बंजर ज़मीन को बना दिया उपजाऊ

एक सरकारी योजना ने हिमाचल में 4,669 हेक्टेयर बंजर हो चुकी ज़मीन को कृषि योग्य बना दिया

पहाड़ी राज्य हिमाचल में जंगली जानवरों, ख़ासकर बंदरों के उत्पात के कारण बंजर हो चुकी 4669 हेक्टेयर ज़मीन में फिर खेती लहराने लगी है। इसके पीछे एक योजना है, जिसे प्रदेश सरकार ने शुरू किया है। करोड़ों रुपये ख़र्च करके इस ज़मीन को खेती योग्य बनाया जा सका है। खेत संरक्षण योजना से हज़ारों किसानों को लाभ हुआ है; क्योंकि उन्होंने इस ज़मीन पर फ़सलें उगानी शुरू कर दी हैं। हिमाचल के बड़े इलाक़े में बंदर और आवारा पशु फ़सलों के दशकों से नुक़सान पहुँचा रहे थे। इसका असर यह हुआ कि इन इलाक़ों में लोगों ने वहाँ खेती करनी ही बन्द कर दी। समय के साथ यह ज़मीन बंजर हो गयी।

सरकार ने इस ज़मीन को दोबारा खेती योग्य बनाने के लिए 175 करोड़ रुपये की मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना पर काम किया और इसे लागू किया। इससे पहले कृषि विशेषज्ञों को इस काम पर लगाया गया कि कैसे इस ज़मीन को फिर से खेती योग्य बनाया जा सकता है। प्रदेश के क़रीब सभी ज़िले इस ज़मीन के तहत आते हैं। ख़ासकर वो, जहाँ बंदरों और जंगली जानवरों का बड़ा प्रभाव है। कुछ डर और कुछ नुक़सान के कारण किसानों ने वहाँ फ़सलें बोनी बन्द कर दीं, जिसके बाद यह ज़मीन कृषि के योग्य नहीं रही। अब योजना पर काम होने के बाद फ़सलें लहलहाने लगी हैं।

जानकारों के मुताबिक, हिमाचल की जलवायु नक़दी फ़सलों के उत्पादन के लिए अति उत्तम है। इसके अलावा यहाँ पारम्परिक खेती से भी लाखों परिवार जुड़े हुए हैं। कई क्षेत्रों में किसानों की कड़ी मेहनत से उगायी गयी फ़सलों को बेसहारा और जंगली जानवरों से काफ़ी नुक़सान पहुँचता है। इससे बचाव के लिए प्रदेश सरकार ने खेत संरक्षण योजना आरम्भ की। योजना के अंतर्गत कृषकों को सौर ऊर्जा चालित बाड़ लगाने के लिए अनुदान दिया जा रहा है। व्यक्तिगत स्तर पर सौर ऊर्जा बाड़ लगाने के लिए 80 फ़ीसदी तथा समूह आधारित बाड़बंदी के लिए 85 फ़ीसदी अनुदान का प्रावधान इसमें किया गया है। कुल्लू ज़िले के एक किसान हरी सिंह ठाकुर ने कहा कि बाड़ को सौर ऊर्जा से संचारित किया जा रहा है। बाड़ में बिजली प्रवाह से बेसहारा पशुओं, जंगली जानवरों और बंदरों को दूर रखने में मदद मिल रही है। प्रदेश सरकार ने किसानों की माँग तथा सुझावों को देखते हुए काँटेदार तार अथवा चेनलिंक बाड़ लगाने के लिए 50 फ़ीसदी उपदान और कम्पोजिट बाड़ लगाने के लिए 70 फ़ीसदी उपदान का भी प्रावधान किया है। प्रदेश के कृषि मंत्री वीरेंद्र कँवर ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा कि अच्छी बात यह है कि प्रदेश में किसानों का इस योजना के प्रति उत्साह एयर भरोसा लगातार बढ़ा है। हमने देखा है कि लाभार्थियों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ी है। बेसहारा और जंगली जानवरों, ख़ासकर बंदरों के उत्पात से खेती-किसानी से किनारा कर रहे कृषक फिर से खेतों की ओर मुड़े हैं और यह योजना हिमाचल में सुरक्षित खेती की नयी इबारत लिख रही है।

