इसमें मोटा अमाउंट दीजिए।
रिपोर्टर : कितना चाहिए, बताओ?
संजय : उसको तो जो 20,000 वेतन मिल जाएगा।
रिपोर्टर : 2,000?
संजय : 2,000 तो असली काम का है।
रिपोर्टर : कितना?
संजय : लाख हम्म…?
रिपोर्टर : दो लाख (2,00,000) पाँच लडक़ों का?
संजय : मैं मैनेज करके भेजूँगा।
संजय मंडल के बाद ‘तहलका’ ने नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल के एक अन्य तस्कर रंजीत टोपो से मुलाक़ात की। हमने रंजीत से कहा कि हमें सिलीगुड़ी, कोलकाता और दिल्ली के लिए 100-150 मज़दूरों की ज़रूरत है। नक़ली ग्राहक बनकर हमने रंजीत से कहा कि हमें अपने निर्माण कार्य और दिल्ली में हुक्का बार के लिए नाबालिग़ लड़कियों और लडक़ों की ज़रूरत है। रंजीत हमारे निर्माण स्थल और हुक्का बार के लिए लड़कियों सहित 25-30 नाबालिग़ बच्चों की आपूर्ति करने के लिए सहमत हो गया।
रिपोर्टर : एक बात बताओ, इसमें बच्चे कितने करवा दोगे लेबर (मज़दूर) के?
रंजीत : बच्चे?
रिपोर्टर : जेंट्स-लेडीज 100-150 लेबर में कितने करवा दोगे बच्चे? …16 साल से कम?
रंजीत : जब बच्चे जाना शुरू करेंगे न, …तभी। मोटा-मोटा 25-30 बच्चे करा देंगे।
रिपोर्टर : 25-30 बच्चे आप करवा दोगे?
रंजीत : हाँ।
रिपोर्टर : लडक़े-लड़कियाँ, दोनों 16 साल से कम?
रंजीत : जी।
रिपोर्टर : इसमें सिलीगुड़ी के होंगे बच्चे या नेपाल के होंगे?
रंजीत : सिलीगुड़ी के होंगे। नेपाल के भी होंगे।
रिपोर्टर : नेपाल के होंगे, ठीक है करवा दो। लडक़े-लड़कियाँ, …दोनों 16 साल से कम?
रंजीत : हम्म।
रिपोर्टर : 20 कह रहे हो न? 20 बच्चे करवा दो।
रंजीत : हाँ।
रंजीत टोपो ने अब समझाया कि कैसे वह चाय बाग़ानों में दिहाड़ी मज़दूरों को क़र्ज़ देकर बँधुआ मज़दूर बनाता है।
रंजीत : मान लीजिए किसी मज़दूर को पैसे की ज़रूरत लगी। वो अरेंज (व्यवस्था) नहीं कर पा रहे हैं। ठीक है दो-तीन महीने बाद अरेंज करेंगे। उसको 20,000 रुपये दे दिया। पाँच परसेंट (फ़ीसदी) के हिसाब से, चला ले घर को मेरे पैसे से…। उसके तीन महीने बाद या चार महीने बाद वो शादी वग़ैरह में चलाकर लोन दे दे।
रिपोर्टर : तब तक वो आपका…?
रंजीत : ब्याज (इंटरेस्ट) देगा।
रिपोर्टर : तब तक वो आपके खेत में काम करेगा। चाय बा$गान में काम करेगा। उससे पहले वो जा नहीं सकता है। ये होता है न तरीक़ा?
रंजीत : हाँ।
रंजीत टोपो ने ‘तहलका’ के सामने ख़ुलासा किया कि कैसे उसने बिल्डर से अधिक पैसा लिया और बेंगलूरु में मज़दूरों को कम भुगतान किया, जहाँ उसने 2012-13 में निर्माण स्थल के लिए श्रमिकों की आपूर्ति की थी।
रिपोर्टर : बेंगलूरु में कितना लिया था आपने?
रंजीत : सर! वो तो कमीशन था। वो लोगों का जितना पेमेंट होता था न सर! 400 का अरेंज किये थे वहाँ। 500 का अरेंज किये थे वहाँ। मान लीजिये 300 का हम देते थे, 200 का हम लेते थे।
रिपोर्टर : जैसे उनको 500 मिलता है।
रंजीत : हम यहाँ से बोलकर गये थे कि वहाँ दिहाड़ी 300 रुपये है। लेकिन हम वहाँ से 500 उठाते थे।
रिपोर्टर : अच्छा, आप मज़दूर को बोलकर लेकर गये थे कि आपको 500 रुपये मिलेंगे। मिलता था 300 रुपये?
रंजीत : नहीं, बोलकर नहीं गये थे हम। यहाँ बोल दिये कि वहाँ आपको 300 रुपये दिलाएँगे। उस समय दिहाड़ी (डेली वेजेज) भी कम देते थे। 200 रुपये था।
रिपोर्टर : लेकिन वो आपको 500 रुपये देता था न?
रंजीत : जी।
रिपोर्टर : 300 आप लेबर को देते थे न! 200 रुपये अपने पास रखते थे ?
रंजीत : हाँ।
रंजीत हमें नेपाल से मज़दूर देने को तैयार हो गया। 50-50 के अनुपात में। आधे नेपाल से और आधे सिलीगुड़ी से।
रिपोर्टर : वहाँ (नेपाल) के कितने मज़दूर दिलवा दोगे?
