जी20 : भारत ने विश्व को दिखायी चुनौतियों की तस्वीर
अगर जी20 के आयोजन की सफलता को लेकर बात की जाए, तो हम कह सकते हैं कि भारत इसमें का$फी हद तक सफल रहा है। सफलता इस बात को लेकर नहीं है कि आयोजन भव्य था। पूरा इंतज़ाम सकुशल बीत गया। कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटी, बल्कि सफलता इस बात की है कि नयी दिल्ली घोषणा-पत्र पर जी20 के देशों ने सहमति जतायी और इस पर साथ मिलकर देश दुनिया में उभरी विभिन्न चुनौतियों पर काम करने का रोडमैप तैयार हो सका है। जी20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन इंडिया मिडिल ईस्ट ईस्ट यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर लॉन्च हुआ, जिससे भारत सहित अन्य देशों को इससे सबसे बड़ा फ़ायदा यह होगा कि इन्फ्रा डील से शिपिंग समय और लागत कम होगी, जिससे व्यापार का सस्ता और तेज़ होगा। वहीं अफ्रीकन यूनियन का जी20 में शामिल होने की मुहर लगना बड़ी बात है। वहीं इन सब के लिए भारत और जी20 के देशों के मेहनत की बात करें, तो जी20 की बैठक पिछले 8 महीने से भारत के विभिन्न राज्यों में आयोजित की गयीं। इस दौरान जी20 के बैनर तले 50 शहरों में क़रीब 200 से ज़्यादा बैठकों का आयोजन किया गया। यही कारण है कि भारत मंडपम् में पेश किये गये दिल्ली घोषणा पत्र पर आम सहमति बन पायी।
जी20 में भारत की तरफ़ से पेश किये गये घोषणा पत्र पर सहमति भारत की एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। इस घोषणा पत्र में आतंकवाद के सभी स्वरूपों की निंदा की गयी है और भौतिक राजनीतिक समर्थन से वंचित करने के लिए कहा गया है। इसमें आतंकवाद की कोई भी कार्रवाई आपराधिक और अनुचित है, चाहे ऐसी कार्रवाई कहीं भी घटित हुई हो। इस घोषणा पत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे आगे ले जाने के लिए चर्चा पर ज़ोर दिया गया और विश्वसनीय जवाबदेही और समावेशी डिजिटल बुनियादी ढाँचे (डीपी) का आह्वान डीपी की भूमिका को स्वीकार किया गया। साथ ही साथ जी20 समूह ने व्यक्तियों, धार्मिक प्रतीकों, पवित्र पुस्तकों के ख़िलाफ़ धार्मिक घृणा के सभी कृत्यों की निंदा की। इस घोषणा पत्र में उन्होंने धर्म या आस्था की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और शान्तिपूर्ण सभा के अधिकार पर ज़ोर दिया।
जी20 नेताओं ने दुनिया में असमान आर्थिक पुनरुद्धार के लिए एक मज़बूत टिकाऊ और समावेशी वृद्धि का आह्वान किया। साथ ही घोषित रेड ज़ोन की ज़रूरत को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं ने एक दूसरे के साथ साझा जानकारी का आह्वान किया। मुक्त व्यापार के लिए कृषि पर निर्भर उर्वरक के लिए जी20 नेताओं ने वस्तुओं की बढ़ती $कीमतें जीवन-यापन की लागत पर दबाव डाल रही कृषि खाद्य और उर्वरक क्षेत्र में खुले निष्पक्ष नियम आधारित व्यापार को सुविधाजनक बनाने और नियमों के अनुरूप निर्यात पर प्रतिबंध नहीं लगाने की प्रतिबद्धता जतायी।
वर्ष 2050 तक उत्सर्जन शून्य हासिल करने के लिए विकासशील देशों ने 2030 से पहले अपनी जलवायु आधारित योजनाओं को लागू करने के लिए 4.9 बिलियन डॉलर की आवश्यकताओं पर बल दिया। इन योजनाओं का लक्ष्य वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे 1.5 डिग्री के नीचे रखने की बात कही गयी है। भारत में ग्लोबल साउथ देशों की मदद करने के उद्देश्य से पर्यावरण और जलवायु अवलोकन के लिए जी20 मिशन उपग्रह का प्रस्ताव किया। इसके अलावा कई मुद्दों पर चर्चा और सहमति बनी।
जी20 के आयोजन में ख़र्च की बात करें, तो इसके अलग-अलग दावे पेश किये जा रहे हैं। सरकार ने ख़र्च का पूरा ब्योरा जारी नहीं किया है। महज़ ट्वीट के ज़रिये इसकी जानकारी दी गयी है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जी20 शिखर सम्मेलन पर 10 करोड़ डॉलर से भी अधिक के ख़र्च का अनुमान लगाया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने एक्स पर पोस्ट किया कि जी20 शिखर सम्मेलन के लिए आवंटित बजट 990 करोड़ रुपये था; लेकिन भाजपा सरकार ने 4,100 करोड़ रुपये ख़र्च किए। वहीं कुछ रिपोट्र्स में दावा किया गया है कि जी20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4,254 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिये। कोरोना महामारी के बाद से दुनिया भर की सरकारें सार्वजनिक कार्यक्रमों पर कम ख़र्च कर रही हैं; लेकिन भारत में ख़र्चों में बढ़ोतरी चिन्ता का विषय है।
इंडोनेशिया ने बाली शिखर सम्मेलन के लिए भारत से 10 प्रतिशत से भी कम यानी मात्र 364 करोड़ रुपये ख़र्च किये थे। वहीं केंद्र सरकार जब भी कोई सम्मेलन करती है या विदेशी नेताओं को बुलाती है, तो $गरीबी ढकने पर ही करोड़ों रुपये फूँक देती है, जबकि देश में कई तरह की समस्याएँ बढ़ रही हैं। जी20 शिखर सम्मेलन में अपनी धाक जमाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह ख़ज़ाने का मुँह खोलकर पानी की तरह पैसा बहाया, उससे भले ही कुछ लोग गदगद हों; लेकिन देश की आम जनता के लिए इसका इतना ही महत्त्व है कि आने वाले समय में महँगाई और बढ़ सकती है। शायद ही ऐसा आयोजन दुनिया में पहली बार हुआ है, जिसमें सोने और चाँदी के बर्तनों में खाना परोसा गया हो। इस तरह अरबों रुपये ख़र्च करना एक प्रकार से दो-जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाली एक बड़ी आबादी का मखौल उड़ाना ही कहा जाएगा।