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भारतीय मूल के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने चुनौतियाँ-ही-चुनौतियाँ

ऋषि सुनक, जिनका परिवार अविभाजित भारत के समय पूर्वी अफ्रीका चला गया था; ने किसी समय दुनिया के एक बड़े हिस्से पर राज करने वाले यूनाइटेड किंग्डम का प्रधानमंत्री बनकर एक इतिहास रच दिया है। हालाँकि वह जिस बात के लिए प्रधानमंत्री चुने गये हैं, वह ब्रिटेन के लोगों के लिए बहुत ही महत्त्व; लेकिन चिन्ता वाली स्थिति में पहुँच चुकी अर्थ-व्यवस्था है, जिसे उन्हें पटरी पर लाना है। सुनक से पहले डेढ़ महीने प्रधानमंत्री रहीं लिज़ ट्रस को ऐसा करने में नाकाम रहने के कारण ही अपनी कुर्सी गँवानी पड़ी। सुनक के सामने गम्भीर आर्थिक चुनौतियाँ हैं और यदि वह इससे पार पा लेते हैं, तो निश्चित ही ब्रिटेन में अपनी ख़ास जगह बना लेंगे।

प्रधानमंत्री बनने के बाद ख़ुद ऋषि सुनक ने देश के सामने खड़े संकट को गम्भीर बताया है। उनका कहना है कि ब्रिटेन की अर्थ-व्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए वह दिन-रात काम करेंगे। ब्रिटेन में महँगाई अब तक के सबसे ऊँचे स्तर पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि महँगाई का सामना करने के लिए योजना बनाते समय सुनक को मंदी से सावधान रहना होगा; क्योंकि ज़्यादा सख़्त फ़ैसले ब्रिटेन की ढीली पड़ चुकी अर्थ-व्यवस्था को गम्भीर मंदी की तरफ़ धकेल सकते हैं।

हाल में इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अगले साल तक ब्रिटेन की अर्थ-व्यवस्था में 0.3 फ़ीसदी की वृद्धि देखने को मिल सकती है। निश्चित ही सुनक के लिए यह आँकड़े चिन्ता का कारण हैं। स्थिर विकास के साथ उच्च महँगाई दर सुधार कार्यक्रम की बैंड बजा सकती है।

यही नहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद मास्को पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के चलते यूरोप की ऊर्जा सप्लाई पर विपरीत असर पड़ा है। अब ब्रिटेन में प्राकृतिक ऊर्जा की क़ीमतों में बड़ी बढ़ोतरी हुई है। देश में प्रति परिवार ऊर्जा की क़ीमतें एक साल पहले के 1,277 पाउंड के मुक़ाबले आज की तारीख़ में 3,549 पाउंड हो चुकी हैं। जहाँ तक ब्रिटेन की अर्थ-व्‍यवस्‍था का सवाल है, एसएंडपी ग्लोबल कंपोजिट परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स मार्च, 2021 के बाद के सबसे निचले स्तर 47.2 पर आ गया है। मैन्यूफैक्क्रिंग पीएमआई 48.4 से घट 45.8 के स्‍तर पर है। सुनक के लिए यह बड़ी चुनौती है। अर्थ-व्यवस्था से इतर सुनक के सामने कंजरवेटिव पार्टी के भीतर अपना भरोसा मज़बूत करने की भी चुनौती है। यह तभी होगा, जब सुनक ब्रिटेन के लोगों के भरोसे को जीतेंगे। कंजर्वेटिव पार्टी की विरोधी लेबर पार्टी लोकप्रिय हो रही है। सुनक के नाकाम होने का मतलब होगा- नये चुनाव और लोकप्रियता की महज़ 14 फ़ीसदी की दर उन्हें सत्ता से बाहर कर देगी।

सुनक की पृष्ठभूमि

सुनक भले ब्रिटेन के नागरिक हों, एक भारतीय उनके दिल में अभी भी बसा हुआ है। प्रधानमंत्री बनने के बाद ऋषि सबसे पहले मन्दिर गये और हाथ में कलावा भी बाँधा। यही नहीं, सुनक ने बतौर सांसद पहली बार जब ब्रिटिश संसद में शपथ ली थी, तो उन्होंने यह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम पर शपथ ली थी। ब्रिटेन में ऐसा करने वाले वह इकलौते सांसद हैं। उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति अभी भी भारतीय नागरिक हैं। हालाँकि इस दम्पति की दोनों बेटियाँ ब्रिटिश नागरिक हैं। अक्षता इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति की बेटी हैं और इस दम्पति की कुल सम्पति ब्रिटेन के शाही परिवार से भी कई गुना ज़्यादा है। सुनक को विवादों का भी सामना करना पड़ा है, जब उनकी पत्नी के नॉन-डोमिसाइल टैक्स स्टेटस पर सवाल उठे थे। यही नहीं, ख़ुद सुनक पर आरोप लगे थे कि वह जब मंत्री पद पर थे, उस समय उनके पास अमेरिकी ग्रीन कार्ड था।

