खुला खेल

संघ की भूमिका में बदलाव भी देखने को मिले. बिहार-झारखंड के बंटवारे के पहले संघ परिवार का सबसे ज्यादा ध्यान दक्षिण बिहार यानी वर्तमान झारखंड वाले इलाके में हुआ करता था. उसी इलाके में संघ के विभिन्न संगठनों के बड़े आयोजन भी हुआ करते थे. लेकिन हालिया वर्षों में संघ परिवार की ऊर्जा झारखंड की बजाय बिहार के इलाके में ज्यादा लगी हुई दिखी. विश्व हिंदू परिषद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं, ‘हमलोगों को बहुत पहले से ही पता था कि नीतीश भाजपा के साथ लंबे समय तक नहीं चलने वाले हैं, इसलिए बिहार जैसे प्रदेश में हमलोगों ने पहले से ही पूरी तैयारी शुरू कर दी थी और उसी हिसाब से तैयारी भी कर रहे थे.’

संघ के कुछ लोग बताते हैं कि इस बार बिहार-झारखंड जैसे राज्य में चुनाव के वक्त राजनीतिक दर्शन का मार्गदर्शन करने के लिए खुद संघ के तीसरे नंबर के पदाधिकारी कमान संभाले हुए थे. हालांकि आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि कोई नहीं करता. बताया जाता है कि उनके ही हस्तक्षेप से सुपौल से राम जन्मभूमि के शिलान्यासकर्ता कामेश्वर चौपाल जैसे संघी स्वयंसेवक को इस बार टिकट आसानी से मिल सका और कई जगहों पर टिकट बंटवारे में गहरा असंतोष होने के बावजूद कहीं विरोध के कोई स्वर नहीं उभरे.

इस बार बिहार में लोकसभा चुनाव में जिस तरह संघ परिवार की सक्रियता दिखी, उससे यह साफ हुआ कि भाजपा की तैयारी भले ही नीतीश कुमार से आधिकारिक तौर पर अलगाव के बाद शुरू हुई हो, लेकिन संघ की तैयारी पुरानी थी, जिसका फलाफल लेने की कोशिश में भाजपा लगी हुई है.

29 और 30 नवंबर 2012 राजधानी पटना के एक प्रतिष्ठित सरकारी अध्ययन व अनुसंधान संस्थान का वह आयोजन संघ परिवार की तैयारियों की ओर संकेत देता है जब संस्कृति के नाम पर हुए एक आयोजन में विश्व हिंदू परिषद के मुखिया अशोक सिंघल, सुब्रहमण्यम स्वामी, उमा भारती समेत कई नेताओं ने पटना पहुंचकर हिंदुत्व के उभार के लिए आग उगली थी और एक तरह से भाजपा के पक्ष में एक माहौल बनाने की कोशिश की थी. यह वह समय था, जब बिहार में मजे से भाजपा और जदूय साथ मिलकर सरकार चला रहे थे और दोनों के बीच अलगाव की कहीं कोई आहट तक नहीं थी. पटना में वह दो दिनी आयोजन संस्कृति को ढाल बनाकर हुआ था. तभी साफ संकेत मिल गए थे कि दक्षिण बिहार में सक्रिय रहने वाली संस्थाएं अब बिहार में सक्रिय हैं और बिहार को हिंदुत्व का नई प्रयोगशाला बनाने की राह पर हैं. संकेत पहले भी मिले थे लेकिन स्पष्टता और अस्पष्टता के बीच के. बेगुसराय के सिमरिया में अर्द्धकुंभ हुआ तो उसे धार्मिक आयोजन की परिधि में बांधा गया था. उस धार्मिक आयोजन में भी प्रवीण तोगडि़या धार्मिक गर्जना की बजाय कुछ और ही बोलकर निकले थे. राष्ट्रीय जनता दल के अब्दुल बारी सिद्दिकी कहते हैं,  ‘अचरज जैसी कोई बात नहीं. बिहार में जब से एनडी सरकार बनी थी, तोगडि़या, सिंघल आदि आते रहते थे, अपनी बात बोलते रहते थे. राजगीर में ही संघ ने अपना राष्ट्रीय सम्मेलन भी किया था. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपना राष्ट्रीय अधिवेशन भी बिहार में किया था और सूर्य नमस्कार को लेकर विवाद पैदा होने के बावजूद बिहार में डंके की चोट पर बड़े आयोजन हुए थे और नीतीश कुमार कुछ नहीं कर सके थे.’

विश्व हिंदू परिषद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी इन सभी सवालों को सामने रखने पर कहते हैं, ‘आप हमारे गणित को इतनी आसानी से नहीं समझ पाएंगे. फोरम फॉर इंटिग्रेटेड नेशनल सिक्यूरिटी या सीमा जागरण मंच जैसे संस्थाओं के बारे में कितना जानते हैं? ये संस्थाएं संघ की छतरी तले चलने वाले संगठन ही हैं और सालों भर सीमा की रक्षा-सुरक्षा के नाम पर अपना काम करते हैं. आप किस-किस के काम को समझिएगा. पांच दर्जन संस्थाएं एक साथ अलग-अलग दिशा में काम करती हैं और सबका मकसद एक होता है. इस बार सभी संस्थाएं अपने-अपने हिसाब से सक्रिय रहीं.’

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