जानकारी के मुताबिक जी-23 के नेताओं का सुझाव है कि सोनिया गांधी को ही स्थाई अध्यक्ष चुन लिया जाए। राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता बना दिया जाए ताकि सरकार के प्रति उनके विरोध की आवाज का दायरा ज्यादा विस्तृत हो जाए। हाल के महीनों में राहुल गांधी ने देश के गंभीर मुद्दों के प्रति जैसी आवाज उठाई है, उससे कई लोग प्रभावित हुए हैं। भाजपा भले न माने, राहुल गांधी ने जिन मुद्दों को उठाया है या जो सुझाव हाल में दिए हैं, यह देखा गया है कि मोदी सरकार ने उन्हें अमल में लाया है भले इसका श्रेय खुद लिया हो।
प्रियंका गांधी अब कांग्रेस में बहुत सक्रिय भागीदारी निभाने लगी हैं और उनके फैसलों से पार्टी के भीतर वरिष्ठ नेता बहुत प्रभावित हैं। अहमद पटेल की मृत्यु के बाद कांग्रेस के सामने ‘संकटमोचक’ का जो गंभीर संकट कांग्रेस के सामने उठ खड़ा हुआ था, प्रियंका धीरे-धीरे उस कमी को पूरा करने करने की तरफ बढ़ चुकी हैं। उनमें नेताओं को मनाने और सर्वमान्य फैसला स्वीकार कराने की गजब की क्षमता है और निर्णय लेने में वो देर करना पसंद नहीं करतीं।
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा वरिष्ठ नेताओं से बैठक से देश में यह सन्देश गया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अब माहौल ढलने लगा है और कांग्रेस मुख्य भूमिका में आ सकती है। प्रशांत किशोर की छवि और स्वीकार्यता ही ऐसी बन गयी है कि उनके कांग्रेस नेतृत्व से मिलने से जनता में कांग्रेस के प्रति बहुत सकारात्मक सन्देश गया है।
प्रशांत किशोर की कांग्रेस के भीतर सक्रियता बहुत दिलचस्प है। प्रशांत ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर घोषित करने और समाजवादी कोई चुनावी गठबंधन न करने की सलाह दी थी। हालांकि, कांग्रेस ने उनकी सलाह पर अमल नहीं किया था। अब जबकि प्रियंका गांधी पूरी तरह यूपी में सक्रिय हो गयी हैं और प्रशांत किशोर कांग्रेस के भीतर दिखने लगे हैं, प्रियंका को कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अगले साल के विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका के लिए चुन सकती है। यह भी संभव है कि प्रशांत किशोर यूपी में फिर कांग्रेस के रणनीतिकार के रूप में दिखें !
कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के तौर पर अब मुख्य केंद्रीय भूमिका में आना चाहती है। उसके पास अगले साल कुछ विधानसभा चुनाव जीतने का बहुत मजबूत अवसर है जहाँ उसका मुकाबला सीधे भाजपा से होना है। कांग्रेस हर हालत में अब जीतने की नीति पर चलकर खुद को राज्यों में मजबूत करना चाहती है ताकि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की एकता की धुरी बन सके और उसका नेतृत्व कर सके। देखना है कि कांग्रेस खुद में कैसे बदलाव लाती है, क्योंकि राजनीतिक दलों ही नहीं देश की जनता की भी अब इसपर नजर लगी हुई है।