रंजीत : नेपाल का मान लीजिए ज़्यादा तो इधर का ही होगा। 50-50 कर लीजिए।
रिपोर्टर : 50-50; सिलीगुड़ी के 50 मज़दूर होंगे? 50 नेपाल के मज़दूर होंगे? चलिए ठीक है।
रंजीत : हम्म।
रंजीत ने अब हमें बताया कि वह हमसे लेबर सप्लाई (मज़दूर आपूर्ति) के लिए प्रति व्यक्ति 2,000 रुपये वसूल करेगा।
रंजीत : जैसे आज मान लीजिए 10 आदमी भेज दिये। कमीशन पा गये।
रिपोर्टर : मतलब आप कह रहे हैं, 10 को भेज दिया। 10 का कमीशन आप ले लोगे? कितना होगा?
रंजीत : जैसे पकड़ लीजिए एक आदमी का 2,000 रुपये।
रिपोर्टर : एक आदमी का 2,000 रुपये, कमीशन आपका लेबर (देने) का?
रंजीत : हाँ।
अब हम तीसरे तस्कर गोपाल से पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में मिले। गोपाल टैक्सी भी चलाता है। एक ग्राहक के रूप में हमने गोपाल से दिल्ली-एनसीआर में हमारे हुक्का बार के लिए 12, 13, 14, 15 साल आयु वर्ग के नाबालिग़ बच्चों की आपूर्ति करने की माँग की। गोपाल हमारी माँग को पूरा करने के लिए तैयार हो गया।
रिपोर्टर : आपने काम सुन ही लिया हमारा। एक तो हुक्का बार है दिल्ली-एनसीआर में। हुक्का होता है न, हुक्का जानते होंगे? तंबाकू वग़ैरह भरनी है बच्चों ने। गेस्ट को सप्लाई करना है।
गोपाल : अलग-अलग टाइप का लडक़ा लोग चाहिए? पहाड़ी नेपाल का मिलेगा।
रिपोर्टर : नेपाली मिल जाएगा न?
गोपाल : हाँ-हाँ; बार में काम करने के लिए मिल जाएगा।
रिपोर्टर : बार-वार में काम करने के लिए?
गोपाल : बार?
रिपोर्टर : मतलब हुक्का बार में काम करने के लिए बच्चे
मिल जाएँगे?
गोपाल : मिल जाएँगे।
गोपाल ने कहा कि वह हमें लेबर वर्क के लिए 50-60 बच्चों की आपूर्ति कर सकता है।
रिपोर्टर : टोटल कितने बच्चे सप्लाई कर सकते हैं आप?
गोपाल : 50-60 पकड़ लीजिए।
रिपोर्टर : 50-60 पक्का गारंटी दे रहे हो आप?
गोपाल : हाँ।
रिपोर्टर : एक बच्चे का वो ही, 500 रुपये दिन का।
गोपाल ने ख़ुलासा किया कि वह हमें केवल 12, 13, 14 और 15 वर्ष की आयु के नाबालिग़ बच्चे देगा।
रिपोर्टर : लेकिन हमें वही चाहिए, छोटे बच्चे।
गोपाल : हाँ।
रिपोर्टर : 12, 13, 14, 15 साल के?
गोपाल : मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : हैं?
गोपाल : मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : पक्का, फाइनल समझें फिर हम?
गोपाल : हाँ।
‘तहलका’ द्वारा उजागर किये गये उपरोक्त तीन चरित्र संकेत करते हैं कि भारत में मानव तस्करी एक गम्भीर समस्या है। वाणिज्यिक और यौन शोषण के उद्देश्य से पूरे भारत में लोगों का बेशर्मी और अवैध रूप से अवैध व्यापार किया जाता है और उन्हें जबरन / बँधुआ मज़दूरी में फँसाया जाता है। भारत में विभिन्न कारणों से पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की तस्करी की जाती है। व्यावसायिक या यौन शोषण के उद्देश्य से देश के भीतर महिलाओं और लड़कियों की तस्करी की जाती है और कभी-कभी उन्हें जबरन शादी में शामिल किया जाता है। श्रम के उद्देश्य से पुरुषों और लडक़ों की तस्करी की जाती है। बच्चों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को कारख़ाने के श्रमिकों, घरेलू नौकरों, भिखारियों और कृषि श्रमिकों के रूप में जबरन इस्तेमाल किया जाता है, और यहाँ तक कि कुछ आतंकवादी और विद्रोही गुट उन्हें सशस्त्र लड़ाकों के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं।
नेपाली बच्चों को भी विभिन्न क्षेत्रों में जबरन मज़दूरी के लिए भारत लाया जाता है। भारतीय महिलाओं को वाणिज्यिक और यौन शोषण के लिए मध्य पूर्व में तस्करी कर ले जाया जाता है। भारतीय निवासी जो हर साल स्वेच्छा से मध्य पूर्व और यूरोप में घरेलू नौकरों के रूप में काम करने के लिए और कम कुशल नौकरियों के लिए प्रवास करते हैं, कभी-कभी तस्करी के जाल में फँस जाते हैं। ऐसे मामलों में श्रमिकों को धोखाधड़ी के माध्यम से भर्ती किया गया हो सकता है, जो उन्हें सीधे ऋण बंधन (दास बनने) सहित मजबूर श्रम की स्थिति में ले जाता है।
आज के समय में उपयोग और शिक्षा दोनों में प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण तस्करी ऑनलाइन हो रही है। पहले के समय में यह इंसानों के माध्यम से पैसे के लिए या फिर डर के कारण होता था। इसके साथ ही लोगों ने बँधुआ मज़दूर या उच्च प्रमुखों के दास होने के लिए सहमति व्यक्त की। हमारी वर्तमान पीढ़ी में यह उन लोगों की सहमति के बिना होता है, जिन्हें पीडि़त माना जाता है।