याद करें, तो पीएफआई का गठन 2006 में हुआ था। जाँच एजेंसियों की छापेमारी के बाद मिले दस्तावेज़ बताते हैं कि पीएफआई देश के 23 राज्यों में सक्रिय है। देखें तो, पीएफआई का विस्तार ही सिमी पर प्रतिबन्ध लगने के बाद हुआ। कर्नाटक और केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में संगठन की ख़ासी पकड़ उजागर हुई है। इन छापों के बाद प्रदर्शन भी देखने को मिले, जिससे ज़ाहिर होता है कि पीएफआई किस स्तर पर सक्रिय था। पीएफआई ने अल्पसंख्यकों के अलावा दबे-कुचलों को सशक्त बनाने के नाम पर आन्दोलन शुरू किया और फिर अपने असली काम में जुट गया, जिसमें देश के ख़िलाफ़ लोगों को तैयार करना और आतंकी फंडिंग शामिल थी।
कैसे कसा शिकंजा?
पीएफआई पर शिकंजा कसने की शुरुआत तब हुई, जब बिहार के फुलवारी शरीफ़ में इसका मोड्यूल पकड़ा गया। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने पीएफआई के देशव्यापी नेटवर्क को ध्वस्त करने को लेकर एक्शन प्लान बनाने और टेरर फंडिंग पर शिकंजा कसने के लिए एजेंसियों को निर्देश दिये थे। इसी दौरान यह भी जानकारी सामने आयी थी कि पीएफआई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले की योजना बना रहा है। फुलवारी शरीफ़ में जो दस्तावेज़ तैयार किये गये उनमें ‘गज़वा-ए-हिन्द का लक्ष्य-2047’ रखा गया था। यह माना जाता है कि यह लक्ष्य भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए था।
पीएफआई के दस्तावेज़ों से एजेंसियाँ को तुर्की, पाकिस्तान और मुस्लिम देशों से मदद (टेरर फंडिंग) के सुबूत भी मिले हैं। ज़ाहिर है पीएफआई देश के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर तबाही की तैयारी कर रहा था। फुलवारी शरीफ़ की घटना के बाद पीएफआई पर नकेल कसने के लिए केंद्र और राज्य एजेंसियों को जोड़ा गया और एनआईए को नोडल एजेंसी का ज़िम्मा मिला।
एनआईए ने तेज़ी से काम करते हुए राज्यों के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड और स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुखों के साथ बैठकें करके पीएफआई की गतिविधियों से जुड़ी तमाम जानकारी साझा करने को कहा। इसके बाद जो जानकारियाँ सामने आयीं, वो उसके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई के लिए पुख़्ता आधार बनीं। ईडी को भी जाँच में शामिल किया गया, क्योंकि मामला अवैध रूप से विदेशी धन आने का भी था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, रिसर्च अन्य एनालिसिस विंग (रॉ), आईबी, एनआईए के बड़े अधिकारी उन बैठकों में जुटे, जिन्हें गृह मंत्री शाह ने बुलाया था। पूछताछ में ज़ाहिर हुआ कि पीएफआई हत्याओं और जबरन वसूली के मामलों में शामिल है। अगस्त के आख़िर में एक बैठक के बाद ईडी को पीएफआई की फंडिंग, विदेश से मदद और अवैध लेन-देन से जुड़ी शुरुआती रिपोर्ट तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गयी। राज्य पुलिस को योजना में शामिल किया गया।
इसके बाद छापों की घड़ी आयी, जिसे गुप्त नाम ऑपरेशन ऑक्टोपस दिया गया। इसके बाद पूरी तैयारी के साथ छापे मारे गये और संदिग्ध लोगों को गिरफ़्तार कर कड़ी पूछताछ की गयी। पहली देशव्यापी छापेमारी 22 सितंबर को एक साथ 11 राज्यों में हुई। ईडी, एनआईए और राज्यों की पुलिस ने 11 राज्यों से पीएफआई से जुड़े 106 लोगों को अलग-अलग मामलों में गिरफ़्तार किया। एनआईए ने पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओएमएस सलाम और दिल्ली अध्यक्ष परवेज़ अहमद को गिरफ़्तार किया।
कुछ लोगों को एनआईए के दिल्ली हेडक्वार्टर लाया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने देश भर में पीएफआई के ख़िलाफ़ जारी रेड को लेकर एनएसए, गृह सचिव और डीजी एनआईए के साथ बैठक की। गिरफ़्तार पीएफआई केडर और कट्टरपंथी नेताओं से पूछताछ में जो ख़ुलासे हुए, वो एजेंसियों के लिए ख़ासे चौंकाने वाले थे। इसमें यह भी ज़ाहिर हुआ कि पीएफआई ने देश भर में अपना ख़ुफ़िया तंत्र विकसित कर लिया था। उसकी इंटेलिजेंस विंग हर ज़िले में काम कर रही थी, जो जासूसी कर सूचनाएँ एकत्र करती थी।
सहयोगियों पर भी शिकंजा
केंद्र सरकार ने पीएफआई के जिन सहयोगियों पर भी प्रतिबन्ध लगाया है, उनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट ऑर्गेनाइजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वूमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं। अब देश में राष्ट्रव्यापी प्रतिबंधित संगठनों की संख्या 43 हो गयी है।