प्रधानमंत्री पद सँभालने के बाद उन्होंने अपनी टीम में भारतीय मूल के तीन लोगों को स्थान दिया है, जिनमें एक कंजर्वेटिव पार्टी की सांसद सुएला ब्रेवरमैन भी हैं; जिनकी पृष्ठभूमि गोवा की है। लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि यह सुएला ब्रेवरमैन ही थीं, जिन्होंने कहा था कि भारत के साथ व्यापार समझौते से यूनाइटेड किंगडम में प्रवासन में वृद्धि होगी।

कंजर्वेटिव पार्टी के नया नेता चुने जाने के समय ब्रिटेन में जो सर्वे आये हैं, उनमें लेवर पार्टी को बढ़त दिखायी जा रही है। ज़ाहिर है कंजर्वेटिव पार्टी को राजनीतिक रूप से मज़बूत रखने में सुनक को बड़ी भूमिका निभानी होगी। यदि वह ऐसा कर पाते हैं, तो अगले आम चुनाव में उनकी पार्टी कंजर्वेटिव फिर सत्ता में आ सकती है और लेवर पार्टी का खेल बिगड़ सकता है।

सुनक महज़ 42 साल के हैं और भारत पर कभी राज करने वाले ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना उनके साथ-साथ भारत और दुनिया के लिए बड़ा उदाहरण है। ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों को क़ानूनी रूप से अल्पसंख्यक माना जाता है। इस लिहाज़ से भी यह महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि उनकी आबादी कम है। वह भी एक ऐसी पार्टी का प्रधानमंत्री बनना, जिसे रूढि़वादी माना जाता है और रंगभेद के आरोप उस पर लगते रहे हैं। सुनक आधुनिक दौर में ब्रिटेन के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री हैं।

ऋषि के भारतीय मूल के माता-पिता 60 के दशक में पूर्वी अफ्रीका से ब्रिटेन आये थे। अफ्रीका उनके दादा-दादी 1935-36 में चले गये थे, इससे पहले वह जिस अविभाजित भारत में रहते थे, वह अब पाकिस्तान का हिस्सा है। रिचमंड (यॉर्कस) से कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद चुने गये सुनक बोरिस जॉनसन सरकार में वित्त मंत्री रहे हैं। हालाँकि जब उन्होंने अपने पद से दो महीने पहले त्याग-पत्र दिया था, तो जॉनसन के समर्थक इससे बहुत नाराज़ हो गये थे और उनका आरोप था कि सुनक के कारण ही जॉनसन को अपना पद छोडऩा पड़ा।

सुनक की चुनौतियाँ

 गहरा आर्थिक संकट

 महँगाई पर क़ाबू पाना

 कर (टैक्स) कम करना

 कम दर की अर्थ-व्यवस्था

 

भारत और ब्रिटेन के रिश्ते

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऋषि सुनक को जब ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने की बधाई दी, तो साथ ही उन्होंने रोडमैप-2030 पर मज़बूती से काम करने की इच्छा भी जतायी। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 2021 में एक आभासी बैठक (वर्चुअल मीटिंग) के दौरान रोडमैप-2030 पर दस्तख़त किये थे। यह एक तरह का समझौता था, जिसमें दोनों देशों के बीच साल 2030 तक व्यापार को दोगुना करने और मुक्त व्यापार को गति देने की बात कही गयी थी। जॉनसन अब सत्ता से बाहर हो चुके हैं। हालाँकि सच यह भी है कि उनके समय में इस पर कुछ ख़ास काम नहीं हुआ।

अब ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बन गये हैं, तो उम्मीद की जा रही है कि यदि मोदी-सुनक के बीच बेहतर रिश्ते बनेंगे। अगर ऐसा होता है, तो दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और तकनीकी साझेदारी पर अर्थात् रोडमैप-2030 पर तेज़ी से काम होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी उम्मीद भी जतायी है। वैसे बोरिस जॉनसन के बाद जब लिज़ ट्रस ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनी थीं, तो उनकी नीति अलग दिखी थी। उन्हें मुक्त व्यापार के अलावा माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप जैसे मुद्दों पर ऐतराज़ था। लिज़ प्रशासन को भय था कि यदि समझौते पर पूरी तरह अमल किया जाता है, तो इससे भारतीयों के ब्रिटेन आने की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ सकती है।

अब जबकि एक भारतीय मूल का प्रधानमंत्री ब्रिटेन की सत्ता में क़ाबिज़ हो चुका है, तो उम्मीद की जा रही है कि समझौते को लेकर उनकी सलाहकार टीम की राय अलग होगी।