सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने कहा कि सम्पूर्ण और व्यक्तिगत गोपनीयता के रूप में नागरिकों की गोपनीयता पर विचार किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता शिक्षाविद् जगदीप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि वर्तमान मामले की भयावहता बहुत बड़ी है और कृपया मामले की स्वतंत्र जाँच पर विचार करें। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि मैं और हम सभी चाहते हैं कि आप केंद्र सरकार को नोटिस जारी करें। सर्वोच्च न्यायालय में कपिल सिब्बल ने दलील दी कि पत्रकार, सार्वजनिक हस्तियाँ, संवैधानिक प्राधिकरण, अदालत के अधिकारी, शिक्षाविद् सभी स्पाईवेयर के ज़रिये निशाने पर हैं और सरकार को जवाब देना होगा कि इसे किसने ख़रीदा? हार्डवेयर कहाँ रखा गया था? सरकार ने एफआईआर क्यों नहीं दर्ज करायी? याचिकाकर्ता एन. राम और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि यह स्पाईवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है; निजी संस्थाओं को नहीं बेचा जा सकता है। एनएसओ प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल है। उन्होंने कहा कि पेगासस एक दुष्ट अथवा कपटी तकनीक है, जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है। यह हमारे गणतंत्र की निजता, गरिमा और मूल्यों पर हमला है।
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 10 अगस्त की सुनावी के दौरान पेगासस जासूसी मामले में तीखी टिप्पणी की थी। न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि इस मामले पर बहस सिर्फ़ न्यायालय में होनी चाहिए; सोशल मीडिया पर नहीं। पेगासस जासूसी मामले में आरोपों की एसआईटी से जाँच कराने की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि हम आपका सम्मान करते हैं। लेकिन इस मामले पर जो भी बहस हो, वो न्यायालय में हो, सोशल मीडिया पर समानांतर बहस न हो। अगर याचिकाकर्ता सोशल मीडिया पर बहस करना चाहते हैं, तो ये उन पर निर्भर करता है कि वे क्या चाहते हैं? लेकिन अगर वे न्यायालय में आये हैं, तो उन्हें न्यायालय में बहस करनी चाहिए और न्यायालय पर भरोसा रखना चाहिए।
याद रहे केंद्र ने हलफ़नामा दायर कर सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पेगासस जासूसी के आरोपों को लेकर स्वतंत्र जाँच की माँग करने वाली याचिकाएँ अटकलों, अनुमानों और मीडिया में आयी अपुष्ट ख़बरोंपर आधारित हैं। हलफ़नामे में सरकार ने कहा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही कथित पेगासस जासूसी मुद्दे पर संसद में उसका रूख़ स्पष्ट कर चुके हैं। हलफ़नामे में कहा गया कि उपर्युक्त याचिका और सम्बन्धित याचिकाओं के अवलोकन भर से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अटकलों, अनुमानों और अन्य अपुष्ट मीडिया ख़बरोंऔर अपूर्ण या अप्रामाणिक सामग्री पर आधारित हैं। हलफ़नामे में कहा गया कि कुछ निहित स्वार्थों के दिये गये किसी भी ग़लत विमर्श को दूर करने और उठाये गये मुद्दों की जाँच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा।
इजरायल और फ्रांस में जाँच
यह मामला तब सामने आया था, जब 10 देशों के 17 मीडिया संगठनों के लिए काम कर रहे 80 पत्रकारों के एक समूह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जाँच के बाद अपनी ख़बर में इस जासूसी मामले का ख़ुलासा किया था। इस मसले पर फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जो जाँच की उसके आधार पर दावा किया गया कि इजरायली फर्म एनएसओ रुप ने दुनिया की कई सरकारों को अपना पेगासस स्पाईवेयर बेचा। यह स्पाईवेयर अपराधियों और आतंकवादियों से लेकर राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तक तमाम हस्तियों की जासूसी के लिए इस्तेमाल करता था। चूँकि जासूसी होने वाले लोगों की सूची में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का भी नाम था। कहा जाता है कि उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट को फोन किया और इस मामले पर स्पष्टीकरण चाहा। इसके बाद फ्रांस का दौरा कर रहे इजरायली रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज ने फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली को बताया कि इजरायल अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार सख़्त लाइसेंस नियमों के तहत ही काम कर रहा है और इसे केवल आतंक और अपराध से लडऩे के लिए सरकारों को बिक्री के लिए दिया जाता है।
