कांग्रेस का भविष्य अब युवा सबको साथ लेकर चलेंगे

सात साल बाद आयोजित कांग्रेस के महाधिवेशन में पहली बार बतौर अध्यक्ष मुखातिब राहुल गांधी पूरी तरह मोदी सरकार पर हमलावर रहे। उन्होंने 2019 के चुनाव को रूपक की तरह गढ़ते हुए ‘धर्मयुद्ध’ की संज्ञा दी। खुशदिल श्रोताओं को बड़ी बेबाकी से इत्मीनान दिलाते हुए राहुल ने कहा कि ‘देश अब झूठी उम्मीदों पर नहीं जिएगा?’ नवविहान की किस्सागोई शैली में उन्होंने कहा,’सारा दारोमदार नई टीम पर होगा जो सबको साथ लेकर चलेगी…. अंतर्विरोधों को खारिज करते हुए उन्होंने शिद्दत से अहसास दिलाया कि,’अब कांग्रेस का भविष्य युवा है….’

यह एक ऐसा करारा जवाब था जो बेशक बेहिसाब सवालों की झड़ी लगा रहा था कि, ‘साल 2019 का लोकसभा चुनाव हम जीतेंगे….!’ आंतरिक शक्ति के साथ खड़े राहुल गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू के इस शाश्वत कथन को तरोताजा कर रहे थे कि,’इतिहास में ऐसे क्षण दुर्लभ होते हैं, जब हम पुराने से नए में जाते हैं। जब एक युग का अंत होता है और लंबे समय से दमित सोच को नई अभिव्यक्ति मिलती है।ÓÓ कांग्रेस के महाधिवेशन में सवालों को समेटने के लिए राहुल गांधी ने उस उत्कंठा को चुनने की पहल की कि,’…..मंच को खाली क्यों रखा गया है?’ उन्होंने इसे युवाओं के लिए’नज़रानाÓ परिभाषित करते हुए कहा,’यह मंच नौजवानों के लिए खाली रखा गया है ….’ उन्होंने तथ्यों और तर्कों के ज़रिए कहा, हम युवा और बुजुर्गों का तालमेल कर अपनी पूंजी बनाएंगे और साल 2019 में बताएंगे कि चुनाव कैसे जीते जाते हैं?ÓÓ उनके आह्वान में चुटीली खनक खासा तंज कसने वाली थी कि,’देश झूठी उम्मीदों पर जियेगा या सच का सामना करने वालों का साथ देगा?’ पार्टी पुरोधाओं का चित्रविहीन मंच साफ तौर से कांग्रेस में युग परिवर्तन के मंसूबों पर मुहर लगाने वाला था कि,’कांग्रेस अपना युवा भविष्य गढऩे को तत्पर है…’

‘वक्त है बदलाव काÓ थीम पर आधारित इस महाधिवेशन में राहुल गांधी ने भाजपा की परिकल्पना कौरवों और कांग्रेस की पांडवों से करते हुए अपने सुरों को तीखा किया ‘लोकसभा चुनाव सत्य और असत्य का महासंग्राम होगा जिसमें एक तरफ कौरवों की तरह अहंकार के मद में चूर भाजपा है तो दूसरी ओर सब कुछ हारे हुए पांडव हैं जिनके पास विनम्रता, साहस और शौर्य है।

