थॉमस कप में लहराया तिरंगा

किदांबी श्रीकांत ने तीसरा गेम जीतने के बाद ही भारत को वह उपलब्धि दिला दी, जिसका उसे दशकों से इंतज़ार था। थॉमस कप को वैसे भी बैडमिंटन में ओलंपिक या विश्व कप स्वर्ण से कम नहीं माना जाता। शुरुआती दो गेम अपने नाम कर चुके तीसरे और निर्णायक मुक़ाबले में भारत के किदांबी श्रीकांत का मुक़ाबला इंडोनेशिया के जोनाथन क्रिस्टी के साथ था, जिन्हें श्रीकांत ने पहले गेम में आसानी से 21-15 से मात देकर भारतीय बैडमिंटन प्रेमियों को रोमांच से भर दिया।

दूसरे मुक़ाबले में क्रिस्टी और श्रीकांत के बीच जबरदस्त टक्कर दिखी। एक समय श्रीकांत के पास 11-8 की बढ़त थी; लेकिन यह आख़िरी गेम 21-21 पर जाकर टिक गया। यहाँ श्रीकांत ने दो अंक बटोर कर 23-21 से मैच जीत लिया और भारत ने इतिहास रच दिया। भारत की ऐतिहासिक जीत का आधार रखा शुरुआती दो मैचों ने। पहले दिन उदीयमान लक्ष्य सेन ने विश्व के नंबर-4 एंथोनी सिनिसुका को 8-21, 21-17, 21-16 से हराकर 1-0 की बढ़त दिला दी। सेन की सर्विस और रिटर्न शॉट देखने लायक थे।

बेस्ट ऑफ फाइव में भारत 1-0 से आगे हुआ, तो बढ़त बनाये रखने की ज़िम्मेदारी अब डबल्स की जोड़ी सात्विक साईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी के ऊपर थी। ये दोनों मोहम्मद अहसान और केविन संजय के ख़िलाफ़ शुरुआती कांटे की टक्कर में 18-21 से हार गये, तो मानों भारतीय ख़ेमे में उदासी-सी छा गयी और जीत की कल्पना को मानों ब्रेक से लग गये। लेकिन अगले दो दौर में रंकीरेड्डी और चिराग की जोड़ी ने 23-21 और 21-19 से जीत दर्ज कर भारतीय ख़ेमे में ख़ुशी और उम्मीद भर दी। किदाम्बी श्रीकांत ने तीसरे मैच में दर्ज करके बैंकॉक के इंडोर स्टेडियम में तिरंगा लहरा दिया- इस टूर्नामेंट में पहली बार।

इससे पहले सेमीफाइनल में चोटिल होकर भी मैदान में उतरे एच.एस. प्रणय ने भारत को जीत दिलायी थी। डेनमार्क के ख़िलाफ़ सेमीफाइनल में दोनों टीमें 2-2 की बराबरी पर थीं। आख़िरी मैच में प्रणय के सामने डेनमार्क के रासमुस गेमके थे। सवा घंटा चले मुक़ाबले में 13-21, 21-9, 21-12 से गेमके को हराकर पहली बार भारत के फाइनल में पहुँचने का रास्ता प्रणय ने साफ़ किया। पूरे थॉमस कप में भारत का सफ़र शानदार रहा। भारत को ग्रुप स्टेज मैच में एकमात्र हार चीनी ताइपे से मिली। भारतीय टीम ने ग्रुप स्टेज में जर्मनी को 5-0 से, कनाडा को 5-0 से हराया; लेकिन चीनी ताइपे से 2-3 से हार झेलनी पड़ी। क्वार्टर फाइनल में भारत ने पाँच बार की चैम्पियन मलेशिया को हराया था।

पिछले एक दशक में भारतीय बैडमिंटन ने कई सफलताएँ अर्जित की हैं। इन सफलताओं में तीन ओलंपिक मेडल, दो खिलाडिय़ों के नाम के आगे विश्व नंबर-1 का सम्मान और इकलौता वल्र्ड चैंपियनशिप ख़िताब आदि शामिल हैं। महिला खिलाडिय़ों में साइना नेहवाल, पीवी सिंधु जैसी प्रसिद्ध भारतीय खिलाडिय़ों की चर्चा पूरी दुनिया में है। जबकि पुरुषों में पारूपल्ली कश्यप, चिराग शेट्टी, किदांबी श्रीकांत, लक्ष्य सेन, प्रियांशु राजवत, सतविकसाईराज रणकीरेड्डी, ध्रुव कपिला, एम.आर. अर्जुन, बी. साई प्रणीत, एच.एस. प्रणय, कृष्ण प्रसाद गारगा, विष्णुवर्धन पंजाला जैसे दिग्गज खिलाडिय़ों ने भारतीय बैडमिंटन की मानो तस्वीर ही बदल दी है।

अब तक भारत का प्रदर्शन

1900 के दशक की शुरुआत में अंग्रेज बैडमिंटन खिलाड़ी सर जॉर्ज एलन थॉमस एक सफल खिलाड़ी थे। उनकी इच्छा फुटबॉल वल्र्ड कप और टेनिस के डेविस कप की तर्ज पर बैडमिंटन में पुरुषों के लिए टूर्नामेंट शुरू करने की थी। उनके प्रयासों से सन् 1948-49 में ब्रिटिश धरती पर पहली बार यह टूर्नामेंट हुआ, जो उनके ही नाम पर था। पहले यह तीन साल में एक बार होता था, जबकि सन् 1982 से दो साल में एक बार होने लगा। इसलिए सन् 1948-49 से लेकर अब तक सिर्फ़ 32 बार ही थॉमस कप आयोजित हुआ है। दिलचस्प यह है कि यह टूर्नामेंट इतने वर्षों में सिर्फ़ छ: देश ही जीत पाये हैं। इनमें इंडोनेशिया सबसे सफल टीम रही है, जिसने अब तक 14 बार थॉमस कप जीता है।

थॉमस कप में बैडमिंटन वल्र्ड फेडरेशन के सदस्य देश ही भाग लेते हैं। भारत ने पहली बार सन् 1952 में टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और फाइनल राउंड इंटर-जोन में तीसरे स्थान पर रहा, जबकि सन् 1955 में भी। सन् 1979 में पहली बार सेमीफाइनल में पहुँचा, जिसमें प्रकाश पादुकोण के अलावा सैयद मोदी जैसे खिलाड़ी थे। भारत तीन बार, सन् 2006, 2010 और 2020 में क्वार्टर फाइनल में भी पहुँचा। इसके अलावा सन् 1988 में भारत 8वें स्थान पर, सन् 2000 में 7वें स्थान पर, सन् 2014 में 11वें स्थान पर, सन् 2016 में 13वें स्थान पर और सन् 2018 में 10वें स्थान पर पहुँचा।