उधर किसानों का कहना है कि जंगली जानवरों विशेषतौर पर बंदरों के उत्पात से फ़सलें ख़राब होने के कारण उनका खेती के प्रति उत्साह कम हो गया था; लेकिन मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना वरदान बनकर आयी है। हमीरपुर ज़िले के पटलांदर के किसान भूपिंदर सिंह ने कहा कि बंदरों के उत्पात से उनकी फ़सलों का बचाव सम्भव हुआ है। इसमें सोलर फैंसिंग के साथ-साथ काँटेदार बाड़बंदी का प्रावधान जुडऩे से अन्य जंगली व बेसहारा जानवरों से भी फ़सल सुरक्षित हुई है।

सरकार के मुताबिक, योजना के तहत अभी तक क़रीब 175.38 करोड़ रुपये व्यय किये जा चुके हैं। कृषि मंत्री वीरेंद्र कँवर बताते हैं कि इस योजना के लागू होने के उपरांत प्रदेश में क़रीब 4,669.20 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि की रक्षा की गयी है, जो बेसहारा पशुओं, जंगली जानवरों और बंदरों से ख़तरे के कारण बंजर पड़ी थी। प्रदेश के क़रीब 5,535 किसान इस योजना का लाभ उठा चुके हैं।

योजना के मुताबिक, मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना का लाभ उठाने के लिए किसान व्यक्तिगत तौर पर अथवा किसान समूह के रूप में नज़दीक के कृषि प्रसार अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी अथवा विषयवाद विशेषज्ञ (एसएमएस) के माध्यम से कृषि उप निदेशक के समक्ष आवेदन कर सकते हैं। विभाग के वृत्त, विकास खण्ड और ज़िला स्तरीय कार्यालयों में आवेदन फॉर्म उपलब्ध रहते हैं। आवेदन के साथ उन्हें अपनी भूमि से सम्बन्धित राजस्व दस्तावेज़ संलग्न करने होंगे।

वैसे भी यह एक तथ्य है कि प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कृषि विभाग के एक अनुमान के अनुसार, प्रदेश के क़रीब 90 फ़ीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और 70 फ़ीसदी लोग सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर हैं। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि व इससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान क़रीब 13.62 फ़ीसदी है। प्रदेश में क़रीब 9.97 लाख किसान परिवार हैं और 9.44 लाख हैक्टेयर भूमि पर खेती होती है। यहाँ औसतन जोत का आकार क़रीब 0.95 हैक्टेयर है।

प्रदेश में 88.86 फ़ीसदी किसान सीमान्त और लघु वर्ग के हैं, जिनके पास बोई जाने वाली भूमि का क़रीब 55.93 फ़ीसदी भाग है। क़रीब

10.84 फ़ीसदी किसान मध्यम श्रेणी के हैं और 0.30 फ़ीसदी किसान ही बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार की खेत संरक्षण योजना सीमान्त, लघु और मध्यम वर्ग के किसानों के लिए निश्चित ही वरदान बनकर आयी है।

एक बीघा योजना

हिमाचल सरकार ने इसके आलावा महिला सशक्तिकरण को अधिमान देने के उद्देश्य से एक बीघा योजना शुरू भी है। क़रीब डेढ़ साल पहले शुरू की गयी इस योजना का मक़सद ग्रामीण महिलाओं को किचन गार्डनिंग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ किचन गार्डन के विकास से पोषणयुक्त सब्ज़ियों और फलों का उत्पादन कर खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के साथ उत्पादित उत्पादों को खुले बाज़ार में बेचकर आर्थिक लाभ अर्जित कर रही हैं। प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं की आर्थिकी को सुदृढ़ करने के साथ-साथ स्वयंसहायता समूह की महिलाओं को खाद्य सुरक्षा और आजीविका के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से प्रदेश में मुख्यमंत्री एक बीघा योजना क्रियान्वित की जा रही है।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और स्वयंसहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के साथ-साथ उन्हें बैकयार्ड किचन गार्डनिंग के लिए प्रशिक्षित करना है। यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और मनरेगा के बीच एक अभिसरण योजना है और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत बने स्वयं सहायता समूह की कोई भी महिला सदस्य इस योजना का लाभ उठा सकती है। इस योजना के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूह एक लाख रुपये का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना का लाभ उठाने के लिए महिला के पास मनरेगा जॉब कार्ड होना आवश्यक है। प्रदेश के कृषि मंत्री वीरेंद्र कँवर के मुताबिक, मनरेगा और स्वच्छ भारत मिशन का अनुसरण कर ग्रामीणों को किचन गार्डनिंग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ किचन गार्डन के विकास से पोषणयुक्त सब्ज़ियों और फलों का उत्पादन कर खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के साथ उत्पादित उत्पादों को खुले बाज़ार में बेचकर आर्थिक लाभ अर्जित कर रही है।

