बदलाव लाने का ककहरा सीख लिया राहुल ने

Rahul gandhi

मेरे कांग्रेसी भाइयों और बहनों। आपने जो कुछ किया उस पर मुझे गर्व है। उनकी तुलना में आप कहीं अलग दिखे जिनसे आप लड़े। आपने अपने गौरव के अनुरूप गुस्से का मुकाबला किया। आपने हर किसी को यह बता दिया कि कांग्रेस की आज भी सबसे मजबूत ताकत है इसकी ताकत शालीनता और साहस है।Ó
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के नम्रता भरे ये शब्द हैं। इन्हीं के चलते राहुल गांधी आज के संतुलित, नियंत्रित और अच्छे रणनीतिकार साबित हुए। ऐसा जो पहले कभी देखा न गया। राजनीतिक तौर पर ‘पप्पूÓ कहलाने वाला, अब परिपक्व नेता बन कर उभरा दिख रहा है।
देश में 18 दिसंबर को गुजरात और हिमाचल की विधानसभा चुनावों के नतीजे आ रहे थे। गुजरात में नतीजे आ रहे थे और कांगे्रस गुजरात में नया सवेरा लाने की कोशिश में थी। तभी यह आभास हुआ कि कुछ बदलाव तो हो रहा है। जिस सुबह के आने की बात थी वह गलत साबित होने लगी। वह सुबह राहुल गांधी के ताकतवर चुनाव प्रचार से बनी थी। आखिर में ऐसा लगा, मानो गांधी खानदान के इस सितारे में अपनी जिम्मेदारी न केवल पार्टी बल्कि उसमें अपनी विरासत ही नहीं, बल्कि उन लोगों के प्रति भी समझदारी है जो उन्हें संसद में ले गए। उसने ज़मीन को टटोलते हुए कहा – ‘गुजरात मॉडेल उतना भी लोकतांत्रिक नहीं है जितना दावा किया जा रहा था। राज्य में कहीं ज्य़ादा असामानता है।Ó
चुनाव अब खत्म हो गए हैं। कांग्रेस की पराजय ज़रूर हुई। पुरानी हताशा अब फिर लौटी आई है। लेकिन क्या राहुल आराम करेंगे या फिर नई शुरूआत करेंगे। क्योंकि यही वह क्षण है जिसे उन्होंने खुद के लिए और पार्टी के लिए चुना था वह भी 2019 के आम चुनाव के ऐन पहले।
अब मौका है कि राहुल यह मानें कि उन पर ही अब सारा दारोमदार है। पार्टी के कार्यकर्ताओं में आई चेतना को लगातार उन्हें ही बनाए रखना है। क्योंकि भाजपा के हाथों लगातार पराजय झेलते हुए अब वे हताश हो चुके हैं। राहुल आज ऐसे आधार हैं जो ऐसे कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर सकते हैं जो मजबूत ही नहीं बल्कि रचनात्मक भी हों। उनके कार्यकर्ता अब आक्रामक ही नहीं, बल्कि अपनी आग को खुद ही संजोए रखते हुए सक्रिय दिखेंगे मैदान में।
गुजरात चुनाव के दौरान यह बात भी साफ हुई कि राहुल गांधी अब बहन प्रियंका गांधी वाद्रा की छाया से भी कोसों दूर हैं। एक जमाना था जब उसकी सहज उन्मुक्त हंसी और खूबसूरती की झलक पाने के लिए हज़ारों की भीड़ मैदानों में जुट आती थी।
लेकिन इस बार राहुल के पास ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें रोकता-टोकता। सिवा उन अनुभवी रणनीतिककार अशोक गहलोत के। जो तभी टोकते हैं। जब ज़रूरत पड़ती है। राहुल ने उनके अनुभवों का लाभ भी लिया। गुजरात में नवसर्जन की शुरूआत की।
चुनाव प्रचार के दौरान लोगों ने देखा कि राहुल शांत हैं और सामने से आ रही हर चुनौती का सौम्य, व्यवहार कुशल तौर पर जवाब देने के लिए तैयार हैं। उनके जो प्रयास दिखे उससे उनका व्यक्तित्व काफी अलग और कुलीन दिखा। चाहे वह ट्विटर हो या फेसबुक पर यह बेहद कम जटिल था। उनसे हर कोई संवाद कर सकता है।
अब 2017 बीत चुका है और 2018 में आठ राज्यों में चुनाव की जिम्मेदारियां हैं। जिन बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। उनमें कर्णाटक, राजस्थान और मध्यप्रदेश हंै। कांग्रेस को अब 2017 में हासिल आत्मविश्वास को बनाए रखते हुए जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ानी है। राहुल को अब कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से काम लेना आ गया है। उन्हें अब लगातार सक्रिय रहना है।