हालांकि राहुल गांधी का भाषण अपनी नई टीम के गठन, सबको संग-साथ लेकर चलने की रूपरेखा और राजनैतिक मुद्दों के इर्द-गिर्द ज्यादा सिमटा रहा लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर राहुल पूरी तरह हमलावर रहे। कार्यकर्ताओं की नेताओं पर नकारात्मक निर्भरता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘हम बीच की इस दीवार को तोड़ देंगे। अमित शाह का नाम लिए बिना उन्होंने हमलावर तेवर दिखाए कि, ‘वे ऐसे शख्स को अपना अध्यक्ष स्वीकार कर सकते हैं, जिनके ऊपर हत्या का आरोप है। लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि यह सच का संगठन है। राहुल ने नीरव मोदी और ललित मोदी के उपनामों को लेकर तंज कसते हुए कहा कि,’मोदी नाम भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मुद्दा बदलकर समस्याओं से ध्यान हटाने का आरोप लगाते हुए कहा कि, ‘क्या आप प्रधानमंत्री से ऐसी अपेक्षा कर सकते हैं, जो मरते हुए किसानों को छोड़कर योग करने के लिए इंडिया गेट चलने को कहते हों? उनके भाषण का एक महत्वपूर्ण पहलू संघ पर लक्षित यह विश्लेषण था कि,’आदिवासियों,मुस्लिमों और तमिलों पर उनकी जीवन शैली और भिन्नताओं को लेकर मीन मेख तथा भेदभाव क्यों? क्या उन्हें यह अधिकार नहीं कि वे अपने तरीके से भरपूर जीवन जी सकें? उन्होंने पार्टी की अतीत की गलतियों को स्वीकार कर अपनी तरफ से लोगों को खुश कर दिया। उन्होंने कहा, ‘हमने लोगों की भावनाओं का सम्मान नहीं किया जिसकी सजा हमें बदस्तूर मिली।

उनकी दलील थी कि,’कांग्रेस का हाथ का निशान देश को जोड़कर रख सकता है। जीवन मूल्यों के प्रति भाजपा के नकारात्मक भाव पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा,’देश में गुस्सा फैलाया जा रहा है, लोगों को बांटा जा रहा है।Ó वैकल्पिक राजनीति की उम्मीदों की जड़ें जमाने की कोशिश में अपनी मंशा को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा, ‘हम प्यार और भाईचारे का प्रसार करेंगे। कांग्रेस बनाम भाजपा के संदर्भ में उन्होंने कहा,’प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश थका हुआ महसूस कर रहा है। राहुल ने मोदी को प्रधानमंत्रित्व और पूंजीपतियों के बीच सांठ-गांठ एवं भ्रष्टाचार का प्रतीक बताया।

बतौर अध्यक्ष अपने 53 मिनट के भावनात्मक भाषण में राहुल गांधी ने ज़ज्बाती होते हुए यूपीए सरकार की तमाम खामियां गिनाईं और बड़ी हिम्मत से जता दिया कि,’हमसे गलतियां हुई, लोगों की भावनाओं को हम समझ नहीं पाए। नतीजतन हमें सजा दी गई और नकार दिया गया। कांग्रेस की नई पहलकदमी का खाका खींचते हुए राहुल युवाओं का दिल जीतने की कोशिश में नजर आए कि,’हम काबिल नौजवानों को आगे लाएंगे। उन्होंने रूपक गढ़ते हुए बड़े पेचीदा ढंग से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मोदी का नाम क्रोनी कैपिटलिज़्म और पीएम के बीच सांठ-गांठ का प्रतीक है।ÓÓ उनका सवालिया अंदाज तंज भरा था कि,’मोदी ने मोदी को आपके तीस हजार करोड़ रुपए दे दिए। बदले में मोदी ने मोदी को मोदी की मार्केटिंग और चुनाव लडऩे के लिए पैसे दिए….इस पैसे से मोदी ने चुनाव जीता। मोदी पर आक्रामक होते हुए राहुल के शब्द पैनी धार में सने दिखाई दिए कि,’आपने मोदीजी के चेहरे में बदलाव देखा? अब वे सूट नहीं पहनते। उन्हें लग रहा है, गुजरात तो निकल गया, लेकिन 2019 फंस जाएगा? राहुल के तेवर बहुत तीखे थे और लोग ऐसे तालियां पीट रहे थे जैसे उन्होंने कोई नया राहुल देख लिया जो शब्दों से गेंदबाजी के हुनर तराश रहा हो?

