जमाल की जान

‘मैं यह शहर, यह मोहल्ला छोड़ रही हूं।Ó यह

‘जुल्म! मुझ पर क्यों इतना जुल्म। मैं तुम्हें कुछ और ज्य़ादा दे दूंगा। जो कुछ मेरे बैंक में है। वह सब अब तुम्हारा।Ó

‘रु पयों का क्या करना। बेकार-क्या कम और क्या ज्य़ादा।Ó

‘फिर क्या?Ó

‘मैंने अपनी सूरत बदलनी चाही थी लेकिन बदल नहीं पाई।Ó

‘तुम क्या चोर थी।Ó

‘नहीं चोर नहीं, पूरी तौर पर एक रसोइया।Ó

‘फिर क्यों ऐसा बदलाव?Ó

‘नहीं, अचानक नहीं। पिछले हफ्ते उन्होंने ने एक हेल्पर लड़का रहमत को निकाल दिया। अब मेरी बारी होगी। कैंटीन के ये तमाम बेमतलब के लोगों ने यह अनुमान लगा लिया कि मैं मुसलमान हूं। वे पहले मुझे निकाल बाहर करें, मुझे ही उन्हें एक सबक देना चाहिए। एक नायाब सबक। उन्हें अपनी जिंदगी से ही अलग करने का।Ó

‘तुम एक मुसलमान हो? हां…।

‘फिर तुम इतनी डरी हुई क्यों हो। क्या हुआ?Ó

‘मैं इस साले गुंडों-मवालियों से नहीं डरती। लेकिन खुद को मैं इन खूनी लोगों से बचाना चाहती हूं।Ó

‘लेकिन तुम तो महज एक रसोइया हो।Ó

‘ये थर्डक्लास लोग एक मुसलमान माली, या दर्जी या मजदूरी का तो रख लेंगे लेकिन मुसलमान, कतई नहीं।Ó

उसने सिर हिलाया। दुखी हुआ और सोचता रहा।

‘गुंडों की ये सेवाएं हमें जीने नहीं देंगी। घंटों इनके लिए खाना पकाते रहो और नतीजा सिफर।Ó

‘तुम्हारा नाम?Ó

‘रानी, इन वाहियात कैंटीन वालों के लिए। यह मेरा असली नाम नहीं है। मैं यहां से जा रही हूं। अब सुरक्षा का कोई भरोसा नहीं।Ó

‘तुम्हारा शौहर?Ó

‘उसने उसकी आंखों में देखा। फिर कहा, उसे छोड़ दिया। कभी उसके ही साथ भागी थी। लेकिन वह एक जालसाल निकला, उसे छोड़ दिया।Ó उसने कंधे उचकाए। फिर कड़ लहजे से कहा, ‘मैं बिना शौहर के भी गुजर-बसर कर लूंगी, भले कहीं कुछ भी न हो। भले प्यार भरे शब्द न हों। भले कोई स्पर्श न हो, भले ही कुछ भी न हो। मैं नहीं चाहती कि मुझे टुकड़े-टुकड़े काट डाला जाए और शेष ब्रिगेड-सेना वाले जो इधर-उधर घूम रहे हैं वे उसे इधर और उधर फेंकते फिरें।Ó

‘लेकिन तुम एक औरत हो!Ó

‘तो क्या हुआ।Ó

‘ये लोग तुम्हारा बलात्कार कर सकते हैं या …।Ó

‘मैं उन्हें खुद को छूने भी नहीं दूंगी। कोई मुझे नहीं छू सकता।Ó

‘लेकिन तुम अकेली हो।Ó

‘इसीलिए मैं वापस अकबराबाद जा रही हूं।Ó

‘अकबराबाद? वह मेरा कस्बा है। हो सकता है मैं तुम्हारे परिवार को भी जानता होऊं।Ó

‘उसने उसके किसी भी सवाल का फिर जवाब नहीं दिया। हालांकि वह बड़बड़ाता रहा। लेकिन तुम मेरे पास आई। मेरे साथ रही, अपनी खुशी से। क्यों? तुमने ऐसा क्यों किया यदि तुम्हें मुझे छोड़ ही देना था?Ó

निहायत तकलीफ भरी नजरों से उसने उसे देखा।

उस टिकी हुई अजीब सी निगाहों में कुछ वैसा ही था जब लगातार उसे उसी तरह देखती रही जब तक वह झल्लाता हुआ बोल नहीं बोला, मुझे छोड़ कर मत जाओ। मैं तुम्हारी देखभाल करूंगा।Ó

उसने उसे सवालिया निगाहों से एकबारगी देखा ‘कहां था यह उन सालों में जब वह नारकीय जिंदगी जी रही थी।Ó

बेहद कमजोर सी वह कमरे से बाहर को बढ़ी। वह चलती रही। नहीं और कतई नहीं मुड़ी। एक बार भी नहीं। तब भी नहीं जब कि उसने अपना सोचा संभाला वाक्य उछाला। ‘तुम्हें कोई भी वह नहीं दे सकता जो मैंने तुम्हें दिया। मैंने तुम्हें सब कुछ बेहद दिया और बेइंतहा।Ó

‘लेकिन वह चुपचाप उस सूनी गली में चलती रही।Ó

जमल खुद अकबराबाद गया और लौटा। वहां उसे ढूंढता रहा। हो सकता है वह उसे फिर तलाश ले। शायद… और लेकिन वह कहीं नहीं मिली।

जमाल के खानदान मेें ज़रूर कोई एक सदस्य लापता लोगों की सूची में था। वह उस सूची में थी जान बानो। वह बच्ची जिसका हाथ उसने सालों पहले अपने हाथ में लिया था – तब वह किशोर था और वह एक बच्ची।

एक पागल की तरह वह हर किसी से या कहें हर किसी से अकबराबाद की भीतरी और बाहरी गलियों मेें घूमता-बात करता रहा। बड़ी होकर जान बानो कैसी दिखती होगी। क्या वह साडिय़ां पहनती होगी। क्या बालों में प्लेट लगाती होगी? क्या वह खाना पकाती थी। क्या वह दुबली-पतली सी थी। क्या उसके निचले ओठ के पास तिल (मस्सा) था?

कहीं कोई साफ जवाब नहीं।

लेकिन वह जितना ज्य़ादा वह उसके बारे में सोचता वह आश्वस्त होता जाता कि हो न हो, यह वही जान बानो थी। ख्याल और ज्य़ादा ख्याल आते। सालों पहले जब उसने उसका हाथ थाम लिया था तो उसने अपना हाथ उसके हाथ की पकड़ से खींचा नहीं था।

उसने उसे हाथ थामे रहने दिया जब तक वह चाहा। काफी देर तक। यह थी चाहत। बेतरह चाहत। हो सकता है उसने इतने सालों तक उसका इंतजार किया हो। हो सकता है उसने कैंटीन से उसे पहचान लिया हो इसीलिए वह खुशी से उसकी बगल में उसकी तीन पाए की चारपाई पर लेटती।

बाहरी इलाकों में बसी गंवई बस्तियों से जबरदस्त दंगे-फसाद की खबरें आ रही थीं। जमाल बेहद बेचैन हो रहा था। वह तनाव में भी था। हो सकता है उसकी इच्छा हुई हो कि वह अपने कस्बे के घर का हाल-चाल जानने के लिए वापस अकबराबाद जाए। हो सकता है वहां वह अपनी जानबानों को वहां पा जाए। बस, हो सकता है!