हालाँकि वह मामला ठण्डे बस्ते में चला गया। कांग्रेस के विधायक अपनी सरकार होने के बाद भी जनता का काम नहीं करवा पाने का आरोप सार्वजनिक मंच से हमेशा लगाते हैं। इन सब के बीच कांग्रेस विधायक राष्ट्रपति चुनाव में एक और आरोप में घिर गये हैं। उन पर पार्टी लाइन से हटकर भाजपा का साथ देने और राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट करने के आरोप लग रहे हैं। यह हक़ीक़त भी है। क्योंकि जितने वोट झारखण्ड से द्रौपदी मुर्मू को मिले, वह उम्मीद से अधिक था। उधर, कांग्रेस कोटे के मंत्री आलमगीर आलम भी ईडी के निशाने पर आ गये हैं। अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग की जाँच कर रही ईडी ने आलमगीर के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज कर लिया है।
कांग्रेस नहीं कर सकती ऐतराज़
कांग्रेस की राज्य में स्थिति बड़ी विचित्र है। पार्टी सरकार में है। झामुमो के साथ गठबंधन में है; लेकिन खुलकर किसी मामले में ऐतराज़ जताने की स्थिति में भी नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव में झारखण्ड की दलीय स्थिति के अनुसार भाजपा के 25 विधायकों के अलावा झामुमो के 30, आजसू पार्टी के दो सदस्यों के अलावा दो निर्दलीय का समर्थन पहले से ही द्रौपदी मुर्मू को था। इस तरह से द्रौपदी मुर्मू को 59 मत (वोट) मिलना पहले से ही तय था। इसमें से भाजपा के एक विधायक इंद्रजीत मेहता बीमार रहने के कारण अस्पताल में भर्ती हैं और वह मतदान करने नहीं पहुँचे थे। इस तरह से द्रौपदी मुर्मू को 58 मत मिलना तय था। लेकिन उन्हें झारखण्ड से 70 विधायकों का समर्थन मिला और एक मत निरस्त हो गया। इस तरह से 12 वोट अधिक मिले। कांग्रेस के 17 विधायक हैं। यानी निश्चित रूप से कांग्रेस विधायकों ने ही पार्टी लाइन से हटकर क्रॉस वोटिंग की है। कांग्रेस की एकजुटता पर ही सवालिया निशान है। ऐसे में मुख्यमंत्री के बदले तेवर पर ऐतराज़ करने की स्थिति में भी पार्टी नहीं है। लिहाज़ा पार्टी के नेता चुप्पी साधे हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि हमारा गठबंधन झामुमो के साथ सरकार में है राष्ट्रपति चुनाव में नहीं। वह स्वतंत्र थे जिसे वोट डालना चाहें। अपने विधायकों की एकजुटता पर कहते हैं, मामले को देख रहे हैं। किस-किस ने क्रॉस वोटिंग की है।
खिचड़ी पकने का है इंतज़ार
झारखण्ड की राजनीति में कुछ खिचड़ी तो पक रही है। इसके पकने का इंतज़ार है। तभी ऊँट किस तरफ़ करवट लेगी यानी कांग्रेस टूट रही या झामुमो बँटेगा। या फिर हेमंत सोरेन स्थिति को सँभाल लेंगे। इसकी सटीक जानकारी लगेगी। क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को राष्ट्रपति चुनाव में अचानक दिल्ली दौरे के बाद आदिवासी हित का ख़याल आना, अतिथि देवो भव: की बात कहते हुए प्रधानमंत्री की प्रशंसा करना जैसे तमाम घटनाक्रम के रहस्य को फ़िलहाल साफ़-साफ़ समझना थोड़ा मुश्किल है। मुश्किल इसलिए क्योंकि जब किसी के सरकार जाने वाली हो, और पार्टी पर संकट हो, तो विरोधी पर हमले तेज़ हो जाते हैं। यह पहला मामला होगा, जब जहाँ सरकार जाने की चर्चा तेज़ हो। मुख्यमंत्री पर चौतरफ़ा हमला चल रहा हो। ख़ुद की पार्टी भी ख़तरे में है और बहुत से क़रीबी लोग जेल जाने की डगर पर हों। ऐसे में विरोधी पर किसी आक्रमण या आलोचना के बजाये प्रशंसा हो रही है।
इसका मतलब है कि हेमंत सोरेन और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाक़ात में कोई-न-कोई फ़ैसला हुआ है। कोई सौदेबाज़ी या समझौता हुआ है। इतना तय है कि झारखण्ड एक अलग ही राजनीति की ओर बढ़ रही है, जिसमें किसी भी सम्भावना को इन्कार नहीं किया जा सकता है। सम्भव है कि नयी सरकार बनने में गोवा और महाराष्ट्र मॉडल की जगह कोई तीसरा ही मॉडल निकल आये।
विधानभा में दलगत स्थिति
पार्टी सीटें
झामुमो 30
भाजपा 25
कांग्रेस 17
झाविमो 2
आजसू 2
सीपीआई(एमएल) 1
एनसीपी 1
निर्दलीय 2
मनोनीत 1
राजद 1
कुल 82
बता दें कि झाविमो का भाजपा में विलय हो चुका है। एक सदस्य बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल हो चुके हैं। दूसरे प्रदीप यादव कांग्रेस में गये हैं। अभी इन पर सदन में दल-बदल का ममाल चल रहा और सदन में इन्हें झाविमो छोड़ दूसरे दल के सदस्य के रूप में मान्यता नहीं मिली है।