व्यापारी संजीव अग्रवाल का कहना है कि हाल में ओमिक्रॉन के चलते बाज़ार असमंजस के दौर से गुज़र रहा है। व्यापारियों ने कोरोना महामारी के दौरान बहुत चढ़ाव-उतार देखे हैं। लेकिन इतना डर उनमें कभी नहीं दिखा। आज वे कोई भी बड़ा काम करने से पहले कई दफ़ा सोचने को मजबूर हो रहे हैं कि काम-काज किया जाए अथवा नहीं। बाज़ार मंदी के दौर से गुज़र रहा है और ऊपर से सरकार ने हाल में कपड़ा और जूता सहित कई ज़रूरी सामानों पर जीएसटी थोपने का फ़ैसला लिया है। इससे व्यापारियों में नाराज़गी है। पहले से ही महँगाई बहुत है, इस पर अगर ज़रूरी सामान और महँगा होगा, तो पहले से कमज़ोर हो रखी बिक्री पर बुरा असर पड़ेगा। इसी सरकार ने कहा था कि एक देश-एक कर लगेगा, जिससे व्यापारियों को कर भरने और ग्राहकों को ख़रीद करने में राहत मिलेगी। लेकिन सच तो यह है कि दोनों ही आज मुसीबत में हैं। सरकार को जीएसटी बढ़ाने पर थोड़ा कर (टैक्स) और बढ़कर मिल जाएगा। लेकिन इससे व्यापारी और ग्राहकों पर मार पड़ेगी। इसलिए सरकार को तब तक जीएसटी की ओर ध्यान तक नहीं देना चाहिए, जब तक कोरोना जैसी महामारी का पूर्णतया सफ़ाया नहीं हो जाता।
टैक्स एक्सपर्ट राजकुमार का कहना है कि महँगाई और बेरोज़गारी का दंश तो सदियों पुराना है, जिसका समाधान तो कम हुआ है। लेकिन व्यवधान को तौर पर राजनीति दलों ने जमकर रोटियाँ सेंकी हैं, जिसके कारण समस्या जस की तस बनी हुई है। राजकुमार का कहना है कि महात्मा गाँधी कहा करते थे कि जब तक खेत-खलिहान हरे-भरे नहीं होंगे, तब तक बाज़ार हरा-भरा नहीं हो सकता। इसलिए सरकार को बाज़ार भरने के लिए खेत-खलिहानों पर ध्यान देना होगा। किसानों और गाँवों की समस्या पर ध्यान देना होगा। ताकि गाँव से लोगों का पलायन रुके। गाँव के लोगों के पास आज काम नहीं है, जिसकी वजह यह है कि सरकार गाँव के लोगों के लिए योजनाएँ तो बनाती है; लेकिन उस पर धरातल पर काम हो रहा है कि नहीं, इस पर न सरकार ध्यान देती है और प्रशासन ही ग़ौर करता है। पूर्व की सरकार ने गाँव वालों को रोज़गार मुहैया कराने के लिए मनरेगा योजना को लागू किया है। लेकिन उस पर कितना अमल हो रहा है।
गाँव वालों को रोज़गार मिल रहा है कि नहीं कि अफ़सरों के पेट भर रहे हैं। इस पर ग़ौर करना है। दख़ल देनी होगी। राजकुमार का कहना है टैक्स से ख़जाने से तो भरे जा सकते है; लेकिन ग़रीबी, महँगाई और बेरोज़गार को कम नहीं किया जा सकता है। इसलिए सरकार को चाहिए वे गाँवों पर रोज़गार देने के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा काम करें। गाँव वाले के पास हुनर है, मेहनत-मज़दूरी करने की अपार क्षमता है। दिल्ली सरकार के पूर्व अधिकारी व अर्थ शास्त्री मोती लाल का कहना है कि जब तक देश में जमाख़ोरों के ख़िलाफ़ सरकार कड़ी कार्रवाई नहीं करती है।
तब तक देश में महँगाई सुरसा की तरह मुँह फैलाये खड़ी रहेगी। उन्होंने बताया कि जब अफ़ग़ानिस्तान-तालिबान के बीच गोलाबारी हो रही थी। तब देश के बड़े-बड़े सियासत दान बादाम, अखरोट और दालों की जमाख़ोरी करने में लगे थे। एक माहौल भी बनाया जा रहा था कि देश-दुनिया का आयात-निर्यात प्रभावित हो सकता है। इसलिए दालों के साथ बादाम-अखरोट के दामों में भारी उछाल आया था। महँगाई को बड़े-बड़े व्यापारी प्रोत्साहन देने में लगे थे। मोती लाल कहना है कि जान-बूझकर महँगाई को बढ़ाने का जो प्रयास करते हैं। सरकार को उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा महँगाई जैसी बीमारी देश के ग़रीबों और मध्यम वर्ग को लोगों को ढँसती रहेगी। उनका कहना है कि देश के कुछ पूँजीपतियों के दलाल मौक़े की तलाश में रहते है। वे इतने माहिर होते है कि सर्दी, गर्मी और बरसात में कोई न कोई तरीक़ा निकालकर बाज़ार में महँगाई ला ही देते हैं। जैसे दिसंबर माह में सर्दी के प्रकोप के साथ ही उन्होंने सब्जियों के दामों में इज़ाफ़ा करके अपने जैबे भरी है। जैसे हरी सब्ज़ी के दाम में गोभी की सब्ज़ी सहित अन्य सब्ज़ियाँ को दाम बढ़े हैं। जो कि दिसंबर के पहले सप्ताह तक काफ़ी कम थे।
कुल मिलाकर महँगाई को प्रोत्साहन देने वालें जमाख़ोरों पर जब तक ठोक क़ानूनी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक महँगाई का दंश झेलना ही होगा। उनका कहना कि बेरोज़गारी बढऩे के पीछे सरकार की अनदेखी है, जिसके कारण कई क़ारख़ाने बन्द हो रहे हैं। वजह बतायी जा रही है कोरोना महामारी, जबकि सच्चाई ये है कि निजीकरण के चलते पूँजीपति अपनी तानाशाही के चलते कई कर्मचारियों को मौक़ा-बे-मौक़ा नौकरी से निकाल रहे हैं।