गंगा किनारे जाने के लिए टूटेंगी बनारस की गलियां

राज्य सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए खर्च करके 400 मीटर लंबा एक गलियारा बनाना चाहती है। इससे स्नानार्थियों और तीर्थयात्रियों को गंगा में डुबकी लगाने के बाद फौरन बाबा विश्वनाथ के दर्शन हो सकेंगे।

क ाशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा किनारे तक आने के रास्ते को चौड़ा करने का उत्तरप्रदेश सरकार का इरादा जल्द अमल में आएगा। हांलाकि राज्य सरकार की इस योजना से न केवल निवासी बल्कि बुद्धिजीवी तक निराश हैं और वे विरोध जता रहे हैं।

राज्य सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए खर्च करके 400 मीटर लंबा एक गलियारा बनाना चाहती है। इससे स्नानार्थियों और तीर्थयात्रियों को गंगा में डुबकी लगाने के बाद फौरन बाबा विश्वनाथ के दर्शन हो सकेंगे। गंगा किनारे बस्तियों के रहने वालों का कहना है कि अति महत्वपूर्ण लोगों के लिए गंगा किनारे पहुंंचने और बाबा विश्वनाथ मंदिर में पहुंचने को और आसान बनाने के लिए यह व्यवस्था प्रदेश सरकार कर रही है।

राज्य सरकार के मुख्यमंत्रियों में बाबू संपूर्णा नंद, कमलापति त्रिपाठी जैसे संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के अच्छे जानकार लोगों ने भी सत्ता संभाली लेकिन कभी उन्होंने यह नहीं सोचा कि तंग गलियों से गंगा तक पहुंचना और उन्ही गलियों से बाबा विश्वनाथ के दरबार और दूसरे मंदिरों तक पहुंचने का जो तौर-तरीका सदियों से चला आ रहा है उसे तोड़ दिया जाए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी को जापान के क्योटो नगर की तरह खूबसूरत और आकर्षक बनाने पर तो ज़ोर दिया लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि स्मार्ट शहर बनाने के नाम पर गंगा और विश्वनाथ मंदिर तक ऐसा गलियारा बने जिससे वीवीआईपी अपनी सुरक्षा और फौज-फांटे के साथ तत्काल स्नान और दर्शन की प्रक्रिया पूरी कर सकें।

देश में भाजपा नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार के गठन के बाद धार्मिक तौर पर मशहूर शहरों को जाने के इच्छुक अतिविशिष्ट लोगों का आना-जाना बढ़ा है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे की दिसंबर 2015 में वाराणसी की यात्रा हुई थी। उन्हें गंगा आरती दिखाने का कार्यक्रम बनाया गया था। इस कार्यक्रम के दौरान उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।

प्रदेश में तीन चौथाई बहुमत पाने के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार ने यह फैसला लिया है कि उन 160 मकानों को धराशायी कर दिया जाए जिससे न केवल एक गलियारा फिलहाल बने बल्कि आने वाले दशकों में उसे और विस्तार भी दिया जा सके। जब तोड़-फोड़ की कार्रवाई शुरू होगी तो इसमें कई छोटे-बड़े मंदिर,ऐतिहासिक – सांस्कृतिक महत्व का केंद्र रही इमारतें भी ज़मीदोज़ हो जाएंगी। हांलाकि नगर प्रशासन का कहना है कि सिर्फ एन्क्रोचमेंट को ही हटाया जाएगा।

वाराणसी की धार्मिक-ऐतिहासिक विरासत को कभी मुगलिया सल्तनत भी नेस्तनाबूत नहीं कर सकी। बड़े पैमाने पर दूसरे धर्मों के लागे भी वाराणसी आए और काशी में बसे। अंग्रेजों ने भी सिर्फ  इलाके की सीवरेज व्यवस्था को ही विकसित किया। कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी हमेशा नगर की पुलिस पर ही रही। स्वतंत्रता आंदोलन को तेज रखने में इन्ही गलियों का योगदान हमेशा रहा। पुुलिस और स्वतंत्रता सेनानियों की आंख-मिचौली बरसों काशी की गलियों में चलती रही लेकिन राज्य में सत्ता संभाल रही उत्तरप्रदेश सरकार ने विधानसभा में हासिल बहुमत का पूरा लाभ उठाते हुए इस परियोजना को हरी झंडी दिखाई और उस पर कार्रवाई भी शुरू कर दी है। अपने पांच साल के शासन में इस परियोजना पर अमली जामा पहना लेने का सोचा गया है।

काशी के ही एक वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा विश्वनाथ मंदिर के पास की ही गली में रहते हैं। उन्होंने अपने एक लेख में बताया कि उनका मकान 175 साल से भी पुराना है और वाराणसी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने गलियारा बनाने की योजना के लिए 29 जनवरी को उनके मकान को भी धराशायी करने का मन बना लिया है। शर्मा ने अधिकारियों के न मानने पर आत्मदाह कर लेेने की धमकी दी है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा है, ‘बहुत हो गई भिखमंगी, अब होगी लड़ाईÓ।

