फल राज्य बन रहा हिमाचल

उधर पराला की फल प्रसंस्करण इकाई में उत्पादन इस साल से शुरू हो रहा है। माली वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 91 करोड़ रुपये की लागत से पराला में बन रहे फल प्रसंस्करण इकाई में उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा और परवाणु और जड़ोल में स्थित फल प्रसंस्करण इकाई का 17 करोड़ रुपये की लागत से उन्नयन किया जाएगा। इसके साथ ही पांवटा साहिब, कांगनी और शाट में बन रहे मार्केट याड्र्स (बाज़ार अहाते) सितंबर, 2022 तक किसानों व बाग़वानों को समर्पित कर दिये जाएँगे। परवाणु में बन रहे मार्केट यार्ड को भी मार्च, 2023 से पहले पूरा कर लिया जाएगा। इन पर 35 करोड़ रुपये ख़र्च किये जाएँगे।

फल प्रसंस्करण इकाइयों के अलावा सीए स्टोर स्थापित किये जा रहे हैं। क़रीब 58 करोड़ रुपये की लागत से चच्योट, रिकांगपिओ, ज्ञाबोंग और चंबा में सीए स्टोर्स का निर्माण इसी वित्त वर्ष 2022-23 में शुरू कर दिया जाएगा। इसके साथ ही रोहड़ू, गुम्मा, जड़ोल टिक्कर, टूटूपानी और भुंतर में बन रहे सीए स्टोर और ग्रेडिंग और पैकेजिंग हाउस में का इसी वर्ष लोकार्पण कर दिया जाएगा। इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 75 करोड़ रुपये का व्यय किया जाएगा।

सरकार के मुताबिक, उच्च घनत्व क़िस्मों का पौधरोपण और इम्युनिटी बूस्टर वाली फ़सलों की शुरुआत की जाएगी। जामुन और मेवों की खेती के लिए क्लस्टर बनाए जाएँगे। शिटाके और ढींगरी आदि मशरूम की क़िस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए और मशरूम प्रसंस्करण और डिब्बाबंदी के लिए तीन करोड़ रुपये व्यय किये जाएँगे।

हिमाचल में सेब अभी भी आर्थिकी का सबसे बड़ा ज़रिया है। सेब की तीन क़िस्मों रेड, रॉयल और गोल्डन डिलिशियस से हुई शुरुआत के 100 साल बाद हिमाचल में 90 क़िस्मों की सेब प्रजातियों की खेती प्रदेश में हो रही है। प्रदेश में 1,10,679 हेक्टेयर क्षेत्र में 7.77 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा हो रहा है। शिमला, कुल्लू, मंडी, चम्बा, किन्नौर, लाहुल स्पीति और सिरमौर ज़िलों में सेब पैदा किया जाता रहा है। हालाँकि इसका विस्तार अब गर्म इलाक़ों की तरफ़ किया जा रहा है। वैसे हिमाचल के कुल सेब उत्पादन का 80 फ़ीसदी शिमला ज़िले में होता है। प्रदेश में सालाना तीन से चार करोड़ पेटी सेब का उत्पादन है।

क्या है एचपी शिवा परियोजना?

मुख्य परियोजना के लिए प्रदेश के सात ज़िलों- सिरमौर, सोलन, ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी के 28 विकास खण्डों में 10,000 हेक्टेयर भूमि की पहचान की गयी है, जिससे 25,000 से अधिक किसान परिवार लाभान्वित होंगे। यह आत्मनिर्भर हिमाचल की संकल्पना को साकार करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम है। परियोजना के तहत बाग़वानी क्रान्ति लाने के लिए उच्च घनत्व वाली खेती को बढ़ावा दिया जाएगा और वैज्ञानिक प्रणाली से बग़ीचे का संरक्षण और देख-रेख की जाएगी। इसके अतिरिक्त फल-फ़सलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए कम्पोजिट सौर बाड़बंदी का प्रावधान किया गया है। उपलब्ध जल संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए टपक या ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित करने और क्लस्टरों के प्रबन्धन के लिए कृषि उपकरण और कृषि लागत पर भी सब्सिडी का प्रावधान है। परियोजना के तहत बाग़वानी में क्रान्ति लाने के लिए 100 सिंचाई योजनाओं का विकास किया जाएगा, जिनमें 60 फीसदी सिंचाई परियोजनाओं का मरम्मत कार्य और 40 $फीसदी नयी परियोजनाएँ शामिल हैं, ताकि वर्षा के पानी पर निर्भरता न रहे।

“प्रदेश में बाग़वानी कृषि क्षेत्र में विकास के प्रमुख कारकों में से एक बन रहा है। यह क्षेत्र प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान कर रहा है। बाग़वानी की फ़सलों, विशेष रूप से फल वाली फ़सलों पर मौसम में बदलाव का अपेक्षाकृत कम प्रभाव होता है। इस कारण प्रदेश के अधिकाधिक लोग बाग़वानी अपना रहे हैं। प्रदेश सरकार बाग़वानी को बढ़ावा देने के प्रयास से राज्य की कृषि अर्थ-व्यवस्था को एक नयी गति प्रदान कर रही है। हमें उम्मीद है कि हिमाचल फल राज्य के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने की तरफ़ बढ़ रहा है।’’

महेंद्र सिंह

बाग़वानी मंत्री, हिमाचल प्रदेश