पिछले अंक का शेष… चमक गँवाता हीरा

हीरे के काम से जुड़े मज़दूरों की दशा बहुत अच्छी नहीं है, जबकि हीरा व्यापारी मालामाल रहते हैं

ज्वेलरी कॉर्पोरेट व्यवसाय के काम-काज को अन्दर तक खँगाले तो, लेब डायमंड ने भी हीरे की गरिमा को प्रभावित किया है। नतीजतन असमंजस का माहौल गर्व करने को प्रेरित नहीं करता। लेकिन अगर रत्नों के समूचे आख्यान और वैभव की तरफ़ लौटें तो हमें हीरे (डायमण्ड)पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। आज भारत के कई हीरा व्यापारी विदेशों में जाकर हीरे का व्यापार कर रहे हैं, जिनमें कुछ यहाँ के हीरा बाज़ारों की हाल और दुश्वारियों को देखते हुए विदेशों का रूख़ कर चुके हैं, तो कुछ बैंकों से क़र्ज़ लेकर रफ़ूचक्कर हो चुके हैं।

इस चमकते व्यापार की बदसूरती यह है कि कोयले से हीरा निकालने और उसे तराशकर उसमें चमक भरने वाले मज़दूरों की दशा बहुत अच्छी नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में हीरा-तराशी के काम से जुड़े कई मज़दूरों ने आत्महत्या तक की है। कह सकते हैं कि कोयले से हीरा निकालने वाले मज़दूर दिन-रात काले ही रहते हैं और हीरा-तराशी करने वाले मज़दूरों के हाथ कटे रहते हैं; लेकिन मालामाल इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारी ही रहते हैं। यह इस व्यवसाय का सियाह पहलू ही कहा जाएगा। केवल सावजी ढोलकिया अकेले ऐसे हीरा व्यापारी हैं, जो अपने कर्मचारियों को हर साल महँगे तोहफ़े देते हैं और हर साल अनेक ग़रीब युवतियों की शादी कराते हैं।

राहत की बात

फ़ख़्र की बात यह है कि मौज़ूदा समय में अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा हीरा बाज़ार है। भारत के मध्यम वर्ग में हीरे के सालाना 12 फ़ीसदी रुझान बढ़ रहा है। भारत और पड़ोसी देश चीन में 70 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि शादियों के लिए हीरा सबसे बेहतरीन तोहफ़ा हो सकता है।

वैश्विक हीरा उद्योग के समूचे आख्यान पर नज़र डालें तो कहना ग़लत नहीं होगा कि हीरों के उत्पादन में क़रीब 20 फ़ीसदी की ढलाई तो बीते बरस ही शुरू हो गयी थी। नतीजतन खुरदरा हीरा (रफ डायमंड) की बिक्री में क़रीब 33 फ़ीसदी की कमी आ गयी। उत्पादन और माँग में अन्तर का फ़ासला बढ़ा, तो खनन कम्पनियों का मुनाफ़ा भी 20 से 22 फ़ीसदी तक कम हो गया। बावजूद इसके हीरे के प्रति लोगों का रुझान दिनोंदिन बढ़ रहा है। अलबत्ता बेन की रिपोर्ट खँगालें तो लॉकडाउन नीति, सरकारी समर्थन और फुटकर विक्रेताओं के रुझान के मद्देनज़र हीरे की माँग में बढ़त अहम हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना भी है कि हीरा उद्योग को पटरी पर लाने में मध्यम वर्ग का योगदान अहम भूमिका निभा सकता है। इस लिहाज़ से यह एक अच्छी ख़बर हो सकती है कि कच्चे हीरे के प्रबन्धन में जिस तरह सुधार किया जा रहा है। कलई (पॉलिश) किये गये हीरे की तुलना में उसकी बाज़ार में माँग बढ़ सकती है। उधर क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक राहुल गुट्टा कहते हैं कि जिस तरह हीरे का निर्यात बढ़ रहा है, अक्टूबर तक इसमें प्रतिमाह औसतन दो बिलियन डॉलर (तक़रीबन 14,822 करोड़ रुपये) तक बढ़ोतरी होने की उम्मीद की जा सकती है। निर्यात से पिछले वित्त वर्ष राजस्व में आयी बढ़ोतरी ने आँकड़ा 16.4 बिलियन डॉलर (1,21,540.40 करोड़ रुपये) तक पहुँच गया। क्रिसिल की रिपोर्ट कहती है कि हीरा व्यापारियों की आय में 20 फ़ीसदी में बढ़ोतरी हुई है। भारत में हीरे के निर्यात के लिए सबसे अच्छा संकेत मानें तो यात्रा पर प्रतिबन्ध और आतिथ्य समारोह पर ख़र्च को सीमित करने से यह हालात बने है।