बेनी गैंट्ज के मुताबिक, चूँकि फ्रांस कई आतंकवादी हमलों का गवाह रहा है, वह आतंक के ख़िलाफ़ जंग में ऐसे निगरानी उपकरणों को लेकर पूरी तरह वाक़िफ़ था। कई अन्य सरकारों और दुनिया भर के मीडिया ने नेफ्टाली बेनेट की इजरायली सरकार से इजरायल राय और एनएसओ रूप के बीच सम्बन्धों की जानकारी ज़ाहिर करने का आह्वान किया। अमेरिकी प्रशासन ने भले ख़ुद इस मसले पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कहा; लेकिन देश के चार प्रभावशाली सीनेटर ने एनएसओ समूह को निर्यात ब्लैकलिस्ट पर रखने पर विचार करने का बाइडन प्रशासन का आह्वान किया। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद 28 जुलाई को इजरायल के रक्षा मंत्रालय के लोगों ने हर्जलिया में एनएसओ समूह के कार्यालय पर छापा मारा और उसका निरीक्षण किया। एनएसओ ने इसे छापा मानने से इन्कार किया और कहा कि अधिकारियों की तरफ़ से यह एक दौरा मात्र था। हालाँकि इसी दौरान एक ख़बर यह भी सामने आयी कि एनएसओ रूप ने स्पाईवेयर के सम्भावित दुरुपयोग की जाँच के लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय सरकारी ग्राहकों के खातों को निलंबित कर दिया। एनएसओ जाँच रिपोर्ट में दिखायी देने वाले प्रत्येक लक्ष्य और खाते की जाँच कर रहा है और यह भी जाँच कर रहा है कि निगरानी सॉफ्टवेयर का उनका उपयोग उनके अनुबन्ध की शर्तों के विपरीत है या नहीं। अभी यह साफ़ नहीं है कि इजरायल के इस मामले में जाँच के क्या नतीजे सामने आये हैं? यहाँ एक बड़ा पेंच यह भी है कि पेगासस को इजरायली कम्पनी एनएसओ रूप बनाती है और कम्पनी का दावा है कि वह इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ़ सरकारों को ही बेचती है। उधर फ्रांस सरकार पहले ही पेगासस से कथित जासूसी की जाँच के आदेश दे चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के ख़ुलासे के मुताबिक, पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल करके क़रीब 1,000 फ्रांसीसी लोगों को निशाना बनाया गया और उनके फोन टैप किये गये। जानकारी के मुताबिक, मोरक्को की एजेंसी ने पेगासस के ज़रिये क़रीब 1,000 फ्रांसीसी लोगों को निशाना बनाया था, जिनमें पत्रकार शामिल हैं। फ्रांस में इस मसले पर हो रही जाँच को लेकर भी अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आयी है।
कांग्रेस समेत विपक्ष का 20 से प्रदर्शन
कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दल पेगासस जासूसी मामले पर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ 20 से 30 सितंबर के बीच राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के साथ विपक्षी दलों की बैठक में यह फ़ैसलाहुआ। बैठक के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने एक साझे बयान में कहा कि सरकार पेगासस मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जाँच कराये। विपक्षी दलों ने कहा कि हम केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के उस रवैये की निंदा करते हैं कि जिस तरह उसने मानसून सत्र में व्यवधान डाला, पेगासस सैन्य स्पाईवेयर के ग़ैर-क़ानूनी उपयोग पर चर्चा कराने या जवाब देने से इन्कार किया। सरकार की ओर से इन मुद्दों और देश और जनता को प्रभावित करने वाले कई अन्य मुद्दों की जानबूझकर उपेक्षा की गयी। पेगासस जासूसी मामले को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने इसे बहुत ख़तरनाक और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला बताया।
सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले पर नज़र
पेगासस का मामला भारतीय लोकतंत्र में एक ऐसे पैबंद की तरह है, जो हमें शर्मशार करता है। पेगासस के ज़रिये जासूसी न केवल लोगों के निजता के अधिकार, बल्कि उनके जीवन के अधिकार से भी जुड़ा हुआ मामला है। सबकी नज़र अब सर्वोच्च न्यायालय पर रहेगी। न्यायालय में पेगासस पर सरकार की दलीलें कमोवेश वैसी ही हैं, जैसी संसद में राहुल गाँधी के राफेल लड़ाकू विमानों की क़ीमत पूछने पर रही थीं। सरकार राष्ट्र की सुरक्षा के ख़तरों का बहाना करती है। राफेल पर मोदी सरकार ने कहा था कि जैसे ही हम इन विमानों की क़ीमत बता देंगे, चीन-पाकिस्तान जैसे दुश्मन राष्ट्र को इनका सारा कॉफिगरेशन (विन्यास) पता चल जाएगा और वे इनसे मुक़ाबले के लिए तैयारी करना शुरू कर देंगे। अब न्यायालय में सरकार ने कहा कि जैसे ही सरकार यह बताएगी कि वह कौन-से सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है और किसका नहीं? आतंकी उससे बचने का तोड़ निकाल लेंगे। ऐसे में इस मामले को जनचर्चा में नहीं लाया जा सकता है। यहाँ यह समझने की बात है कि यह मामला टेलीफोन टैपिंग का नहीं है। पेगासस सिस्टम फोन टैप नहीं करता, हैक ही कर लेता है। अर्थात् फोन के ज़रिये हैकर हमारे ईमेल, व्हाट्स ऐप, एसएमएस, मैसेंजर और बाक़ी ऐप्स स्टोरेज में घुस जाता है। वह वहाँ के तमाम चैट और किसी भी तरह की अहम सामग्री मेल बॉक्स और ऐप्स के स्टोरेज में प्लांट कर सकता है। लाईव फोटो तक देख सकता है। यहाँ यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि पेगासस सॉफ्टवेयर बेचने वाली कम्पनी एनएसओ रूप साफ़ करता रहा है कि वह सरकारों के अलावा किसी और को (मतलब निजी संस्था या संगठन को नहीं) बेचता। ऐसे में केंद्र सरकार यदि यह कहती है कि उसने मीडिया की रिपोट्र्स में सामने आयी सूची वाले भारतीयों के ख़िलाफ़ पेगासस का इस्तेमाल नहीं किया, फिर तो यह और गम्भीर बात हो जाती है कि ऐसा और किसने किया? क्या किसी विदेशी सरकार ने या किसी आतंकी या अन्य संगठन ने?