मधु किश्वर के यहां से आने के पांच दिन बाद 23 सितंबर को एलीन मणिपुर में अपने घर वापस चली गई. उसके दोस्तों का कहना है कि मयंक और इला ने उसे फिर से इस मामले में कुछ न करने के लिए हतोत्साहित किया था.
सिर्फ वीडियो रिकॉर्डिंग के अलावा कोई बात आगे बढ़ता न देखकर लड़की के दो दोस्त तपन और नलिन कविता कृष्णन के पास गए. जानकारों के मुताबिक कविता ने छह नवंबर को खुर्शीद की संस्था आईएसडी को पत्र लिखकर मामले में कार्रवाई करने की मांग की. सात नवंबर को इस मुद्दे पर आईएसडी के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स की आपात मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग में इस मामले पर आगे कार्रवाई की सहमति बनी. 27 नवंबर को बोर्ड की तीन महिला सदस्यों (कल्याणी मेनन सेन, पूर्वा भरद्वाज और जूही जैन) ने संतोषजनक कुछ न किए जाने पर विरोध स्वरूप बोर्ड से इस्तीफा दे दिया. हालांकि इस बाबत पूछे जाने पर कल्याणी मेनन सेन कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर देती हैं.
महत्वपूर्ण सवाल
सवाल उठता है कि मधु किश्वर की निगाह में जब मामला आया तब वे मामले को तीन महीने से दबा कर क्यों बैठी थीं. पूछने पर इस सवाल का जवाब देने की बजाय मधु किश्वर ने तहलका पर सवाल उठाने और नरेंद्र मोदी की वकालत करने में ज्यादा रुचि दिखाई. जोर देकर पूछने पर उन्होंने कहा, ‘मैं पीड़ित के पीछे-पीछे चलती हूं, उसके आगे-आगे नहीं. आगे आना पीड़िता का काम था. पर वह डरी हुई थी.’ तो फिर आपने उसके मन से डर निकालने की कोशिश क्यों नहीं की, इस पर किश्वर लगभग अपना आपा खोते हुए कहती हैं, ‘यह बेहूदा सवाल है. तुम्हें तमीज नहीं है.’
मधु किश्वर की भूमिका को एक अलग ही कोण से देखते हुए खुर्शीद के मित्र और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद कहते हैं, ‘खुर्शीद के ऊपर एक आरोप था और हमने कहा था कि आप इसका सामना कीजिए. इसका कोई शॉर्टकट नहीं हो सकता. लेकिन मधु किश्वर जैसी अनुभवी एक्टिविस्ट ने किस नीयत से वीडियो तैयार करवाया और फिर उसे कुछ गैर अनुभवी युवाओं को सौंप दिया. जल्द ही यह वीडियो देश भर में फैल गया. फेसबुक से लेकर तमाम सोशल मीडिया में मॉब-लिंचिंग का एक माहौल तैयार हो गया. इसमें टीवी चैनल वाले भी कूद गए. और अंतत: खुर्शीद इसका शिकार हो गए. मधु किश्वर ने यह बहुत बड़ा अपराध किया है. जिसकी सजा उन्हें मिलनी चाहिए.’
कविता कृष्णन की कहानी और भी विचित्र है. पहले तो वे यह मामला लेकर आईएसडी की गवर्निंग बोर्ड में गईं. उनकी शिकायत पर ही आगे की कार्रवाई का संज्ञान लिया गया. और अब वे जाने किस डर से आईएसडी में अपनी तरफ से कोई भी शिकायत करने की बात से ही इनकार कर रही हैं. कविता के सामने मुकरने की कौन सी मजबूरी है? एक और अहम सवाल है कि जब उनकी नजर में बलात्कार का एक मामला था तब वे दो महीनों से इस मामले में चुप क्यों बैठी थी? कविता टका सा जवाब देती हैं, ‘मैं पीड़िता से मिलने की कोशिश कर रही थीं क्योंकि अब तक उसकी कोई सीधी शिकायत हमारे पास नहीं आई थी.’
खुर्शीद अनवर
2002 से पहले तक खुर्शीद अनवर पीस नाम की संस्था में काम करते थे. उस साल गुजरात में हुए भयानक दंगों के बाद खुर्शीद और उनके कुछ साथियों ने मिलकर अमन एकता मंच का गठन किया. दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रॉफेसर अपूर्वानंद उन्हें याद करते हुए कहते हैं, ‘खुर्शीद एक हाजिर जवाब, सेक्युलरिज्म के प्रति समर्पित, उर्दू स्कॉलर और एक्टिविस्ट होने के साथ ही ऊंचे दर्जे के इंटलेक्चुअल भी थे. जेएनयू से उन्होंने उर्दू भाषा में डॉक्टरेट किया हुआ था.’ गुजरात दंगों के बाद ही खुर्शीद ने पीस से अलग होकर अपनी स्वतंत्र संस्था बनाई. इसका नाम है इंस्टीट्यू फॉर सोशल डेमोक्रेसी.
मिलने जुलने वाले उन्हें एक समर्पित नास्तिक मानते हैं. उन्होंने अपनी इस पहचान को अंत तक कायम भी रखा. मौत के पश्चात मुसलिम पहचान के बावजूद उनका इलेक्ट्रिक क्रेमेटोरियम में दाह संस्कार किया गया. यह उनकी इच्छा थी. एक सच यह भी है कि खुर्शीद अपनी पत्नी मीनाक्षी और बेटे से लंबे समय से अलग रह रहे थे. पर उन्होंने अपने बीच हुए अलगाव की चर्चा या उसके कारणों पर कभी कोई बातचीत किसी से नहीं की. उनके दोस्त मानते हैं कि यह एक बड़ी ट्रेजडी थी और शायद उनके लगातार अवसाद में रहने की एक वजह भी यही थी. खुर्शीद की अभिन्न मित्र पत्रकार मनीषा पांडेय बताती हैं, ‘पिछले दो ढाई सालों से वे डिप्रेशन में थे. खूब सारी दवाइयां खाते थे, और अकेलेपन से पीछा छुड़ाते रहते थे.’