राहुल करेंगे कार्यसमिति का चयन

इस महाधिवेशन में राहुल गांधी में नई टीम के विचार को भी आकार लेते देखा गया। कार्यसमिति को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इस बात पर सहमति बनी कि,’अब कार्यसमिति में 24 सदस्यों का चयन राहुल गांधी ही करेंगे। अब तक 12 सदस्य मनोनीत किए जाते थे और बाकी 12 सदस्य चुनकर आते थे। कांग्रेस में कार्यसमिति अहम फैसले लेने वाला शीर्ष निकाय है। इस नई व्यवस्था के क्या कारण रहे? सूत्रों का कहना था, ‘पार्टी को राहुल के नेतृत्व में एकजुट होकर मोदी का सामना करना है, ऐसी स्थिति में 12 सीटों के लिए चुनाव तर्कसंगत नहीं होगा। राहुल गांधी ने मोदी सरकार की विदेश नीति की कड़ी आलोचना की। इस संदर्भ में लिए गए एक प्रस्ताव में कहा गया कि,’सरकार ने ऐसे हालात पैदा कर लिए हैं कि चीन को घुसपैठ का मौका मिल गया है। महाधिवेशन में कई पत्रिकाएं भी बांटी गई जो सीधे तौर पर मोदी पर हमलों से भरी थी। ऐसी ही एक पत्रिका का शीर्षक था, ‘सूट-बूट और लूट की छूट? राहुल ने कांग्रेस संस्कृति में यह कहते हुए नई परम्परा की आधारशिला रखी कि,’पार्टी पैराशूट नेताओं को नहीं बल्कि जमीनी कार्यकर्ताओं को टिकट देगी।

गहलोत को लेकर दस्तक

राहुल गांधी की इस पटकथा में महाधिवेशन के दौरान दिग्गजों की पहली कतार में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सशक्त उपस्थिति, राजस्थान की सियासी पृष्ठभूमि में उन्हें खेवनहार की तरह उकेरती रही। गहलोत दिग्गजों की पहली पांत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निकट खड़े हैं, जबकि मनमोहन सिंह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ नजर आ रहे हैं। राजनीतिक रणनीतिकार इस जुगलबंदी को तटस्थ नजरिए से देखने की बजाए राजस्थान में नेतृत्व से जुड़े अंर्तसंबंधों के रूपक की तरह देख रहे हैं। इस सिनेरियो पर नीम चुप्पी साधने की अपेक्षा रणनीतिकार अनकही कड़ी की तरह संभावनाओं पर मुहर लगाते नजर आते हैं कि, ‘प्रदेश की रेतीले राजनीति में कांग्रेस के नेतृत्व की अटकलें चौखट लांघ चुकी है। रणनीतिकार कहते हैं कि,’नेतृत्व को लेकर अंदर ही अंदर बहती धारा पूरी तरह गहलोत को मुख्यमंत्री पेश करने के पक्ष में है जो जन आकांक्षाओं को पूरे आवेग से प्रतिध्वनित कर रही है। महाधिवेशन में आखिरी छोर तक बैठे लोगों ने इस सिनेरियो को संतुलित उम्मीदों के साथ देखा।

सोनिया का ‘अहंकार पर वार’

बेशक प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार की सर्वाधिक कटु आलोचना उनके अहंकार को लेकर थी। सोनिया गांधी ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा,’हम अहंकारी सरकार के भ्रष्टाचार का सबूतों के साथ खुलासा कर रहे हैं। कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मिशन 2019 का आगाज करते हुए कहा, ‘अहंकारी मोदी सरकार ने कांग्रेस को मिटाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी लेकिन हमें मिटाया नहीं जा सकता। उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा,’लोग समझ गए हैं कि, ‘ना खाऊंगा और ना खाने दूंगाÓ सरीखे वादे सिर्फ ड्रामेबाजी, वोट और कुर्सी हथियाने की चाल थी। साम-दाम,,दंड-भेद का खुला खेल चल रहा है। लेकिन कांग्रेस न झुकी है और न झुकेगी? यह कहते हुए उनके उत्साह को सीमा में नहीं बांधा जा सकता था कि,’हम प्रतिशोध, पक्षपात और अहंकार मुक्त भारत बनाने के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने कहा, मोदी जी, मीडिया को नजरअंदाज करने का माद्दा रखते हैं, यहां तक कि यूपीए सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं को भी, लेकिन हम 2019 में उन्हें सबक सिखाकर रहेंगे।