लॉकडाउन से हुआ नुक़सान

लॉकडाउन में निर्यात प्रभावित होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। भारत में वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाये गये लॉकडाउन से बढ़ी मंदी और शादियों पर लगी रोक के कारण हीरों की खुदरा बिक्री में 26 फ़ीसदी की गिरावट आ गयी। हालाँकि चीन में हीरा जड़े आभूषणों की माँग की भरपायी इस साल हो जाएगी; लेकिन भारत को पिछले स्तर पर आने में भी ज़्यादा समय लग सकता है। कोरोना-काल में सिर्फ़ जयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के रत्न कारोबारियों को झटके पहले तो पिछले साल हॉन्गकॉन्ग, अमेरिका, इंडोनेशिया और ताइवान के जेम्स ज्वेलरी शो (रत्नाभूषण प्रदर्शन) के निरस्त होने से भारी नुक़सान हुआ। इसके बाद पिछले साल अप्रैल में शुरू हुए दुनिया के दूसरे सबसे बड़े जेम्स शो (रत्न प्रदर्शन) तुसान में भी उन्हें शामिल नहीं होने दिया गया, जबकि तमाम कारोबारी भारी उम्मीदें लिये इस प्रदर्शन में पहुँचे थे। लेकिन यूएएन अथॉरिटी ने क़रीब 70 जौहरियों को लौटा दिया। इनमें 35 से ज़्यादा जौहरी जयपुर के थे। जौहरियों का कहना है कि उन्होंने एक माह पहले ही पार्सल भेज दिये थे, इससे उन्हें 7,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है। सूत्रों का कहना है कि जौहरियों को यह कहकर वापस लौटा दिया गया कि उनका वीजा रत्नाभूषणों की बिक्री के लिए नहीं है।

अब तक मिले बड़े हीरे

दुनिया का सबसे क़ीमती हीरा तो आज भी कोहेनूर ही है। बड़ी बात यह है कि यह भारत की अमानत है। भले ही उसे अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से उड़ा लिया। कोहेनूर के अलावा अगर बात करें, तो वज़न में दुनिया का बड़ा ‘क्यूलिनन’ नाम का हीरा दक्षिण अफ्रीका में सन् 1905 में मिला, जिसका वज़न 3,106 कैरेट है। दूसरा बड़ा हीरा हीरा बोत्सवाना में मिला, जिसका वज़न 1,174.76 कैरेट है। इसके बाद सन् 2015 में पूर्वोत्तर बोत्सवाना में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हीरा ‘लसेडी ला रोना’ पाया गया। टेनिस-बॉल के आकार का यह हीरा 1109 कैरेट का है। इस हीरे को कनाडा की हीरा कम्पनी लूकारा ने करोवे हीरा खदान से खोजा था। दक्षिण अफ्रीकी देश वोत्सवाना में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हीरा मिला है। 1098 कैरेट के 73 मिलीमीटर चौड़े इस हीरे को खोजने वली कम्पनी देवस्वाना है। देवस्वाना की प्रबन्ध निदेशक लयनेटे आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा कि माना जा रहा है कि गुणवत्ता के आधार पर यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हीरा है। यह दुर्लभ और असाधारण पत्थर अंतरराष्ट्रीय हीरा उद्योग और बोत्सवाना के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। फ़िलहाल हीरे को नाम नहीं दिया गया है।

बता दें कि बोत्सवाना अफ्रीका का शीर्ष हीरा उत्पादक देश है। इसकी राजधानी गोबोरानी कच्चे हीरों की खुदाई के अलावा इनकी कटाई, कलई और बिक्री के लिए भी मशहूर है। कोरोना-काल में संकट से जूझ रही बोत्सवाना सरकार को इस हीरे की खोज से बड़ी राहत मिली है। इसके ज़रिये सरकार को बड़ी रक़म मिलने की सम्भावना है। देवस्वाना कम्पनी जितने हीरे बेचती है, उसका 80 फ़ीसदी राजस्व सरकार को मिलता है।

कुछ समय पहले श्रीलंका के रत्नपुरा इलाक़े में एक घर के आँगन में कुएँ की खुदाई के दौरान बहुमूल्य रत्न नीलम का दुनिया का सबसे बड़ा क्लस्टर (समूह) मिला। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में 510 किलोग्राम वज़नी इस हीरे की क़ीमत 100 मिलियन डॉलर (तक़रीबन 7.5 अरब रुपये) है। इसे सेरेंडिपिटी सफायर यानी क़िस्मत से मिला नीलम नाम दिया गया है। इस नीलम को कोलम्बो में एक बैंक की तिजोरी में रखा गया है। रतनपुर को श्रीलंका की रत्न राजधानी के तौर पर जाना जाता है। पूर्व में भी इस शहर से कई क़ीमती रत्न मिले हैं। श्रीलंका दुनिया भर में पन्ना, नीलम और अन्य बेशक़ीमती रत्नों का प्रमुख निर्यातक है। इसकी खोज आठ माल पहले हुई थी। तब सुरक्षा कारणों से घोषणा नहीं की गयी थी। इसकी सफ़ार्इ व अन्य अशुद्धियाँ निकालने में काफ़ी समय लगा।