सवाल यह है कि जब देश में डेटा चोरी की घटनाएँ आम हो चली हैं और इस मामले को लेकर सरकार को भी अच्छी तरह पता कि देश के नागरिकों का डेटा चोरी हो रहा है, तो फिर लापरवाही क्यों बरती गयी? फेसबुक डेटा लीक होने के बाद से विश्व के कई देशों ने फेसबुक पर प्रतिबंध लगा दिया। कई देश अपने नागरिकों के डेटा को सुरक्षित करने के लिए निगरानी रख रहे हैं, तो भारत सरकार अपने नागरिकों को लेकर इतनी लापरवाह क्यों है? कई बार डेटा आधार से लिंक होने को लेकर सवाल उठाये जा चुके हैं। क्या भारत सरकार देश के नागरिकों की निजता को सँभालने में नाकाम है? या फिर चोरी हुए चार करोड़ के डेटा का इस्तेमाल मिलीभगत से कहीं हो रहा है? विशेषज्ञ तो यह तक मानते हैं कि स्मार्ट फोन उपभोक्ताओं को सबसे ज़्यादा ख़तरा है।
किसी भी व्यक्ति के डेटा की पूरी जानकारी ऐप कम्पनियों, व्हाट्स ऐप, फेसबुक आदि को होती है। ये कम्पनियाँ उस डेटा को थर्ड पार्टी तक पहुँचाने के गम्भीर आरोपों से घिर चुकी हैं। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय भी संज्ञान ले चुका है; लेकिन अभी तक भारत सरकार की नींद नहीं टूटी है। एक अध्ययन के अनुसार, स्मार्ट फोन में चलने वाले 70 $फीसदी से अधिक ऐप स्मार्ट फोन के उपभोक्ताओं की जानकारी ये ऐप कम्पनिया थर्ड पार्टी को बेच रही हैं। थर्ड पार्टी इस डेटा का इस्तेमाल फ़र्ज़ी लाइक्स बेचने, लोन लेने, व्यक्ति की अपनी निजी और गोपनीय जानकारी चुराने, बैंक से पैसे उड़ाने, व्यक्ति के निजी जीवन पर नज़र रखने, मोबाइल में चल रही गतिविधियों पर नज़र रखने, अंडरवर्ड और आतंकवादी संगठनों तक जानकारी पहुँचाने तक का काम कर सकती हैं। इसलिए जिन लोगों ने एम्स में कभी अपना रजिस्ट्रेशन कराया हो, वे गैर-ज़रूरी ऐप एक्सेस डिसेबल करें। दो ईमेल आईडी रखें। बैंक कम्यूनिकेशन वाले आईडी को मोबाइल से कनेक्ट न करें। साइबर कैफे या किसी अन्य के कम्प्यूटर पर अपने डाक्यूमेंट न रखें।