हाल ही में केंद्र सरकार के संज्ञान में आयीं 321 फ़र्ज़ी निधि कम्पनियों में से सबसे अधिक 85 कम्पनियाँ अकेले पटना ज़िले में स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त समस्तीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर में अधिक कम्पनियाँ स्थापित हैं। बिहार में खुली इन फ़र्ज़ी निधि कम्पनियों का मामला केवल केंद्र सरकार के ही संज्ञान में नहीं आया है, बल्कि पटना उच्च न्यायालय ने भी इसे संज्ञान में लिया है। पटना उच्च न्यायालय इस मामले में भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मामले के सचिव से जवाब तलब भी कर चुका है।
ग़ौरतलब है कि इन दिनों पूरी दुनिया की अर्थ-व्यवस्था डाँवाडोल है। मंदी की आशंका पूरी दुनिया को डराये हुए हैं। इसी आशंका से बेरोज़गारी का $खतरा और मँडराने लगा है। कोरोना महामारी के दौरान यह माना जा रहा था कि जल्द ही बाज़ार खुलेंगे और बेरोज़गार हुए लोगों को बेरोज़गार मिल सकेगा। लेकिन हाल ही में ट्विटर, फेसबुक और कई बड़ी कम्पनियों द्वारा अपने कर्मचारियों की गयी छँटनी से यह साफ़ हो गया है कि बेरोज़गार बढऩे की जगह घट रहे हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कोरोना महामारी के समय से अब तक नये बेरोज़गार सृजित नहीं हुए हैं। लेकिन इनकी रफ़्तार काफ़ी धीमी है, जबकि बेरोज़गारी बढऩे के आँकड़े तेज़ी से बढ़ रहे हैं। मौज़ूदा समय में विकट वैश्विक बेरोज़गारी दर है।
संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में पूरी दुनिया में लगभग 47 करोड़ लोग या तो बेरोज़गार हैं या फिर उनके पास ज़रूरतें पूरी करने भर की आय नहीं है। आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले एक दशक से बेरोज़गारी दर स्थिर है; लेकिन बेरोज़गारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सुस्त होती अर्थ-व्यवस्था के चलते बेरोज़गारों की संख्या बढ़ती जा रही है। ध्यान रहे साल 2019 में दुनिया भर में बेरोज़गारों की संख्या लगभग 18.80 करोड़ थी।
बेरोज़गारों से ठगी होने के मामले ज़्यादा भी इसलिए ही हैं, क्योंकि कोई भी बेरोज़गार युवा किसी भी हालत में एक ऐसी नौकरी चाहता है, जो उसका और उसके परिवार का भरण-पोषण करने के अतिरिक्त उसके जीवन स्तर को बेहतर बना सके। लेकिन बेरोज़गार दिलाने का झाँसा देकर कुछ ठग ऐसे युवाओं से ठगी कर लेते हैं, जिसके चलते कई युवा तो आत्महत्या तक कर लेते हैं। ठगी का शिकार होने वालों में ग्रामीण क्षेत्रों के युवा और युवतियों की संख्या काफ़ी अधिक होती है। कई युवा तो नौकरी की आस में अपने घर की चल-अचल सम्पत्ति तक बेच देते हैं। किसी भी प्रकार ऐसे ठगों पर रोक लगनी ही चाहिए।
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)