पत्रकार कुमार प्रदीप ने ‘तहलका’ को बताया कि देश की सियासत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। केंद्र सरकार सत्ता के नशे में इस क़दर चूर है कि वह अपनी कमियाँ छिपाने के लिए अपने ही मंत्रियों की जासूसी करवा रही है। इस मामले को लेकर भाजपा और सरकार के बीच भी मनमुटाव और अंतर्कलह बना हुआ है। इससे गम्भीर बात और क्या हो सकती है कि केंद्रीय मंत्री सफ़ार्इ तो दे रहे हैं; लेकिन संसद में बहस से बच रहे हैं। इससे शंकाएँ और गहरी हो रही हैं। अन्य पत्रकारों का कहना है कि इजराइली कम्पनी एनएलओ के स्पाइवेयर के माध्यम से दुनिया भर की सरकारों ने जासूसी की है। लेकिन मामले के इस क़दर तूल पकडऩे के बावजूद सरकार जासूसी मामले की चर्चा तक नहीं करना चाहती। जबकि इजराइल में इसकी गहनता से जाँच हो रही है। इससे भारत की केंद्र सरकार संदेह के दायरे में है। पत्रकारों का कहना है कि उनका धर्म है कि वे सरकार की कमियों को उजागर करें और उससे सवाल पूछें; चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो। लेकिन मौज़ूदा केंद्र सरकार उन्हें अपने निशाने पर ले रही है, जो कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर कुठाराघात है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि कई बार दूसरों की जाँच के ज़रिये अपनी जाँच भी की जाती है। रही बात जासूसी की, तो पहले भी सरकारें जासूसी और फोन टेपिंग करवाती रही हैं। यह सियासत का हिस्सा है। जो भी हो, मगर यह तो साफ़ कि पेगासस जैसे गम्भीर मामले में सडक़ से लेकर संसद तक हुए विरोध को सरकार को सुनना चाहिए और इसे जाँच के दायरे में लाना चाहिए।
रेल, संचार तथा विद्युदाणविकी (इलेट्रॉनिकी) और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि पेगासस मामले में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। विपक्ष बेवजह दबाव बना रहा है।
वहीं कांग्रेस नेता अमरीश रंजन पांडे का कहना है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल महँगाई, पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी के साथ-साथ किसान आन्दोलन की तरह पेगासस जासूसी मामले को चुनावी मुद्दा बनाएँगे। हम सब जनता के समक्ष सरकार की पोल खोलेंगे कि सरकार अपनों की जाँच विदेशी कम्पनियों से करा रही है, जो देश हित में नहीं है।