दो-ढाई सालों से अकेलापन खुर्शीद के जीवन का हिस्सा था. उनके एक साथी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि वे एक साथी की कमी हमेशा महसूस करते थे. हालांकि जिस तरह के आरोप उन पर लगे हैं ऐसा कोई आरोप उन पर पहले कभी नहीं लगा था. अपूर्वानंद कहते हैं, ‘यह बात महत्वपूर्ण नहीं है. किसी व्यक्ति की हजार लोगों ने तारीफ की हो और सिर्फ एक व्यक्ति ऐसा मिले जो उसे गड़बड़ कहे. तो इस गलती को दबाने के लिए उन हजार लोगों को बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए. हमने खुर्शीद से कहा था कि अगर आरोप लगा है तो आपको सामना करना चाहिए. इसका कोई शॉर्टकट नहीं हो सकता. पर मधु किश्वर जैसे लोगों ने शॉर्टकट अपनाया और मॉब लिंचिग का माहौल बनाया.’
महत्वपूर्ण सवाल
- कुछेक मीडिया खबरों के मुताबिक खुर्शीद के यहां से कोई सुसाइड नोट बरामद हुआ है. इसके मुताबिक उस रात एलीन और उनके बीच सहमति का संबंध बना था. जबकि एलीन और उसके साथियों का कहना है कि वह होश में ही नहीं थी. तहलका ने इस मामले के जांच अधिकारी कैलाश केन से बात की. उन्होंने खुर्शीद के यहां से कोई भी सुसाइड नोट मिलने से साफ इनकार किया है. कैलाश ने यह बात भी बताई कि एलीन ने अपने साथ बलात्कार की पुष्टि की है. बातचीत के दौरान कैलाश पीड़िता का बयान लेने इंफाल गए हुए थे.
- अगर नोट को सच माने तो यह नतीजा निकाला जा सकता है कि उस रात कुछ तो हुआ था दोनों के बीच. लेकिन होशो-हवास में बिलकुल नहीं होने के बावजूद क्या वह किसी और कमरे में जाकर उस दिन पहली बार उससे मिले खुर्शीद के साथ फिर वापस अपने कमरे में आकर सहमति के संबंध बना सकती है?
- जो लड़की लगातार सामाजिक कार्यकर्ताओं के घर-घर भटक रही थी वह अचानक से दिल्ली छोड़कर क्यों चली गई?
इस तरह के तमाम ऐसे सवाल हैं जिनका अब सिर्फ एकतरफा जवाब ही मिल सकता है क्योंकि आरोपित अब दुनिया में नहीं है. एक सच यह भी है कि इस मामले में अब तक जो एक मात्र कानूनी प्रक्रिया अपनाई गई है वह आरोपित खुर्शीद अनवर की तरफ से ही अपनाई गई है. उन्होंने 29 नवबंर को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में तीन लोगों (तपन कुमार उर्फ जहरीला तपन, नलिन मिश्रा और नीरज हरि पांडे) के खिलाफ मानहानि की याचिका दायर की थी.
मैं हमेशा से तहलका की ऐसी रिपोर्ट,लेखों की क़ायल रही हूँ,जिसमें अगर सत्यता एवम् स्पष्टता का पता नहीं लग पा रहा हो,तो वहाँ तहलका अपना कार्य बाख़ूबी से करती थीं। और इसी सत्य स्पष्टता से अगर तहलका से जुड़े असल पत्रकारों ने ऐसे ही बेबाकी से पिछले दिनों हुए प्रकरण पर भी इसी तरह लिखा होता तो हिन्दी पत्रकारिता की बेहतर कहे जानेवाली पत्रिका में,मैं सदैव तहलका का ही नाम लेती।
बेहद संतुलित और इंट्रो्स्पेक्टिव लेख,पूरे मामले को तार्किक तरह से समझने की कोशिश, बगैर किसी का पक्ष लिए.
हमारी सहानभूति खुर्शीद अनवर और पीडिता के साथ है जो कुछ हुआ दुखद है …मधु किश्वर जैसे प्रोफेशनल लोगो से बचना चाहिए …
Need a CBI investigation
मैं खुर्शीद जी को जानती हूं लेकिन वे ऐसे इंसान नहीं हैं, उन्होंने कई बार अपनी फेसबुक पोस्ट पर “जहरीला तपन” के बारे में लिखा था। यह उनके खिलाफ गहरी साजिश हो सकती है। निर्भीक औऱ धर्म निरपेक्ष या यूं कहें नास्तिक प्रवित्ति के खुर्शीद अनवर जी को कई कट्टर लोग पसंद नहीं करते थे शायद यह उसी का नतीजा है।
yes i am fond of yr news reporting but let me clear myself that truth should me reflected from both side, i.e. u r not addressing issue of tarun tejpal, but roaming allaround to find this type of issue. are u all turning ur face from the hard truth that ur boss is a rapist for sake of ur job or something else. why dont u commenting of this issue and clear doubts of ur magzine fans and the “mango” peaple.
इस मामले में खुर्शीद अनवर को निरा निर्दोष मासूम ठहराने वाले, बूंद टीम के सदस्य एवं कथित नारीवादी की भूमिका शर्मनाक एवं निंदनीय है.