क्या राहुल पर भारी पड़ेंगी प्रियंका?

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से यह साफ़ हो गया है कि पार्टी नेतृत्व अब अनुशासन के साथ-साथ ज़मीनी स्तर पर भी सक्रियता बढ़ाना चाहता है। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस आने वाले समय में देश के विभिन्न मुद्दों को लेकर बड़ा आन्दोलन शुरू करने की तैयारी कर रही है। राहुल गाँधी जिन युवा नेताओं को कांग्रेस में ला रहे हैं, उनकी एक टीम बनाकर वे आन्दोलन खड़ा करना चाहते हैं। चूँकि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव अगले साल है, इसलिए सम्भावना यही है कि यह आन्दोलन उसके बाद ही शुरू होगा। यदि राहुल गाँधी इससे पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनने को तैयार हो जाते हैं, तो हो सकता है कि अगले साल के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह आन्दोलन शुरू हो।

कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि भाजपा इन चुनावों में उतनी सफलता हासिल नहीं कर पाएगी। ऐसा सोचने के पीछे कांग्रेस के अपने कारण हैं। हालाँकि इसके लिए अब वह ख़ुद को सक्रिय करना चाहती है, ताकि यूपीए के सहयोगी दलों के सहारे से बाहर निकलकर अपनी ज़मीन मज़बूत कर सके। कुछ राज्यों में तो हालत यह है कि वह सहयोगी दलों की पिछलग्गू मात्र बनकर रह गयी है। पार्टी इस स्थिति से ख़ुद को बाहर निकालना चाहती है। इसके लिए ज़रूरी है कि वह ख़ुद को राज्यों में खड़ा करे।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कोशिश ज़्यादा-से-ज़्यादा राज्य जीतने की है। इसके लिए वह इस बार नये तेवर के साथ चुनाव में दिखेगी। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपने युवा नेताओं, जिनमें महिला नेता भी हैं; को इस बार चुनाव में विशेष रणनीति के तहत मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है। इनमें वे नेता शामिल रहेंगे, जो केंद्र सरकार की नीतियों पर तथ्यों के साथ जबरदस्त आक्रमण कर सकते हों। उनकी बाक़ायदा एक टीम बनाकर उन्हें चुनाव प्रचार में झोंका जाएगा।

पार्टी उत्तर भारत के क्षेत्र में यहाँ के तेवर वाले जबकि दक्षिण, पश्चिम और उत्तर पूर्व क्षेत्र में वहाँ के तेवर वाले नेताओं को ज़िम्मा सौंपेगी। राहुल गाँधी इस तरह की टीम बना रहे हैं। अब यह साफ़ हो गया है कि राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी की सक्रियता ने कांग्रेस में निराशा से भरे वरिष्ठ असन्तुष्ट धड़े को ख़ामोश कर दिया है और वह अब महसूस करने लगा है कि युवा नेतृत्व के साथ आगे जाने का प्रयोग ठीक रहेगा।

 

नेतृत्व सँभालने की कशमकश

लखीमपुर में प्रियंका गाँधी ने जो झलक दिखायी है, उसका व्यापक असर कांग्रेस के भीतर और बाहर विपक्ष तक में हुआ है। राहुल और प्रियंका गाँधी की इस आक्रामक सक्रियता ने कांग्रेस के भीतर उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में नये प्राण फूँक दिये हैं। देखा जाए, तो आज देश भर में पूरे विपक्ष में ऐसा कोई नेता नहीं, जो इस तरह के तेवर के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की आक्रामक शैली का मुक़ाबला कर सके। कांग्रेस के पास नेतृत्व की यह बढ़त ज़रूर दिखने लगी है, जिसका उसे लाभ मिलेगा। कांग्रेस के सहयोगी दलों में राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व का वास्तव में टोटा है। शरद पवार जैसे नेता हैं; लेकिन आयु और स्वास्थ्य उनके आड़े हैं।

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को छोड़ दें, तो यूपीए दलों में ऐसा कोई नहीं, जिसके पास राष्ट्रीय छवि वाले नेता हों। टीएमसी चूँकि यूपीए का हिस्सा नहीं है, कांग्रेस को इस मामले में राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के रूप में बढ़त है। वैसे यह माना जाता है कि टीएमसी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए से ज़्यादा तीसरे मोर्चे पर फोकस करती रही है। यहाँ तक कि हाल के महीनों में उसने कांग्रेस के नेताओं को तोडक़र अपने साथ मिलाया है। दूसरे ममता बनर्जी की अपनी महत्त्वाकांक्षाएँ हैं, जिन्हें वह और उनकी पार्टी सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर करते रहे हैं। देखा जाए, तो टीएमसी वास्तव में कांग्रेस की राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं की राह में सहयोगी सी है। हाँ, यह हो सकता है कि अगले लोकसभा चुनाव में यदि कांग्रेस राष्ट्रीय फलक पर फिर उभरे तो टीएमसी उसके साथ चली जाए। कांग्रेस अब राज्यों में सरकारें बनाकर नेतृत्व वाली बढ़त को और मज़बूत करना चाहती है। लिहाज़ा वह इन चुनावों में पूरी ताक़त झोंकेगी। उसे पता है कि यदि वह चुनावी राजनीति में अब भी नाकाम रहती है, तो उसके सहयोगी दल छिटककर तीसरे मोर्चे में जा सकते हैं, जिसके अगले साल के आख़िर तक या 2023 में आकार लेने की सम्भावना है।

