एक और गुडि़या

पांच साल की खुशी अपने मम्मी और पापा के साथ; फोटो-विकास कुमार
पांच साल की खुशी अपने मम्मी और पापा के साथ; फोटो-विकास कुमार

दिसंबर, 2012 में हुए दिल्ली गैंग रेप के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन अभी थम ही रहे थे कि नए साल के चौथे ही महीने में दिल्ली में पांच साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार की बर्बरता ने पूरे देश को फिर से हिला दिया. जंतर-मंतर और इंडिया गेट पर सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के महीनों तक चले प्रदर्शन और जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट में दर्ज सिफारिशों के आधार पर नए ‘आपराधिक संशोधन अधिनियम- 2013’ के पारित होने के बाद उम्मीद जगी थी कि बलात्कार के मामलों में दिल्ली पुलिस की कुख्यात संवेदनहीनता में कुछ सुधार तो होगा ही. लेकिन पांच साल की खुशी (बदला हुआ नाम) की यह कहानी एक तरफ जहां बलात्कार के मामलों में लगातार जारी दिल्ली पुलिस की आपराधिक लापरवाही और उदासीन रवैये को स्पष्ट करती है वहीं ‘महिलाओं के लिए सुरक्षित दिल्ली’ जैसे सरकारी दावों की पोल भी खोलती है.

हरियाणा बॉर्डर से सटा कापसहेड़ा दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के आखिरी छोर पर बसा अंतिम रिहायशी इलाका है. आलीशान बंगलों, बहु-मंजिला इमारतों और घने बाजारों वाले इस इलाके के सेक्टर 21 में बने अय्यप्पा मंदिर के पास इन बंगलों और इमारतों में काम करने वाले मजदूरों की एक बस्ती है. यहीं रहने वाले पप्पू कुमार को दिसंबर, 2012 के दिल्ली गैंग रेप और उसके बाद अप्रैल, 2013 में गुड़िया बलात्कार कांड का पूरा घटनाक्रम लगभग जबानी  याद है. अपनी पत्नी और छह बच्चों के साथ अपनी एक कमरे की खोली में बैठकर बात करते हुए वे हर दूसरी बात पर पूर्वी दिल्ली में हुए चर्चित गुड़िया बलात्कार कांड का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘मेरी खुशी भी तो गुड़िया की ही तरह सिर्फ पांच साल की ही है. लेकिन उसका केस मीडिया के सामने आ गया. हमें पुलिसवालों ने मीडियावालों से बात करने से सख्त मना कर दिया था. बस वाले मामले के साथ-साथ गुड़िया के मामले पर भी इतना हंगामा हुआ और सारे आरोपी तुरंत गिरफ्तार कर लिए गए. लेकिन मेरी बच्ची के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले आजाद घूम रहे हैं. वह भी तब जब वह खुद उनके बारे में बता रही है.’

10 फरवरी, 2013 को पप्पू कुमार की पांच वर्षीया बेटी खुशी का बलात्कार हुआ था. अपराधियों ने खून से लथपथ और बेहोश खुशी को मरा हुआ समझ कर उसे कापसहेड़ा बॉर्डर के पास मौजूद सूर्या विहार के जंगलों में छोड़ दिया था. एक महीने के सघन इलाज और चौदह टांकों वाली सर्जरी के बाद अब खुशी घर तो वापस आ चुकी है, लेकिन खामोश है.  दुबली-पतली काया वाली करीब डेढ़ फुट की यह बच्ची अब अक्सर कमरे के किसी कोने में बैठकर एक दिशा में ताकती रहती है.

लेकिन खुशी की मां प्रीति बताती हैं कि वह हमेशा से ऐसी नहीं थी. तहलका से बातचीत में अपनी बेटी के साथ हुए आपराधिक घटनाक्रम को याद करते हुए वे कहती हैं, ‘मेरे पति तब स्कूल में चपरासी का काम करते थे और मैं पास की कोठियों में बर्तन धोने और खाना बनाने जाती थी. 10 फरवरी को भी रोज की ही तरह मैं शाम को सात बजे खाना बनाने गई. वापस आई तो खुशी घर पर नहीं थी. मैंने सोचा यहीं खेल रही होगी. मैं खाना बनाने लगी. खाना बनाकर मैंने रोज की तरह अपने सारे बच्चों को आवाज दी.  खुशी को छोड़कर सब आ गए. जब खुशी रात को आठ बजे तक नहीं लौटी तो हमने उसे ढूंढ़ना शुरू किया लेकिन वह कहीं नहीं मिली.’

प्रीति आगे बताती हैं कि पूरी रात बेटी को ढूंढ़ने के बाद उन्होंने कापसहेड़ा पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाई. वहीं उन्हें पता चला कि खुशी सफदरजंग अस्पताल में भर्ती है. अस्पताल में पता चला कि उसकी सर्जरी होने वाली है. प्रीति याद करती हैं, ‘उसकी हालत बहुत खराब थी. पिछली रात वह पुलिसवालों को सूर्या विहार के पास से मिली थी. बाद में पूछने पर उसने बताया कि हमारे घर के पास रहने वाला सुनील उसे ले गया था. उसे सब साफ याद है. उसने पुलिसवालों के सामने भी बताया कि सुनील ने उससे कहा कि तेरी मां कोठी पे बुला रही है. फिर वह उसे समोसे खिलाने के बहाने बस्ती से बाहर ले गया. चार महीने हो गए, मेरी लड़की आज भी साफ-साफ बताती है कि सुनील अंकल उसे सूर्या विहार के जंगल ले गए थे. फिर वह सो गई थी. उन लोगों ने मेरी लड़की का बलात्कार किया और फिर उसे मरा समझ कर छोड़ गए थे. लेकिन मेरी लड़की न जाने कैसे हिम्मत करके कुछ घंटों बाद उठी और रोती हुई सड़क तक आ गई. इतनी सर्दी में उसके पूरे कपड़े उतार लिए थे. ऊपर सिर्फ एक हाफ स्वेटर पहने थी और नीचे दोनों पैरों से खून लगातार बह रहा था.