संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने विभिन्न राज्यों के किसानों से अपने-अपने राज्यों की राजधानियों में महापंचायत आयोजित करने का भी आग्रह किया है। इस बीच पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के किसान महापंचायत आयोजित करने के लिए दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जुटेंगे। सिंघु बॉर्डर विरोध स्थल पर आयोजित एक बैठक के दौरान आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले 40 किसान संघों के एक छत्र निकाय एसकेएम ने ये फ़ैसले किये हैं। ये कार्यक्रम पूरे भारत में ‘बड़े पैमाने पर आन्दोलन’ के एक वर्ष का आयोजन किये जाने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। एक बयान में साझा किसान संगठन ने कहा कि 29 नवंबर से संसद के शीतकालीन सत्र के आख़िरी दिन तक 500 चयनित किसान स्वयंसेवक ट्रैक्टर-ट्रॉली में हर दिन संसद परिसर के पास शान्तिपूर्वक और पूरे अनुशासन के साथ राष्ट्रीय राजधानी में विरोध करने के अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए जाएँगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि यह ‘इस ज़िद्दी, असंवेदनशील, जन-विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए’ किया जाएगा, ताकि उसे देश भर के किसानों की जायज़ माँगों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सके। पिछले एक साल से यह ऐतिहासिक संघर्ष चल रहा है और तब तक जारी रहेगा, जब तक किसान न्याय हासिल नहीं कर लेते।
किसान मोर्चा ने कहा कि दिल्ली की सभी सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान और अन्य प्रदेशों से बड़ी संख्या में किसानों को जुटाया जाएगा। उस दिन वहाँ (सीमाओं पर) विशाल जनसभाएँ होंगी। इस संघर्ष में अब तक शहीद हो चुके 650 से अधिक किसानों को श्रद्धांजलि दी जाएगी।
यह इस बात का संकेत करता है कि किसान संघर्ष का भविष्य में क्या रास्ता होगा? किसान तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की माँग पर अडिग हैं। क्योंकि उन्हें भय है कि ये क़ानून उन्हें उनके अधिकारों और बेहतर क़ीमत की लड़ाई लडऩे से वंचित कर देंगे। साथ ही यह डर भी है कि यह क़ानून उन्हें ताक़तवर कॉर्पोरेट की दया पर छोड़ देंगे। उन्हें यह डर भी सता रहा है कि क़ानून उनकी फ़सलों की ख़रीद के लिए मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म करने का रास्ता खोल सकते हैं। यह आन्दोलन की बढ़ती गति का प्रमाण है कि आन्दोलन में शामिल महिलाओं, युवाओं और बुज़ुर्गों का मनोबल बहुत ऊँचा है। बड़ी बात यह है कि इस आन्दोलन में किसान परिवार की युवतियों और कई बच्चों ने भी खुले आसमान के नीचे एक लम्बा समय बिताया है और आन्दोलन में बड़ों के साथ-साथ उनकी भागीदारी लगातार और मज़बूती से बनी हुई है। हरदा के गाँव आलनपुर के किसान की बेटी छ: साल की सानिका पटेल को कोई कैसे भूल सकता है; जो खुले मंच से सरकार को अपनी एक कविता से चुनौती दो चुकी हैं। इसी साल 26 जनवरी को किसानों के दिल्ली में प्रवेश को लेकर दिल्ली की सभी सीमाओं को सील करके किसानों पर लाठियाँ बरसवाने वाली सरकार अभी से दिल्ली की सीमाओं पर एक बार फिर पुलिस और अद्र्धसैन्य बलों का पहरा बढ़ा रही है। हाल यह है कि सरकार ने पुलिस के ज़रिये दिल्ली में आने वाली कई सडक़ों पर अवरोधक लगा रखे हैं, जबकि जनता में यह ख़बर फैलाने की लगातार कोशिशें की गयी हैं कि किसान सडक़ों को जाम करके बैठे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी जब किसानों पर सडक़ें घेरकर बैठने का आरोप लगाया, तो हृदय को बड़ा आघात पहुँचा। मैं लगातार दिल्ली की सीमाओं पर जहाँ-जहाँ किसान बैठे हैं, जाता रहा हूँ। किसानों ने इस तरह का कोई अवरोध पैदा नहीं किया है। इस बात के प्रमाण भी कैमरों में कैद हो चुके हैं। सरकार अब भी कोशिश में है कि किसी तरह किसान आन्दोलन खत्म हो; लेकिन सच तो यह है कि इस आन्दोलन के धीमा होने के कोई संकेत नहीं दिखते और इसका एक साल पूरा होने के दिन फिर ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान इसे और गति दे सकता है।