शर्मा और इलाके के दूसरे निवासियों ने काशी की धरोहर बचाओ संघर्ष समिति नाम से एक संगठन भी बना लिया है। इस संगठन के लोग इसके जरिए काशी की सांस्कृतिक विरासत बचाए रखने के लिए संघर्ष करेंगे। इसमें समस्त धर्म परायण नागरिक गण शामिल हैं

तकरीबन एक दशक पहले काशी विश्वनाथ परियोजना की रूपरेखा बनी थी। जिसे बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकारों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। जब भाजपा सरकार सत्ता में आई तो सेवा निवृत नौकरशाहों ने इस योजना को बाहर निकलवाया और उस पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मंजूरी भी ले ली।

मुख्यमंत्री ने 31 जनवरी को वाराणसी पहुंच कर पूरी योजना की जानकारी अधिकारियों से ली। वाराणसी विकास प्रधिकरण के सचिव विशाल सिंह इस परियोजना के नोडल अधिकारी हैं। उनका कहना है कि यह गलत सूचना है कि हज़ारों लोग और कई सौ परिवार विस्थापित होंगे। यह भी गलत सूचना है कि कई ऐतिहासिक -धार्मिक स्थल टूटेंगे। उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थों के चलते लोग इस तरह का मिथ्या प्रचार कर रहे हैं। दरअसल ऐसे लोगों के अपने मकान दुकान स्टोर रूम इन धार्मिक-ऐतिहासिक धरोहरों में बने हुए हैं। बड़ी संख्या में लोग मंदिरों में भी रहते हैं। ऐसे लोगों से ऐतिहासिक – धार्मिक महत्व के स्थलों को मुक्त कराया जाएगा।

गंगा किनारे गलियों का घना घेरा

काशी की गलियां ऐसी हैं जहंा दिन-दोपहरी में भी उजास नहीं पहुंचती । कुछ गलियां इतनी पतली हैं कि दो आदमी एक साथ नहीं गुजऱ सकते। जो बंबई-कलकत्ता की सड़कों पर खो जाने से डरते हैं वे यदि काशी की गलियों में चक्कर काटें तो दिन भर वे  चक्कर काटेंगे पर भूल जाएंगे कि उन्होंने कहां से गली की शुरूआत की थी। कई गलियोंं में तो काफी दूर आगे जाने पर रास्त भी बंद मिल सकता है। नतीजा यह होगा कि आपको फिर गली की उस छोर तक वापस आना पड़े जहां से गड़बड़ा कर आप मुड़ गए थे। कुछ गलियां ऐसी हैं कि आगे बढऩे पर मालूम होगा कि आगे रास्ता बंद है। लेकिन गली के छोर पर पहुंचने पर देखेंगे कि बगल में एक पतली गली सड़क से जा मिली है। गलियों का तिलिस्म इतना रहस्यमय है कि बाहरी की कौन कहे इसी शहर के वशिंदे भी जाने में हिचकते हैं। कुछ तो गलियां ऐसी है जिनमें बाहर निकलने के लिए किसी दरवाजे या मेहराबदार फाटक के भीतर से गुजरना पड़ता है।

कहते हैं कि यहां कई ऐसी भी गलियां हैं जिनसे बाहर निकलने के लिए चार से चौहद रास्ते हैं। जिस गली से आप घर पहुंच सकते हैं उसी से आप श्मशान या नदी के किनारे भी जा सकते हैं।

सोचिए यदि इन गलियों में कभी शंकर भगवान के किसी वाहन से मुलाकात हो जाए और अचानक किसी बात से नाराज़ हो कर वह आपको हुरपेट ले तो जान बचाकर भागना भी मुश्किल हो जाए । और फिर उन गलियों में जो आगे रास्ता बंद हो। आप पीछे भाग नहीं सकते आगे रास्ता बंद है।  अगल-बगल के सभी मकानों के भीतर लोहे की भारी सांकल लगी हैं उधर सांड महराज हुरेपेट आ रहे है। अगर बीमा कंपनियां उचित समझे तो बीमा एजेंट इन गलियों में ज़रूर भेजे। फिर गंदगी की बात तो कहां नहीं है। हर शहर गंदा है वहीं बनारस की कुछ ही गलियां चकाचक हैं।

जिन गलियों में सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती, बरसात के मौसम का भी पता नहीं चलता वहां भी लोग यदि छता लगा कर चलते हैं तो कारण है गंदगी। बनारसी गली में तीन मंजिलें, चार मंजिलें से बिना नीचे देखे पान की पीक थूक सकता है, पोंछे का पानी फैंक सकता है, कूड़े का अंबर गिरा  सकता है। इस सत्कार्य में लिसड़ा व्यक्ति जब गालियां देता है तो सुनकर भाई लोग प्रसन्न होते हैं।

बंदरों के लिए गलियां प्रिय क्रीड़ा स्थल है। ऐसी घटनाएं सुनने में आती हैं कि अचानक छत से एक बड़ा रोड़ा सिर पर आ गिरा और बड़ी आसानी से स्वर्ग में सीट रिजर्व हो गई।