किल्वेनमनी हत्याकांड को इसी के प्रतिशोध की घटना कहा जाता है. इन सवर्ण किसानों के इशारे पर उनके कुछ लोगों ने 25 दिसंबर, 1969 को किल्वेनमनी में दलितों की एक बसाहट पर हमला बोल दिया. एक भवन जिसमें कई दलित परिवार इकट्ठे हुए थे, में इन लोगों ने आग लगा दी. स्वतंत्र भारत में दलितों के ऊपर हमले की यह पहली बड़ी घटना थी. ताज्जुब की बात है कि उस समय की अन्नादुरई सरकार (डीएमके) ने इस मामले पर कार्रवाई करने में शुरुआती हिचक दिखाई और यह घटना सुर्खियों में तब आ पाई जब विधानसभा में सीपीआई के नेताओं से इससे जुड़े सवाल पूछे. लेकिन इस घटना को सीपीआई दलित बनाम सवर्ण के बजाय वर्गीय संघर्ष की तरह पेश कर रही थी हालांकि राज्य के इतिहास को देखते हुए इस घटना को जातिगत उत्पीड़न की तरह ही देखा गया.
किल्वेनमनी हत्याकांड का सबसे हैरान करने वाला पहलू यह था कि जिला न्यायालय ने हत्याकांड के लिए आठ लोगों को दोषी ठहराया. लेकिन जब इन लोगों ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की तो अदालत ने इन सभी को निर्दोष करार दे दिया और इस तरह दिन दहाड़े हुए हत्याकांड में एक भी व्यक्ति दोषी नहीं ठहराया जा सका.