सोनिया गांधी ने खासकर इस सवाल पर कि साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस के मुद्दे क्या होंगे? उन्होंने बीते दिनों मुंबई में एक निजी कार्यक्रम में दिए गए जवाब ही दोहराए कि ‘भाजपा के वादे बेशक जनता को हसीन सपने दिखाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत तो पूरी तरह जुदा है। लोग आज भी अच्छे दिनों की बाट जोह रहे हैं। लेकिन भाजपा के अच्छे दिनों का हश्र तो वाजपेयी के कार्यकाल के ‘शाइनिंग इंडियाÓ सरीखा ही होगा।

गरीबी हटाने का संकल्प फिर

अधिवेशन में वैचारिक मंथन के लिए गरीबी उन्मूलन, फसल बीमा और बेरोजगारी सरीखे मुद्दे थे। गरीबी उन्मूलन का संकल्प दोहराते हुए कहा गया कि, ‘इसके लिए गरीबी उन्मूलन कोष बनाया जाएगा और सबसे अमीर भारतीयों पर पांच प्रतिशत उपकर लगाया जाएगा। इस राशि से दलितों और अल्पसंख्यकों के बच्चों को छात्रवृति दी जा सकेगी। मोदी सरकार के ‘स्किल इंडियाÓ पर निशाना साधते हुए कहा गया कि,’इसके तहत सिर्फ दस फीसदी प्रशिक्षित युवाओं को ही रोजगार मिल सका है। पार्टी ने एक मजबूत तंत्र बचाने की बात करते हुए कहा कि,’रियल एस्टेट को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। गरीबी उन्मूलन पर पारित प्रस्ताव में कहा गया कि,’सत्ता में आने पर पार्टी किसानों की कर्ज माफी योजना फिर से लाएगी। किसानों को जमीन की नीलामी से बचाने के लिए वसूली के वैकल्पिक तरीके तलाश किए जाएंगे। मछुआरों के लिए अलग से मंत्रालय का गठन किया जाएगा। महाधिवेशन में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि,’कांग्रेस 2019 के चुनाव में समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों से हाथ मिला सकती है। एक अन्य प्रस्ताव में भाजपा पर आरोप लगाया गया कि,’भाजपा सरकार ने हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने का वादा तोड़ कर उनके साथ विश्वासघात किया है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को साथ कराने को कपट की संज्ञा देते हुए अव्यावहारिक बताया गया। राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि, ‘चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता बहाल करने के लिए चुनाव आयोग को पुरानी परम्परा लागू रखने का आग्रह किया जाएगा। आरएसएस को निशाने पर लेते हुए कांग्रेस ने अपने संकल्प में कहा कि,’आरएसएस और भाजपा सत्ता हासिल करने के लिए लोगों की भावनाओं को भड़काने के साथ धर्म की गलत व्याख्या कर रहे हैं। धर्म ओैर राजनीति का यह मिश्रण समावेशी राजनीति के लिए जबरदस्त खतरा पैदा कर रहा है।

महाधिवेशन में ‘सच की शक्तिÓ पैनल चर्चा में मीडिया पर व्यापारिक घरानों पर नियंत्रण तोडऩे की मांग भी उठी। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा,’जिनके आर्थिक व्यापारिक हित हैं, वे इन दिनों मीडिया हाउस चला रहे हैं। उन्हें सत्ताधारियों से भय सता रहा है कि ‘कहीं उनका नुकसान ना हो जाए?Ó नतीजतन प्रतिपक्ष चाहे भी तो उसका रहस्योद्घाटन नहीं हो सकेगा? ऐसे में हकीकत जनता के सामने आएगी भी तो कैसे? उन्होंने संकल्प करने का आह्वान किया कि,’कांग्रेस सत्ता में आएगी तो मीडिया ओैर व्यापार के गठबंधन को तोड़ देगी। चर्चा में शामिल पत्रकार मृणाल पांडे का सुझाव था कि,’राजनेता भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता को महत्व देने का प्रयास करें।Ó