जिनपिंग की ताक़त का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि माओ त्से तुंग को छोडक़र जिनपिंग से पहले देश के सभी राष्ट्रपतियों ने 10 साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त होने के नियम का पालन किया। अब जिनपिंग के तीसरी बार सत्ता में आने से यह नियम ख़त्म हो गया है। जिनपिंग पहली बार सन् 2012 में राष्ट्रपति और पार्टी महासचिव चुने गये थे, अब तीसरे कार्यकाल में प्रवेश कर गये हैं।
तीसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद जिनपिंग ने कहा- ‘हमें चीनी सन्दर्भ में माक्र्सवाद को अपनाकर ऐतिहासिक पहल करनी चाहिए और नये युग में चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद के विकास में नया अध्याय लिखना चाहिए। चीन और दुनिया को एक दूसरे की आवश्यकता है। हमारी अर्थ-व्यवस्था सकारात्मक है, जो कोरोना-काल के प्रतिबंधों के कारण मंदी झेल रही थी।’
कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में सभी चीज़ें जिनपिंग के हिसाब से हुईं। पहले राजनीतिक ब्यूरो ने सात सदस्यीय स्थायी समिति चुनी, जिसने शी जिनपिंग को तीसरे कार्यकाल के लिए महासचिव चुन लिया। जिनपिंग को केंद्रीय समिति में चुने जाने के बाद राजनीतिक ब्यूरो और फिर स्थायी समिति में चुना गया और वह आसानी से महासचिव चुन लिये गये।
इसमें सबसे दिलचस्प यह रहा कि महासम्मेलन में पार्टी के संविधान में एक महत्त्वपूर्ण संशोधन किया गया। इसमें निर्देश दिया गया कि जिनपिंग के निर्देशों और सिद्धांतों का पालन करना पार्टी के सभी सदस्यों का दायित्व है। समझा जा सकता है कि जिनपिंग कितने ताक़तवर हो गये हैं और उनके विरोध का क्या मतलब होगा?
पार्टी के महासम्मेलन में सीपीसी के संविधान में संशोधन सबसे प्रमुख घटना है, जो जिनपिंग के बहुत ताक़तवर हो जाने की कहानी कहती है। संशोधन के प्रस्ताव में कहा गया है- ‘नये युग के लिए चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद पर जिनपिंग का विचार समकालीन चीन और 21वीं सदी का माक्र्सवाद है और इस युग की सर्वश्रेष्ठ चीनी संस्कृति और लोकाचार का प्रतीक है।’
दुनिया में माक्र्सवाद के घटते प्रभाव के बीच चीन में जिनपिंग के और मज़बूत होने के कई मायने हैं। महासम्मेलन में पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी शाखा केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग (सीसीडीआई) का नया दल भी नियुक्त किया गया, जो सीधे जिनपिंग के अधीन कार्य करता है।
आंतरिक चुनौतियाँ
जिनपिंग भले ताक़तवर नेता बन गये हों, उनके सामने आंतरिक चुनौतियाँ रहेंगी। सीपीसी की बैठक में जिस तरह हु जिंताओ को बैठक से बाहर करने का वीडियो सामने आया, उससे संकेत मिलता है कि सब कुछ अच्छा नहीं है। वायरल हुए इस वीडियो में साफ़ दिख रहा है कि समापन समारोह में जिन्ताओ को बाहर ले जाने लगा क़रीब एक मिनट तक वह उनके सामने से उठायी गयी फाइल और उन्हें ले जाने की कोशिशों का विरोध कर रहे हैं। कुछ मीडिया रिपोट्र्स में हु की ख़राब सेहत की बात कही गयी है। हालाँकि घटनाक्रम के दौरान जिंताओ की शारीरिक भाषा कुछ और बयाँ करती है।
