खूंटे से बंधी जम्हूरियत

मनीषा यादव

दोनों ने लंबा हाथ मारा था. मगर पहली बार सफलता पर खुश होने के बजाय वे दोनों बुरी तरह डरे हुए थे. एक-दूसरे का चेहरा देखते, जब उकता जाते तो लाए हुए माल का ख्याल आता. और जैसे ही उस पर नजर फेंकते, भीतर का डर और सघन हो जाता.

‘बहुत बड़ी गलती हो गई!’ उनमें से एक बोला. ‘गलती नहीं गुनाह…!’ दूसरा बोला. फिर दोनों के बीच देर तक खामोशी पसरी रही. इधर उनके चोरी के माल यानी भैंसों के बीच भी बातचीत हो रही थी.

‘कमाल है न!’ मुर्रा भैंस बोली. ‘क्या बहन, क्या!’ साहीवाल भैंस बोली. ‘यही कि ये दोनों अपराध पहले भी करते रहे हैं, मगर आज पहली बार अपराध को अपराध कह रहे हैं और कबूल भी कर रहे हैं.’ ‘वो इसलिए दीदी कि अब आया है ऊंट पहाड़ के नीचे.’ ‘नहीं, नहीं इसकी जगह ये कहो बहन कि इनका तो सब गुड़ गोबर हो गया…’ ‘ही-ही-ही.’ ‘खी-खी-खी.’

‘तू भी अक्ल के पीछे लठ्ठ लिए फिरता है… सेंध मारने से पहले पता लगाना चाहिए था कि नहीं!’ ‘यार, मुझे क्या मालूम था कि शहर से दूर यह फार्म हाउस किसका है!’ ‘ऊपर वाले का भी विधान समझ में नहीं आता…’ ‘वो क्या!’ ‘गरीब के घर चोरी के लिए कुछ होता नहीं, अमीर के घर चोरी करने को मिलता नहीं…’ ‘अब हम बचेंगे नहीं!’ ‘कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा!’

‘बचने का रास्ता ढूंढ़ रहे हैं बच्चू!’ गदराई भैंस बोली. ‘जानती हो दीदी, जब ये हमें यहां ले कर आ रहे थे, तब हमें जोर-जोर की हंसी आ रही थी.’ नवयौवना भैंस बोली. ‘क्यों भला!’ ‘यही कि यह हमें ढोर-डंगर समझ रहे हैं.’ ‘ऐसे ही मूर्खों के लिए तो कहा गया है… काला अक्षर भैंस बराबर!’ ‘ही-ही-ही.’ ‘खी-खी-खी.’

‘ठीक ही सुना था, क्या!’ ‘यही कि कानून के हाथ लंबे होते हंै!’ ‘लेकिन हम यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठे भी तो नहीं रह सकते…’ ‘न जाने किस मनहूस घड़ी में चोरी करने चले थे!’ ‘सुना है कि कई थानों की पुलिस आ गई है!’ ‘पुलिस! अबे क्राइम ब्रंाच, सीआईडी वाले, सूंघने वाले कुत्ते तक आ चुके हैं… तीन पुलिसवाले तो लाइन हाजिर भी कर दिए गए हंै… छापे पे छापे पड़ रहे हैं! ऐसे तो पुलिस खूनी-आतंकवादी के पीछे नहीं पड़ती है, जैैसे हमारे पीछे पड़ी हुई है! ‘कसम है! अब जो आगे से चोरी की तो!’

‘इससे पहले तो कभी पुलिस- वाले यूं हाथ धो के हमारे पीछे नहीं पड़े…’ ‘…तो इससे पहले हमने कब किसी मंत्री के यहां हाथ मारा था!’ ‘भैंसंे मिल जाएं, तो शायद पुलिसवाले हम पर रहम कर दें.’  ‘मुझे तो आंखों के आगे अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा है…’ ‘अंधेरे में इन भैंसों को हम आजाद कर देगें! तब शायद हमारी जान बच जाए.’

अरे यह क्या! यहां तो ‘हाथ आया मुंह न लगा’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. चोर चोरी के माल को अपने कब्जे से स्वत: मुक्त करने जा रहे हैं. अब जब वे दोनों भैंसों को बंधनमुक्त कर रहे हैं, तब भैंसें उत्साह और गर्व से जोर-जोर से नारे लगा रही हैं.

‘हम कोई उठाई हुई साइकिल नहीं!’ ‘हम कोई छिनी हुई चेन नहीं! ‘हम कोई छेड़ी हुई लड़की नहीं!’ ‘हम कोई जली हुई झोपड़ी नहीं!’ ‘हम कोई विस्थापित नहीं!’ ‘हम कोई राहत शिविर नहीं!’ ‘हम कोई ठंड से मरते शिशु नहीं!’ ‘हम कोई गरीब की लुगाई नहीं!’ ‘हम कोई दंगाई नहीं!’

इस वक्त भैंसें आजाद हो गई हैं और आजाद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के एकल दिशा मार्ग पर कूल्हे मटकाते हुए उनका झुंड बड़ी बेफिक्री से अपने ठिकाने की ओर चला जा रहा है.