कंगना ने तोड़े बालीवुड में महिलाओं के भ्रम

अब कंगना ने अपनी एक राह ज़रूर बना ली है साथ ही एक ऐसा फोरम भी बना लिया है जहां बालीवुड की युवतियां अपना गुस्सा जता सकती हैं। एक साल से भी ज़्यादा समय उसे यह जताने में निकल गया कि वह टूटने को नहीं है। उसे यह अहसास भी हुआ।

फिल्म उद्योग में उसकी एक ऐसी तस्वीर बन गई है जो उससे भी कहीं बड़ी है। बालीवुड भले ही उसकी हिम्मत और चुनौती को देखते हुए उसे खतरा मान कर अपने दरवाजे भले ही बंद कर ले। लेकिन कंगना ने यह भ्रम ज़रूर तोड़ा कि बालीवुड में यह प्रचार गलत है कि औरतों को दिखने, बोलने, चलने की आज़ादी उतनी ही मिलती है जितनी वे देना चाहते हें। आज अभिनय में भी कंगना एक बड़ा ब्रांड है जो खासा नामी है। और संघर्ष करते हुए अपनी अभिनय क्षमता नित निखार रही है।

भयमुक्त है कंगना

कंगना रानौट के पास अब खोने के लिए कुछ भी ज़्यादा नहीं है। वह अपनी कहानी के संवाद भी खुद ही लिख रही थी। उसने उन चिंदियों को स्वीकार कर लिया था जो लोग उसे महिला कार्ड के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं। बालीवुड में आज वह महिलाओं की झंडाबरदार ज़रूर है।

कंगना का महिला शक्ति के रूप में दिखना एक महागाथा है। इस कहानी के दो सिरे हैं- एक उसका अपना और दूसरा झूठे प्रचार का गलत का। वह अपने दुख भी खुद के पल्लू में रखती है। जब शबाना आजमी ने ऑनलाइल पेटीशन दीपिका पादुकोण के पक्ष में जारी की तो कंगना ने उस पर अपने दस्तखत तो नहीं किए लेकिन कहा कि निजी तौर पर वह पादुकोण के साथ है। उसने इस आरोप को भी कबूल लिया कि वह बाहरी है। उसने फड़कती हुई उस नस को दबा दिया था जिसके चलते उन लोगों में वह धीरज भी कम हो गया जो मशहूर लोगों के बच्चों और उनकी पहली प्रस्तुति होती है। वह भी बालीवुड में बदलाव के लिए ढेर सारी मार्केटिग के ज़रिए जिससे वे दुनिया में चमक सकें।

कंगना अपने आप में बदलाव खुद नहीं ला सकती। लेकिन उसकी आवाज़ की गूंज ज़रूर रहेगी। आज हॉलीवुड हार्वे वेन्स्टेन की कारगुजारियों की कहानियां बालीवुड में भी खूब गूंज रही हैं लेकिन उस गूंज से अब उम्मीद बनी है कि यह सिलसिला आगे बढेगा। आज कंगना खुद को ताकतवर भी मानती है।