साफ़ दिख रहा है कि जब उनकी बाजू पकडक़र उन्हें बाहर ले जाने की कोशिश हो रही है, वह क़रीब एक मिनट तक ठिठके खड़े रहते हैं। जाते-जाते वह जिनपिंग के कंधे पर हाथ रखकर कुछ कहते भी महसूस होते हैं। इसके बाद वह जाते हुए वह प्रधानमंत्री ली के च्यांग का भी कंधा थपथपाते दिखते हैं। यह भी हो सकता है कि हु जिंताओ के ज़रिये जिनपिंग देश की कम्युनिस्ट पार्टी में अन्य ताक़तों को सन्देश देना चाहते हों। यहाँ यह ग़ौर करने वाली बात है कि जब इस घटना का वीडियो दुनिया के सामने आया उससे कुछ घंटों के भीतर ही प्रधानमंत्री ली के च्यांग और कुछ वरिष्ठ नेताओं को सीपीसी की केंद्रीय समिति से बाहर कर दिया गया। याद रहे सीपीसी के महाधिवेशन से कुछ समय पहले ही दो मंत्रियों को भी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में डाल दिया गया था। इससे यह संकेत मिलता है कि जिनपिंग विद्रोह के रास्ते बन्द करना चाहते थे। सीपीसी की बैठक से कुछ दिन पहले ही बीजिंग में एक पुल पर बैनर लहराते एक व्यक्ति की फोटो भी बहुत वायरल हुई थी। इस बैनर पर स्कूलों और फैक्ट्रियों में हड़ताल करने की अपील की गयी थी। जिनपिंग को तानाशाह बताते हुए हटाने की माँग भी इसमें की गयी थी।
बाहरी चुनौतियाँ
चीन पश्चिम से लेकर एशिया में ही कई चुनौतियाँ झेल रहा है। उसकी विस्तारवादी नीति के चलते दूसरे कई देश उससे नाराज़ हैं। इसके अलावा चीन की अर्थ-व्यवस्था के सामने देश और विदेश में कई चुनौतियाँ हैं। चीन की शून्य कोरोना-नीति और अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव भी जिनपिंग के लिए चुनौती हैं। जिस तरह जिनपिंग को तीसरा कार्यकाल मिला है और उनके आयुपर्यंत चीन का नेता बने रहने की सम्भावना बन गयी, उससे एक बात साफ़ है कि जिनपिंग अपनी विचारधारा पर मज़बूती से चलेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी क़ीमत अर्थ-व्यवस्था को चुकानी पड़ सकती है। अधिकारिक आँकड़े देखें, तो जुलाई से सितंबर के बीच चीन की अर्थ-व्यवस्था पिछले साल के इसी समय के मुक़ाबले 3.9 फ़ीसदी की दर से बढ़ी और अनुमानों से आगे रही।
हालाँकि चीन की अर्थ-व्यवस्था बीते कुछ दशकों में जिस रफ्तार से बढ़ी है उसके मुक़ाबले यह बहुत कम है। मार्च में साल 2022 के लिए चीन ने जो 5.5 फ़ीसदी का लक्ष्य तय किया था, ये उससे भी कम है। इससे पिछले तीन महीनों में अर्थ-व्यवस्था सिर्फ़ 0.4 फ़ीसदी की दर से बढ़ी थी और इसी लिहाज़ से इसे लम्बी छलांग माना जा रहा है। उस समय शंघाई लॉकडाउन में था।
हालाँकि सीपीसी की बैठक में अर्थ-व्यवस्था से जुड़े आँकड़े जारी नहीं विशेषज्ञों ने राय जतायी कि ये अर्थ-व्यवस्था के कमज़ोर होने का संकेत है। सैन्य चुनौतियों की बात करें, तो चीन की सीमा से दुनिया में सबसे ज़्यादा पड़ोसी देश हैं। इनमें अफ़ग़ानिस्तान, भूटान, भारत, क़ज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, लाओस, म्यांमार, मंगोलिया, नेपाल, उत्तर कोरिया, रूस, ताजिकिस्तान और वियतनाम हैं। चीन के ब्रूनेई, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे समुद्री पड़ोसी भी हैं। यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से शायद ही कोई देश होगा, जो चीन के साथ अपने सम्बन्धों को भरोसे की नज़र से देखता हो।