राज्यों में अभी भी ऐसे कई क्षेत्रीय दल हैं, जो वास्तव में भाजपा के एनडीए या कांग्रेस के यूपीए में से किसी के साथ नहीं हैं। लिहाज़ा तीसरे मोर्चे के गठन के लिए दलों की कमी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस अभी से ज़मीन पर उतरने की तैयारी कर रही है, ताकि यूपीए की ताक़त के मज़बूत किया जा सके। अगला साल कांग्रेस के लिए काफ़ी अहम है। उसे आधा दर्ज़न से ज़्यादा विधानसभा चुनाव का सामना करना है। नया अध्यक्ष चुनना है और उसके बाद पुराने, नये और युवा लोगों के साथ संगठन को नया रूप देना है। यह चुनौती वाला काम होगा। लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि राहुल और प्रियंका की टीम में नये लोगों की भरमार होगी।

 

“यदि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है, तो 12वीं पास छात्राओं को स्मार्ट फोन और स्नातक पास छात्राओं को इलेक्ट्रॉनिक स्कूटी दी जाएगी। हम पहले ही 40 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को देने का वादा कर चुके हैं। मैं कुछ छात्राओं से मिली। उन्होंने बताया कि उन्हें पढऩे और सुरक्षा के लिए स्मार्टफोन की ज़रूरत है। मुझे ख़ुशी है कि घोषणा समिति की सहमति से उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने निर्णय किया है कि सरकार बनने पर इंटर पास लड़कियों को स्मार्टफोन और स्नातक की लड़कियों को इलेक्ट्रॉनिक स्कूटी दी जाएगी। हमारा पूरा फोकस जनता के मुद्दों पर है। प्रदेश में जिस तरह लोगों की हत्याएँ हुई हैं। क़ानून व्यवस्था का दिवाला पिटा है। इस स्थिति को सत्ता में आकर हम बदल देंगे।”

प्रियंका गाँधी

कांग्रेस महासचिव (ट्विटर पर)

 

“हमारे सामने कई चुनौतियाँ आएँगी; लेकिन अगर हम एकजुट और अनुशासित रहते हैं और सिर्फ़ पार्टी के हित पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो मुझे पूरा विश्वास है कि हम अच्छा करेंगे। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए हमारी तैयारियाँ आरम्भ हो चुकी हैं।”

                                             सोनिया गाँधी

कांग्रेस अध्यक्ष (सीडब्ल्यूसी में)

 

जी-23 का अस्तित्व ख़त्म!

अक्टूबर में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में जैसे तेवर अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने दिखाये, उससे ज़ाहिर हो गया है कि पार्टी के बीच असन्तुष्ट गतिविधियों के लिए अब जगह मुश्किल होगी। उसका असर भी साफ़ दिख रहा है। कथित नाराज़ नेता शान्त हो गये हैं। दूसरे पार्टी अध्यक्ष ने इनमें से कुछ को पार्टी के बीच ओहदे देकर शान्त कर दिया है। जो इक्का-दुक्का विरोध में बचे भी हैं, वे अलग-थलग पड़ चुके हैं। कार्यसमिति की बैठक में यह कथित असन्तुष्ट जिस तरह अलग-थलग दिखे, उससे ज़ाहिर हो गया कि अब चीज़ें बदल चुकी हैं।

गुलाम नबी आज़ाद को सोनिया गाँधी पार्टी में अहम भूमिका दे चुकी हैं, जबकि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को उत्तर प्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी में सदस्य तो बनाया ही गया है। हाल में लखीमपुर खीरी में जिस तरह प्रियंका गाँधी ने उन्हें अपने साथ रखा, उससे पार्टी में उनका महत्त्व बढ़ा है। कार्यसमिति की बैठक में आज़ाद ने मुक्त कण्ठ से सोनिया गाँधी के नेतृत्व की तारीफ़ की और हाल के अपने रूख़ के विपरीत नेतृत्व का कोई सवाल नहीं उठाया। आनंद शर्मा को भी सोनिया गाँधी ने असन्तुष्ट ख़मे से बाहर निकालने के लिए महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ देने का सूत्र अपनाया। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी कांग्रेस के नाराज़ नेताओं में शामिल थे। लेकिन भूपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस की कुछ महत्त्वपूर्ण कमेटियों में ज़िम्मेदारी दी गयी है। याद रहे इसी साल जब गुलाम नबी आज़ाद की जम्मू में एक रैली हुई थी; जिसमें हुड्डा ख़ासतौर पर शामिल हुए थे। उस रैली को कांग्रेस के असन्तुष्टों के शक्ति परीक्षण के रूप में प्रचारित किया गया था। हुड्डा की तरह ही महाराष्ट्र के नेता मुकुल वासनिक को कांग्रेस की कई अहम समितियों में स्थान देकर महत्त्व दिया गया है। पिछले कुछ समय से वे असन्तुष्ट ख़मे से पूरी तरह कट चुके हैं। उधर वरिष्ठ नेता और कई बार मंत्री रह चुके वीरप्पा मोइली तो पहले ही असन्तुष्टों से कट गये थे, जब उन्होंने कहा कि जी-23 नेताओं वाली चिट्ठी पर उन्होंने एक काग़ज़ पर दस्तख़त कांग्रेस को नुक़सान करने के लिए नहीं, बल्कि मज़बूत करने के समर्थन के लिए किये थे।