झारखण्ड की कोख में छिपा ख़ज़ाना

जयपुर पहुँच रहा गुड़ाबांदा का पन्ना

 

राज्य सरकार अभी तक केवल कोयला, लोहा और बाक्साइड को लेकर ही अटकी है। इन्हीं खनिजों के भण्डार की नीलामी हो रही है। सरकार इन बेशक़ीमती पत्थरों और खनिजों का लाभ नहीं उठा पा रही है; लेकिन इसके अवैध कारोबारी चाँदी काट रहे हैं।

सूत्रों की मानें, तो यहाँ से निकलने वाले पन्ना की चमक जयपुर की जौहरी मण्डी तक है। अवैध तरीक़े से निकाले जाने वाला पन्ना चोरी-छिपे जयपुर तक पहुँचता है। पूर्वी सिंहभूम ज़िले के गुड़ाबांदा इलाक़े में जाने पर अवैध खनन के दिख जाते हैं। इसी तरह सिमडेगा से हीरा और कोडरमा से मून स्टोन का अवैध खनन हो रहा। इस बात को राज्य सरकार के खान एवं भूतत्व विभाग के अधिकारी भी मानते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, केवल पन्ना का ही 800 करोड़ रुपये का सालाना व्यवसाय होता है।

नक्सली हस्तक्षेप के बिना खनन सम्भव नहीं!

सूत्रों बताते हैं कि नक्सलियों के हस्तक्षेप के बिना अवैध खनन सम्भव नहीं है। उनकी अनुमति से ही अवैध खनन होता है, तभी अवैध खनन करवाया जाता है। अवैध खनन का पूरा शृंखला (चेन) बनी हुई है। खनन कोई और करवाता है। स्थानीय स्तर पर निकाले गये बहुमूल्य पत्थर कोई और खरीदता है; और मंडी तक कोई और पहुँचाता है। खनन में महिलाएँ और बच्चे तक लगाये जाते हैं। जिन्हें काफ़ी कम पैसा मिलता है। हाँ, कुछ पत्थर की पहचान रखने वाले पारखी मज़दूरों को अलग से पैसे दिये जाते हैं, जो पत्थर को देखकर परख लेते हैं कि वह किस धातु का है।

विदेशी तकनीक की ज़रूरत

राज्य सरकार के खनन विभाग के अधिकारियों कहते हैं कि हीरा और पन्ना के खान होने के पुख़्ता सुबूत हैं। इसके अलावा निकेल, लिथियम, ग्लेडियम आदि होने के संकेत तो मिले हैं। लेकिन इन्हें पुख़्ता करने के लिए अभी वैज्ञानिक तरीक़े से जाँच की ज़रूरत है। इसके लिए बड़े निवेश की ज़रूरत है। साथ ही ज़मीन के अन्दर दबे खनिजों की गुणवत्ता की जाँच के लिए उच्च तकनीक की ज़रूरत है। हीरा या पन्ना की गुणवत्ता कैसी है? अन्य खनिजों की क्या स्थिति है? कितनी खुदाई के बाद अच्छी गुणवत्ता वाले खनिज प्राप्त होंगे? कहाँ, कितनी मात्रा में खनिज होने का अनुमान है? इन तमाम सवालों के जवाब की ज़रूरत होगी। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार, दोनों को इस दिशा में मिलकर ठोस क़दम उठाने होंगे, तभी खनिजों को निकाला जा सकेगा और उनकी मात्रा तथा गुणवत्ता की सही-सही जानकारी मिल सकेगी और राजस्व प्राप्त हो सकेगा; अन्यथा कोई फ़ायदा नहीं।

“खनिजों की खोज के लिए एक एक्सपोलेरशन विंग काम करती है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारी होते हैं। ये लगातार विभिन्न इलाक़ों में खनिजों की खोजबीन करते हैं और रिपोर्ट देते हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार क़दम आगे बढ़ाती है। यह सही है कि राज्य में बहुमूल्य खनिज पदार्थों का भण्डार है। अभी तक सिमडेगा में हीरा, कोडरमा में मून स्टोन और गुड़ाबांदा में पन्ना के होने की पुख़्ता जानकारी मिली है। दरअसल, एवरेज सेल प्राइस (एएसपी) केंद्र सरकार तय करती है। इसे इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस (आइबीएम) द्वारा तय किया जाता है, जो अभी तक नहीं हुआ है। राज्य सरकार से या तो केंद्र सरकार एएसपी तय करे, या फिर हमें स्वंतत्र रूप से सामान्य तरीक़े से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (पसन्द से अभिव्यक्ति) दे और खनिज निकालने की अनुमति दे। इसके लिए केंद्र से पत्राचार किया गया है। उम्मीद है कि जल्द ही कोई रास्ता निकलेगा।”

विजय कुमार ओझा

खान निदेशक, झारखण्ड सरकार