एक बीघा योजना के तहत प्रदेश में भूमि सुधार, नर्सरी उत्पादन, फलदार पौधरोपण, केंचुआ खाद गड्ढा निर्माण, अजोला पिट निर्माण, सिंचाई और जल संचयन संरचना निर्माण और गौशाला निर्माण जैसे कार्य किये जा रहे हैं। प्रदेश में वर्ष 2020-21 में इस योजना के अन्तर्गत 11,254 कार्य स्वीकृत किये गये, जिनमें से 1,690 कार्य पूर्ण कर लिये गये हैं। योजना के अन्तर्गत प्रदेश में अब तक विभिन्न कार्यों पर क़रीब 17.91 करोड़ रुपये ख़र्च किये जा चुके हैं।

साल 2021-22 के दौरान प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में इस योजना के अन्तर्गत 2281 कार्य स्वीकृति किये गये, जिनमें से 1045 का कार्य आरम्भ किये जा चुका है और चालू वित्त वर्ष में अब तक 852 कार्य पूर्ण कर लिये गये हैं। प्रदेश में इस वर्ष अब तक 4.25 करोड़ रुपये ख़र्च किये जा चुके हैं। योजना प्रदेश में महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने का मार्ग प्रशस्त कर रही है। इस योजना का लाभ उठाकर महिलाएँ आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर हो रही हैं। ज़िला सिरमौर के राजगढ़ खण्ड के शिरगुल महाराज स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने इस योजना का लाभ उठाकर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ किया है। यह योजना उनके लिए वरदान सिद्ध हुई है। अदरक के औषधीय गुणों को देखते हुए यह स्वयं सहायता समूह अदरक की खेती करना चाहता था; परन्तु धन की कमी उनके इस कार्य में बाधा बन रही थी। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को जब मुख्यमंत्री एक बीघा योजना के बारे में जानकारी मिली, तो उन्होंने राजगढ़ विकास खण्ड में जाकर इस योजना के लिए आवेदन किया। इस योजना से मिली आर्थिक सहायता का उपयोग कर इस समूह की महिलाओं ने बंजर भूमि उपजाऊ बनाकर अदरक की खेती की शुरुआत की।

इस स्वयं सहायता समूह की मेहनत रंग लायी और उनके सात सदस्यों के इस समूह ने हिम ईरा साप्ताहिक बाज़ार में 50,000 रुपये की अदरक की बिक्री की। अपने पहले प्रयास पर मिली सफलता से उत्साहित होकर अब इस स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने मूली की खेती की है और हिम ईरा साप्ताहिक बाज़ार में इसे बेचेंगी। इस स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने महज़ सात-आठ महीनों के भीतर जैविक खेती को अपनाकर इन उत्पादों को बाज़ार में उपलब्ध करवाया है। यह स्वयं सहायता समूह प्रदेश की अन्य स्वयं सहायता समूहों को प्रगति का मार्ग दिखा रहा है। कृषि मंत्री वीरेंद्र कँवर ने कहा कि प्रदेश में शिरगुल महाराज स्वयं सहायता समूह का सफल उदाहरण इस बात का प्रतीक है कि सरकार द्वारा कार्यान्वित की जा रही मुख्यमंत्री एक बीघा योजना किस प्रकार महिलाओं के जीवन में ख़ुशहाली ला रही है। यह छोटी-सी शुरुआत लम्बी विकास यात्रा का आगाज़ है।