वहीं मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हितेश बाजपेयी मानते हैं, ‘यदि विचारधारा से प्रेरित होकर कोई व्यक्ति दल बदलता है तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन टिकट या दूसरे प्रलोभन में विचारधारा से समझौता करता है तो ये ठीक नहीं है.’
छत्तीसगढ़ में 32 साल तक भाजपा में रहने वाली करुणा शुक्ला ने लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है. वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी तो हैं ही, साथ ही भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी रह चुकी हैं. फिलहाल करुणा शुक्ला कांग्रेस की टिकट पर बिलासपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं.
इस बारे करुणा शुक्ला कहती हैं, ‘भाजपा ने उनके स्वाभिमान की रक्षा नहीं की. उन्हें अत्यधिक उपेक्षित किया गया. इस कारण उन्होंने बीजेपी को अलविदा कहकर कांग्रेस का साथ ले लिया है.’
विधानसभा चुनाव के पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक सौरभ सिंह अब लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस को भी गुडबाय कह दिया है. सौरभ सिंह कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हुए थे. वे बसपा की टिकट पर जीतकर अकलतरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रहे.
कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष मोतीलाल साहू भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं. महासमुंद से टिकट ना मिलने पर नाराज होकर उन्होंने अपना इस्तीफा प्रदेश कांग्रेस कमेटी को सौंप दिया है.
नेता के दल बदलने की इस होड़ में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रदेश अध्यक्ष दीपक साहू भी अपने 120 पदाधिकारियों समेत भाजपा में शामिल हो गए हैं. दीपक साहू स्वाभिमान मंच के संस्थापक व छत्तीसग़़ढ भाजपा के पहले प्रदेशाध्यक्ष दिंवगत ताराचंद साहू के पुत्र हैं. भाजपा सांसद रहे ताराचंद साहू ने पार्टी से नाराज होकर स्वाभिमान मंच की स्थापना की थी. भाजपा में शामिल होने के बाद दीपक साहू का कहना है, ‘ यह मेरी घर वापसी है.’
छत्तीसगढ़ में दल बदलने में जिस नेता की छवि सबसे ज्यादा खराब हुई, वे विद्याचरण शुक्ल थे. शुक्ल ने वर्षों कांग्रेस में रहने के बाद भाजपा की टिकट से वर्ष 2004 में महासमुंद सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था. 1957 में कांग्रेस की टिकट से जीतकर शुक्ल भारतीय संसद में सबसे युवा सांसद बने. आपातकाल के वक्त सूचना प्रसारण मंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी के प्रति पूरी वफादारी भी निभाई. लेकिन समय के साथ कभी जनमोर्चा का हिस्सा रहे तो कभी जनता दल (एस) का. कभी एनसीपी का हाथ थामा तो कभी भाजपा का. बीच-बीच में वापस कांग्रेस में आते-जाते रहे. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी भाजपा छोड़कर भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली थी. लेकिन उनकी भी घर वापसी हो गई. ऐसे कई नेता रहे हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया का चक्कर लगाने के बाद घर की राह पकड़ ली. वैसे कहा तो यह भी जाता है कि जहाज का पंछी लौटकर जहाज पर ही आता है. यही हाल इन नेताओं का भी है. मौकापरस्ती के चलते वे भले ही कितने ही दल बदल लें या बना लें लेकिन सबसे ज्यादा संभावना उनके अपनी ही पार्टी में लौटने की होती है.